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लेखक- चंद्रशेखर चकोर
ग्राम कान्दुल, पोस्ट सुन्दर नगर, जिला रायपुर 492013 (छ.ग.)
मो.- 9826992518
प्रथम संस्करण-2019
सर्वाधिकार लेखकाधिन
मूल्य-300/-
लेखकीय-
Read Chhattisgarhi story
छत्तीसगढ़ी कहानी संग्रह के जम्मो कहानी मनला पढ़े पर खाल्हे के लिंक म आव-
पांत (अनुक्रमणिका)
- बेंदरा बिनास
- परिया टोरउनी रेगहा
- बरातु
- भूलेसर देव
- झोला छाप डॉक्टर
- खेत
- चुलुक
- आज के पहरलाद
- बेवहर
- डॉयल
- सासन के रासन
- पाहरू पहाटिया
- ढोंगी बिलई
- समधियानो
- छवान परछी
- भोजमनी गायता
- चौंथिया
।। सारा जहाँ उसी का है, जो कहानी कहना जानता है।।
।। रोशनी भी उसी की है, जो शमा जलाना जानता है।।
परमेश्वर भाई,
कहानीकार अपनी कहानी के माध्यम से दूसरों को उपदेश, नीति के शब्दों को प्रेक्षित कर स्वस्थ्य मनोरंजन के साथ स्वयं आनंद की अनुभूति में डूब जाता है। कविता, उपन्यास की कथानक, गीत, नाटक, एकांकी काल्पनिक हो सकता है परन्तु कहानी वास्तविक घटनाओं की धरातल पर सही उतर सकती है। भाई चन्द्रशेखर चकोर की कहानी परिया टोरउनी रेगहा भाव, शब्द सरिताओं का सुन्दर संगम है। यह छत्तीसगढ़ी कहानियों का अनुपम संग्रह है जिसमें लोक संस्कृति की आत्मा बसी हुई है अर्थात छत्तीसगढ़ी कहानी में लोक संस्कृति की आत्मा बसती है। हमारी परम्पराओं की फुलवारी में लोक कथन के फूल खिलते हैं। चकोर भाई एक अच्छे कहानीकार, फिल्मकार तथा लोक क्रीड़ा के सृजेता हैं तभी तो डहरचला उनकी श्रेष्ठ कृति आपके हाथ में है।
बरछाबारी के सम्पादक श्री चन्द्रशेकर चकोर जी ने छत्तीसगढ़ के लोक साहित्यकारों को उनकी लोक भावना के रोपे गये थरहा को पल्लवित किया है। सात्विक भावों के धनी युवा कहानीकार की उर्जा नमनीय है चूंकि वे एक सजग सिपाही की तरह छत्तीसगढ़ी शब्दों के नवल पौधों को रोप कर बढ़ाने वाले चकोर भाई बरछाबारी के कुशल माली हैं जहाँ आँचलिक साहित्यकारों के शब्दों की फुदकती चिड़िया, सरस भावों का कोयल है। वे सम्मान के नीर से उन रोपे गये पादपों की जड़ों का सींचन करते हैं जहाँ श्रद्धा का परिमल चारों तरफ पसर जाता है।
जहाँ भाव होता है वहाँ भाषा की परिशुद्धता शिथिल पड़ जाती है चूंकि छत्तीसगढ़ी तो सहज में सरल सरस और अंतस में समाने वाली होती है। शायद इसीलिए कहा जाता है कि-।। साग जिमीकांदी अमसुरहा कढ़ी।।
।। अब्बड़ मयारू हे भाखा छत्तीसगढ़ी।।
चकोर भाई अपनी कृति आज के पहरलाद के माध्यम से कहना चाहते हैं
जीऔ मुड़ उठाके, रेंगो छाती ठोंक।
पढ़ौ लिखौ बोलौ, छत्तीसगढ़ी गोठ।।
आज संचार के विभिन्न साधनों के कारण छत्तीसगढ़ी की अस्मिता खतरे में है। हम अपनी संस्कृति, परम्पराओं, रीति रिवाज, खानपान और छत्तीसगढ़ी के मूल को बिसरते जा रहे हैं इनका संरक्षण, संवर्धन अत्यन्त आवश्यक है । इस क्षेत्र में भाई चकोर की कृति डहरचला, परिया टोरउनी रेगहा प्रतिनिधित्व में अग्रसर है। हम भाषा की क्लिष्टता, उच्चता पर नहीं जाते। जमीन से जुड़े सरल, सहज, सरस और मनमोहन शब्दों की तराई के नीचे खेलने के शौकीन है। तभी तो आज के पहरलाद में हकर हकर, बैसुरहा जिनगी, झेलार, बिटासी, जोजियाना, रोहोपोहो, हरहिन्छा, डिड़वा, हुरका, ओल्हाना, बरपेली, रबकना एवं मुहावरों में खाप माढ़ना, हींग घोरना, छानी म होरा भूंजना, कांदा उसनना तथा कहावतों में खीस बेन्दरा खीस, हरदी मिरचा पीस, करम के नागर ल भूत जोतै, न बाबू के बाजा न नोनी के नाचा, पइधे गाय कछारे जाये, हाय रे बोरे बरा, किंदरबुल के मोरे करा, जैसे संगीत मय शब्दों का अकूतपन है। कहानीकार अपनी सभी कहानियों में सफल है। कहानी के सभी छै: तत्वों का पूर्ण समावेश कर रोचक बनाने में अपनी कुशलता जाहिर की है।
Author Introduction-
वरिष्ठ साहित्यकार चंद्रशेखर चकोर का संक्षिप्त जीवन परिचय-
प्रकाशित रचना-
- मड़वा तीर करसा - छत्तीसगढ़ की स्वरचित प्रथम ददरिया संग्रह (1995)
- लोक खेल नियमावली एक पुन:रीक्षण - प्रतियोगिता में सम्मिलित लोक खेलों के संग्रह (2002)
- टेकहाराजा - लोक नाट्य चैदनी की शैली में प्रथम साहित्य (2003)
- छत्तीसगढ़ के पारम्परिक लोक खेल - समग्र लोक खेलों का संग्रह ग्रंथ (2004)
- डहरचला - स्वरचित छत्तीसगढ़ी कहानी संग्रह (2008)
- चक्कर गुरूजी के - छत्तीसगढ़ी फिल्म स्क्रीप्ट (2016)
- परिया टोरउनी रेगहा - स्वरचित छत्तीसगढ़ी कहानी संग्रह (2019)
- डोंगरपाली - छत्तीसगढ़ी उपन्यास
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