छत्‍तीसगढ़ी कहानी : चुलुक

चुलुक

पइधे गाय कछारे जाय। साहर ले बनिहारी बूता उरका के लहुटत फगुवा ह भट्ठी म गीस अउ एक ठी ठर्रा बिसा के पीईस।
फगुवा ह घर अईस ततका बेरा लईका मन ढलंग गे रिहीन। महतारी मनमत ह पंदौली बूता उरकावत रिहिस। सुवारी सेजन ह रंधनी म सकला करत रिहिस। साईकिल के टेके म सेजन ह आकब करीस के फगुवा ह दारू ढरका के आवाथाबे। अटकापारी तीप गे। मईंता भोगा गिस फेर का करय, अनमना कस परछी म गीस अउ पानी पिढ़िया मढ़ईस। अपन बर ओसारी म भात हेरिस अउ कलेचुप बियारी करीस।
सेजन ह कोलकी कोती हाथ मुंह धोईस अउ लुगरा के आंछी म पोछत कुरिया म निंगीस। फगुवा ह भुईयां म बईठे मूड़ म हिमराज तेल चूपरत रिहिस। सेजन के आते फगुवा ह सन्न खाये कस होगिस। रीस के मारे सेजन ह बक्का नइ फोरिस। अगुन छगुन करत फगुवा ह किहिस - ‘बूता म दररे कस लागाथाबे।’
‘टूट काबर नइ गे।’ -सेजन ह हूरसे बरन किहिस। बाना जउन बांधे हे, जेन दिन फगुवा ढरका के आथे तेन दिन ओधन नइ देवय। सरलग आठ दिन पहागे हाबे। कइसे बम्बर नइ होही ? हर्रसहूं किहिस- ‘जांगर चलाथाबे त सरी ल दारू बर हूरकावाथाबस। भट्ठी वाला घर जोरंग नइ जतेस। इंहा काबर आय होबे। पोस लुहूं दाऊ घर के बनि म अपन लईका मन ल।’
च्च्फगुवा ह भूलवारत किहिस-संगवारी मन ताय। कतको बरजेंव फेर नइ मानीन। झींक के बईठार लीन।’ 
च्च्लबारी, ठों ठों लबारी।’ सेजन ह थेथेर मेथेर करत किहिस- ‘वोमन ल का बद्दी देथस। तोरे चाल म आगी लगे हे। तिहीं बकबकाय हस। बने रिहिस दाऊ पारा के बनि भूति ह। सहर म झपा के खुआर होगेस। जतका कमाथस सवांगे सिरवाथस। काली जुवार ले झन जाबे सहर। हमर डिह बने हे। मंडल पारा के भूति बने हे।’
च्च्मोला पतिया वो सेजन। कीरिया।’
‘सौ घंव होगे कीरिया खावत। अतका कीरिया म त बधिया तको गुहू खाय बर बिसर जही फेर तें..., नांक ऊंचा के किथस। कोन मुहू ले कीरिया खाथस। में ह बनि म नइ जाहूं त अंधन नइ माढ़ी। डॉक्टर अउ दुकान के उधार बाढ़ी चार महीना होगे। परखाता गतर के। कुभारज होगे हस कुभारज।’
पयहर कस ओथरे बरन फगुवा ह किहिस- च्च्ते ठउका ल गोठियाथस वो। सहर म झपा गेंव। आज दाई के कीरिया खावाथाबंव। गद कीरिया। न बिहाने ले कभू पियंव न दारू ल सूंघंव।’
फगुवा ह खटिया के पाटी म बइठत रिहिस। सेजन ह झक ले देखिस। हबके बरन वोकर बांही ल रबकईस अउ झींक के भूईंया म बईठारिस। ‘जेन दिन ढरका के आबे तेन दिन न मोर मया पावस न नीक कठौती। भूईंया म सूत.. मर...।’
फगुवा ह ठाढ़ सुखाये कस होगिस। कलेचुप दसना ल भुईयां म दसईस अउ ढलंग गे। सेजन तको रीस के मारे धमरस धमरस येती वोती करीस अउ बत्ती बुता के खटिया म चुरूमुरू हमागे।
मुंदरहा होइस। फगुवा ह नहाय बर गीस। अईस तहां बाखा के अघावत ले खईस अउ बूता म साहर जाये के जोखा करत कुरिया म खूसरे रिहिस। सेजन ह खाना डब्बा ल धर के अईस अउ मढ़ावत किहिस - ‘घेपत ले बिटावाथाबंव। आज कहूं ढरका के आबे ते घरे म नइ निंगन देवंव। रतिहा ल पहाबे मुहाटी म।’
फगुवा किहिस - ‘दाई के कीरिया खाय हंव वो। काहीं थूथील थू नइ करंव। अपन रद्दा जाहूं अपन रद्दा आहूं। इही म हमर बनौकी हे। सुख रउती हे।’
खोर ले बुद्धलाल ह हूत पारीस-फगुवा। फगुवा ह एक घंव सेजन ल निहारिस तहां डब्बा ल धर के गीस। सेजन ह आसरा के नांदी बारे कस टुकुर टुकुर देखत रिहिस। फगुवा ह घर ले बहिरईस तहां अपन सकला बूता करे बर भितर म निंगीस  
डिह टोला ले नाहके पाय रिहिस के एक ठी मंदिर परीस। मंदिर म मनमाड़े मनखे आय हे। कतको मनखे दरस के चिभीक आवाथाबे दरस पा के जावाथाबे। फगुवा ह मंदिर कना बिलम गिस। बुधलाल के तिखरे म किहिस- ‘दरस करे के मन होगे भाइ। तें इही मेर राह, में आ जथंव।’
बुद्धलाल ह ठाढ़े रिहिस अउ फगुवा ह गीस। देंवता के पांव म माथ नवा के किहिस- ‘आसीस देबे भगवान, मोर बनौकी बनय।’
मन फरहीर नइये त मंदिर जवई का, तिरीथ जवई तको बिरथा रिथे। मन फरहीर हे त न उपास के लागे न कथा सराध के। घरेच के कुल देवता म सरी सरधा ह फत पर जथे। उजबक गतर के ह डायली माराथाबे। बुद्धलाल ह मन म गोठियावत रिहिस के मदिर ले फगुवा ह अईस तहां सहर कोती गीन।
वोती लईका मन स्कूल गीन। सेजन ह दाऊ घर बनि बूता म गीस अउ मनमत ह ठलहा बिगारी चाऊंर छिने बर बईठीस।
फगुवा अउ बुधलाल ह अपन ठीहा म जावत ले आन रेजा कुली मन आगे रिहिन। मकान के बूता म साफर होईस ते सरलग करते रिहिस। संझा के होते वोती सेजन ह दाऊ घर के बूता ले जांगर हुरका के घर तनी अइस त येती बर फगुवा मन ह ठेकादार कना हप्ता पूरे के सेती बनि झोंके बर जुरिअईन। ठेकादार ह सरेखा करत जम्मो झीं के बनि बांट दिस।
बुद्धलाल ह बजार बिसावत जाहूं किके अक्केला रेंगदिस। फगुवा ह फेकु ले संघरीस। फेकु तको फगुवा के डिह म रहईया हरय। दुनो झीं अपन अपन साईकिल म डीह के रद्दा धर लीन। मुहाचाही म फेकु ह किहिस - ‘छत ढलई म बूता हबियासोस हो जथे। सरपीन कस जांगर हुरकाये ले परीस। थोकन त थिराये बर बूता अंतरतीस। हकर-हकर। चल संगवारी चाहा पीबो तबहे जीव उच्छाहित लागही।’
दुनो झीं एक ठी चहा ठेला कना बिलमीन। चहा अमरीस तहां चूहके लगीन। लकठा म ठेला रिहिस। कुकरी के गार माढ़े रिहिस। कोनो ल उसने खवावत रिहिस त कोनो ल चीला लहुटा के। दू झीं दरूवाहा मन निसा म माते अईन अउ तीन ठी गार के चीला लहुटाये बर किहिन। एक झीं दरूवाहा ह गोठियाईस- ‘पउवा पउवा ढरकाथन भाई फेर अपन कमई म। असल मार जांगर के पईसा म बिसाये हैं कोनो काबर काहीं कहेगा।’
पढ़े लिखे कम बुद्धि अउ पीये खाय, मंद बुद्धि म, मातृभासा बर कभू मया मोह नइ राहय। बैसुरहा जिनगी जिथे। जउन होय, दरूवाहा के गोठ गत म फगुवा के जीकर होईस तहां मन म पिये के चुलूक झेलरा गे। नइच पिये बर हे किके थीरभाव करीस अउ चहा म जीकर गड़िअईस।
दुनो झीं चहा पी के जावत रिहिसे। भीड़ भाड़ रद्दा। थोरकेच दूरिहा गीस तहां फेकु किथे -‘हकरे कस जीव लागाथाबे। पउवा मारे बिन टन्नक नइ लागही जी।’
फगुवा तको हकर गे रिहिस। अल्लर के मारे साईकिल नइ ओलहावत रिहिस। मन म फेर चुलुक के झेलार ऊंचीस। आन दिन ले आगर नइ मारंव। खोंची भर म मन मढ़ा लेथंव। सेजन ह काहीं काहय अइसे गुने लगीस।
भट्ठी मेर गीस तहां ब्रेक मारीस। फेकु के अढ़ोय म फगुवा ह किथे -‘मन अगुन छगुन हे भाई। ले न तिहीं ढरका। मोला नइच ओसरत हे। सरलग होगे हाबे तेन पाय के बिटासी लागाथाबे।’ फगुवा ह एक घंव फेर मन ल थेम लीस।फगुवा ल फेकु ह कउवाये बरन देखिस तहां भट्ठी कोती टुड़ूंग टुड़ूंग गीस। भट्ठी म वोइसने भीड़ रिहिस जइसने बिहनिया के बेरा मंदिर म। मनखे के कोलबिल  कईयां। वो पईत फगुवा ह दरस बर गीस ये पईत फेकु ह गे हाबे। साईकिल कना ठाढ़े फगुवा ह मन बांधाथाबे। कीरिया ल सुरता कराथाबे। सेजन के ताना अउ मया ह जनावाथाबे। थोरकेच म फेकु ह पच पच थूकत अईस तहां दुनो झीं सईकिल धर के गीन। फेकु ह एक ठी गीद ल सुनीस तहां नवा आखर ल साफर करत गुनगुनाय लगीस।
सुबहो मंदिर साम मंदरालय
दुवे हे वोकर काम
कभू राम कभू जाम
फेंकु के गीद ल फुगवा ह सुनत रिहिस। थोरकेच म चौडग्गा परीस। पोंगा म फिलीम गीद चलत रिहिस। गीद के पहिलीच लकीर म दारू के मान गुन रिहिस। फगुवा ह दारू वाला गीद ल गुनगुनईस। साहर के नाहकती म फेर दारू भट्ठी हे। बुधलाल ह ठर्रा बिसा के आवत रिहिस। देख परीस त हूत पारीस। दारू वाला गीद गुनगुनाये अउ दारू धरे बुद्धलाल ह दूब्बर बर दू असाढ़ कस होगिस। फगुवा  के चुलुक, उबूक चुबूक। सेजन अउ कीरिया के सुरता बियापीस तभे नइ पियौं किके लहुटीस। संगवारी मन गेलौली करीन। जोजिअईन। ठेसरा गोठ करीन फेर फुगवा ह हिरक के नइ गीस। मन म पिये के चुलुक रिहिस फेर मन छांद के जावत रिहिस। चार पाईडील मारे रिहिस के चैन उतर गे। चैन के उतरते साठ फुगवा तको साईकिल ले उतर गिस।
घर म लईका मन बियारी कर डरे रिहिन। सेजन ह भीतर अउ ओसारी के सरेखा करत रिहिस। फगुवा ह अईस। फगुवा ल निसा म लथरे गत देखिस ते सेजन के देंह लाहक गिस। सेजन ह निरौना लगईस त फुगवा ह थू थब्बी करीस। सेजन ह आंव देखिस न तांव फुगवा ल ढपेलत खोर म लेगिस। सींगफाटक ल ओधा दिस। रीस म फनफनाय सेजन ह फगुवा ल जे बर पूछिस न बियारी करीस अउ कुरिया म जा के ढलंग गे। मनमत तको काहीं नइ कीह सकीस। फगुवा ह मुहाटी के आट असन म बईठ गिस।
मनमत ल उंघासी आवत रिहिस न मन म थीरभाव। अधरतिया ऊंचीस तहां सींग फाटक ल हेर के किहिस आ बेटा परछी म ढलंग जबे। मनमत ह लहुट गीस। फगुवा के आंखी तर होगे। दाई के जउन कीरिया खाय हे, मार बानी वाला कस बइठे रिहिस। मन म किहिस कतको चुलुक लागे फेर दारू ल नइ सुघंव। कीरिया ल बिसारेंव तेकर इही डांड़ होही। इहीच मेर रात पहावहूं।
पहाती के सुकुवा ह बूड़े पाय रिहिस के सेजन के नींद उमचीस। जीकर गिस। धर्रा पट्टी ऊंच के गीस। सींग फाटक ल उघरा पईस। सेजन ह आकब करीस के मनमत ह रात म फाटक ल हेरे हे। ओधे कपाट ल हेर के मुहाटी म गीस त देखिस के फगुवा ह बइठेच हे। वोकर आंखी म पछतौनी ह उपक गे रिहिस। सेजन के तको आंखी डुहडुहागे। बिहनिया त होवईया रिहिस, दुनो के जिनगी म बड़े फजर के रिते बिहान होगे।

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चंद्रशेखर चकोर 
परिया टोरउनी रेगहा :  छत्तीसगढ़ी कहिनी संग्रह
लेखक- चंद्रशेखर चकोर
ग्राम कान्दुल, पोस्ट सुन्दर नगर, 
जिला रायपुर 492013 (छ.ग.)
मो.- 9826992518
प्रथम संस्करण-2019
सर्वाधिकार लेखकाधिन
मूल्य-300/-

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