छत्‍तीसगढ़ी कहानी : झोला छाप डाक्टर

झोला छाप डाक्टर

उलहा टोला के रहईया सुकलाल। साहर के एक झीं सेठ घर बूता करे बर जाथे। नौ बज्जी टोला ले निकर के साहर जाथे तेन ह रतिहा के नौ बजे लहुटथे। जेन पईत ले सुकलाल ह टोला के बनि भूति ल बिसार के साहर के रद्दा म डंका मढ़ईस, उही पईत ले जेन पचआसी वोकर मन गुनान म सिरचीस तेन ह वोला खरदंगीया लहुटा दिस। सेठ मन के परताप ले भाखा कलथ मारे हे। आदहा अंग के महमाई।
सनिचर के बात आय। सुकलाल ह रतिहा के नौबज्जी घर म अईस। बड़े टूरा सरजू ह छिंकत सुरकत रिहिस। तालाबेली गत म किहिस- ‘साइकिल ल झपकून टेंका बाबू, डाक्टर कना जाये बर हे।’
साईकिल ल टेंकावत सुकलाल ह आरो लीस- ‘डाक्टर कना काबर जाबे तेमा रे?’ सरजू ह तुरतेच छिंकीस अउ फरफर ले छिरक के किहिस-तुर्रा फेंकावाथाबे। च्तहूं ह घातेच पींगपींगहा हस रे। दस दिन पहाये न पंदरा, भनभना डरथस। नानपन म तको तोर रेमट बोहावत राहय। रेमटा गतर के। कतको बरजबे फेर अंते तंते खाये म जीसी नइ राहय’ सुकलाल ह कुड़बुड़ावत परछी म गीस अउ खूंटी म झोला ल अरोईस। लईका सरजू ह पाछू पाछू रेंगत लकठा म खड़े रिहिस तेन ह बक्का फोरिस- नाक बोजा गे त में का करहूं गो। बरपेली कस किथस। हब ले चल नइते डाक्टर ह अपन घर कोती रेंग दिही। 
‘ये झोला छाप डाक्टर मन का जानही, तोला बड़े डाक्टर कना लेगहूं। साहर के बड़े डाक्टर। जेखर कना मोर सेठ के लईका मन जाथे। डा. पी.के. बिमार।’ सरजू-च्बिमार। बिमार डाक्टर तको होथे तेमा गो?’
चुप रे लपरहा। जा पीये बर पानी लान। घातेच पियास बियापत हे। सुकलाल ह परछी म परे बईसका ल भिथिया के तीर मढ़ा के बईठीस अउ पानी अमरे बर सरजू ह रंधनी म निंगीस। 
बिहान दिन सुकलाल ह अपन साइकिल म सरजू ल बईठारीस अउ रेंग दिस साहर। पहिली घंव साहर के बड़े डाक्टर कना गे हाबे। डाक्टर ह पूछिस। एथेटीसकोप ल छाता अउ पीठ म मढ़ा मढ़ा के तरी ल अटकरीस अऊ तहां फेर कागज म लिखिस दवा के नांव। सुकलाल ह कागज ल झोंक के लहुटत रिहिस के डाक्टर ह मांगीस-‘एक सौ पचास रुपया।’
सुकलाल ह झक ले होगे। गांव के झोला छाप डाक्टर ह पच्चास रूपया ले आगर कभूच नइ लेवय। संग म दवा तको देथे। लुटाय कस सुकलाल ह खीसा ले हेर के एक सौ पच्चास रूपिया डाक्टर ल दिस। डाक्टर ह निरदयी कस झोंकिस अउ अढ़ोईस-‘बाहिर म दवई खरीद ले।’
डाक्टर के भाई ह अस्पताल के दुवारी मेर दवई दुकान खोले हे। डाक्टर ह उही दवई के नांव ल कागज म लिखथे जेन ल वोकर भाई ह बेंचथे- बरोथे। डाक्टर के झटका ताय। मांहगी मांहगी दवा म घातेच कमई। सुकलाल ह झखमारी कस दवा ल बिसईस। तीन सौ रूपया के दवई। सुकलाल ह भागमानी हे, नइते साहर के कतकोन डाक्टर ह पईसा कमाय बर थोक थोक म खून अउ पेसाब के टेस्ट करवा देथे। दवई दुकान अउ बरपेली के खून टेस्ट म डाक्टर ह मरीज मन ले नंगते कमावाथाबे। चार घंव रेंगा दिस ते गरीब के पूंजी बेंचा जथे। पईसा के भूख ह अइसने ताय, मनखे ल बेईमान बना देथे अधर्मी चोर बनाथे।
सुकलाल ह सरजू ल धर के घर अईस अउ बड़े डाक्टर के पाछू होय खईता खुआर ल गोठिअईस ते सुवारी सोनारीन ह बम होगे। उछरीस-‘चार दिन साहर का गेस उदाली मारे बर धरलेस। टेसिया गतर के। साहर के बड़े डाक्टर। बिसेसगिया। बपरा गांव के डाक्टर ह इहां के सरी मनखे ल थाम्हे हे तेन झोला छाप होगे। उटक देस फट ले। इही झोला छाप डाक्टर ल आदहा रात के बलाबे त आधा नींद म आ जथे। साहर के डाक्टर ह नइ आय ये गांव म। साहर ले दूरिहा ये गांव ल उबारे हे त इही झोला छाप ह। कोनजनी ये नइ रितिस त इहां के का होतिस।’
पयहर गत म सुकलाल ह बाना बांधिस- ‘न साहर के बड़े डाक्टर ल जानंव न कोनो बिसेसग्य के मुहाटी म ओड़ा देवंव।’
सुकलाल का उलहाटोला के सरी मनखे ह टोला के डाक्टर कना जाथे अउ पच्चास रूपिया म बिपता ले उबर जथे। एक दिन के बात। मंझनिया के बेरा साहर ले दू झीं साहब धमकीन। साहब मन टोला के डाक्टर कना गीन। तखियात करीन। उलहाटोला के घातेच मनखे वोमेर सकला गे रिहिन। साहब ह बौछावत रिहिस-‘ये झोला छाप वाला डाक्टरी नइ चलय..। बिना काहीं बड़े डिगरी के दुकान चलावाथस। गांव के मनखे मन ल उजबक बनावाथस।’
साहब के अईबी गत ल देख सुकलाल के जी भन्ना गिस। हर्रस ले किहिस-‘बईहा अव का साहब। लागथे कोदो दे के पढ़े होबे नइते पईसा दे के पास होय हस।’ साहब मन हूरसे बोली ल सुन के बक खा गे। बोकबाय होगे। सुकलाल ह हरिया धरे कस किते रिहिस-‘हमर गांव के ये दिना डाक्टर ह तोर बर झोला छाप होही। साहर के बड़े -बड़े नर्सिग होम वाला मन बर झोला छाप होही। इहां बर इहीच ह भगवान आय भगवान।’
लकठा म खड़े गुरूजी ह किहिस-‘चइहां के चार हजार आबादी ल सरदी बुखार होथे त कोन सरेखा करथे? सरेखा करथे त ये दिना डाकटर ह। कोनो उछरत पोंकत हे त वोला कोन उबारथे ? उबारथे त ये दिना डाक्टर ह। ककरो घर होय छेंवारी उंचथे त इही दिना डाक्टर ह जीकर करथे। तोर साहर के जवई अउ वोकर फिस म त डिह टोला के मनखे बरोबाट हो जही। वोकर मन बर डाक्टरी ह बेवसाय ये साहब अउ येकर  बर सेवा।’
सरपंच ह किहिस-‘येला सेवा करन धक साहब। झोला छाप किके काहीं बंधना म झन बांधव नइते फेर साहर ले पठोवव कोनो डिगरी धारी ल ये गांव म। बनावय पच्चास सौ रूपया म सबके बनौकी।’
टोला वाला मन के रीस अउ गेलौली ल देखीन ते साहब मन सुकुरदुम होगे। चीटपोट नइ करीन। लहुट तको गीन। कइसे नइ लहुटही। लईका होय चाही सियान, दिना डाक्टर ह पच्चास-सौ रूपया म बने कर देथे। अतके बर साहर के बिसेसग्य डाक्टर मन दू तीन सौ रूपया लेथे। दू चार सौ रुपया के दवई उपराहा।
साहब मन के लहुटे ले सुकलाल ल नीक आकब होईस। अब घर म कोनो ल काहीं अलकर लागथे ते तुरते दिना डाक्टर ल सोरिया लेथे। दिना डाक्टर तको सरी गीनहा ल संवरा देथे। एक दिन के बात ये। सोनारीन के पेट पीरईस। सुकलाल ह दिना डाक्टर कना लेगीस। दिना डाक्टर ह तीस रूपिया फीस अउ तीन खुराक दवा दिस। दुवे खुराक के खाये म पीरा माढ़ गे।
दस दिन पहाये न पंदराही, सोनारीन के पेट म पीरा उमचथे। लीमउ पीये म बने हो जथे नइते दिना डाक्टर के दू खुराक दवा म। अतका घंव पीरा उमचगे फेर दिना डाक्टर ह कभू ये नइ किहिस के पेट के बिसेसग्य कना जा। संवागे के परतीत म दवा खवावत रिहिस। माघ महीना के मुंधियारी पाख म तीज के दिन सकट तिहार रिहिस। सरी छत्तीसगढ़िया एहवांती मन कस सोनारीन तको सकट के उपास रिहिस। दिन भर के उपास। बेरा के बूड़ते पेट म पीरा ह अटकर होईस फेर का करय सहे बर परीस। पीरा ल साहत पिढ़िया म पीसान सान के डोंगा बनईस। फरहार बर तिली के लाड़ू बनईस। रतिहा के उवत चंदा ल देख के अंगना म पूजा बर बईठीस। पूजा ल कइसनो होय उरका त दिस, फरहार नइ कर सकीस। सुकलाल ह दिना डाक्टर कना ले दवई लानीस।
ये पईत के पीरा ह पेरे बर रिहिस तेन पाय के माढ़बे नइ करीस। रात पहईस। दिन के दू जुवार पहागीस। सोनारीन ह कलहरते रिहिस। थर खाके सोनारीन ल सुकलाल ह सहर लेगीस। मनखेपन के मारे सेठ तको अस्पताल म अईस। आरो पाके भन्नईस ‘करमफूटहा गतर के, पीरा ह दस पंदरा दिन म उंचत रिहिस त साहर काबर नइ लायेस। पेट के डाक्टर कना काबर नइ देखायेस।’
सुकलाल ह पयहर गत म किहिस- ‘गांव के डाक्टर कना लेगत रेहेंव। वोकर दवा म माढ़ जवत रिहिस।’  सेठ ह फेर तमकीस-अरे गांव के झोला छाप डाक्टर ह अंदरूनी बीमारी के आरो नइ पावय। रीह रीह के पीरा उमचत रिहिस त सोझ इहां आतेस। कोनो पेट के डाक्टर ल देखाते। च्सेठ के संग सुकलाल ह मुहजोरी थोरे करही। भोकवा बरन वोकर रीस के बान ल साहत गिस। वोती बड़े डाक्टर ह सोनोग्राफी करीस त जानीस के वोकर पेट म काहीं गोला हाबे। पीरा के उमचतीच म बड़े डाक्टर कना ले आनतीस त दवई म सुभित्ता हो जय रितिस। दिन्नी के सेती गोला तको बाढ़गे। अब त आपरेसन करेच ले परही। आपरेसन खोली म सोनारीन ल लेगिस। सुकलाल ह मने मन गुनाथाबे -‘झोलाछाप डाक्टर ह कतका घंव के जूड़ बूखार अउ उछरे के बिपत ले मोर खाप ल उबारे हे तेन ल मिही जानहूं। झोला छाप डाक्टर नइ रिहि ते गांव के मनखे भोसा जही, काबर के साहर दूरिहा हे। साहर के बड़े-बड़े डाक्टर मन थोक थोक म खून पेसाब जांच के ओढ़र पईसा सोंटथे। एक्सरा अउ आन कांही जांच के पाछू कोचिअई खाथे। आगर पईसा के लाहर म सवांगे दवई दुकान चलाथे। माहंगी ले मांहगी दवई खवाथे। अउ झोला छाप डाक्टर ह.. कमतीच पईसा म दवई देके टन्नक बना देथे। आदहा रात के सोरियाबे त अधरतियच सेवा करथे। सरदी , खांसी, बुखार, उछरई अउ पोंकर्री ले कइसनो होय उबार लेथे। गांव बर उही भगवान ये। मोर सो..। मोर सो अतके बिगाड़ होईस के सोनारीन के पेट पीरा ह दू तीन घंव दवई खाय के बाद उमचते रिहिस त सोझ बड़े डाक्टर कना लानतेंव, फेर नइ लाने पायेंव। उहिच मेर अरझे रेहेंव। दुनो डाक्टर अपन अपन फेर म बने हे।’
सोनारीन के आपरेसन ह निक होईस। पंदराही के दवई परहेज म सुमित्ता होगिस। जिनगी म दुख सुख, गांसा पखार अउ बने-गिनहा आते रिथे। बेरा के संग पहा तको जथे। सुकलाल ह अबहो अपन गांव के झोला छाप डाक्टर कना जावत रिथे। काहीं अंते अलकर कस गिनहा म बड़े डाक्टर ल सोरियाथे। इही रद्दा म रेंगे बर अपन गांव के मनखे मन ल सोर देवत रिथे। अब कोनो भोरहा नइ खावय न ककरो उपर बड़ बिपता आय अइसे परतीत के नांदी ल बारे रिथे।

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चंद्रशेखर चकोर 
परिया टोरउनी रेगहा :  छत्तीसगढ़ी कहिनी संग्रह
लेखक- चंद्रशेखर चकोर
ग्राम कान्दुल, पोस्ट सुन्दर नगर, 
जिला रायपुर 492013 (छ.ग.)
मो.- 9826992518
प्रथम संस्करण-2019
सर्वाधिकार लेखकाधिन
मूल्य-300/-

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