छत्‍तीसगढ़ी कहानी : ढोंगी बिलई

ढोंगी बिलई

तईहा के बात ये। गुड़ी पारा म मुकु नांव के एक ठी बिलई रिहिस। मुकु बिलई के छट्ठी ह गुड़ी पारा म ऊंचे रिहिस अउ उहेंच बाढ़ीस तको। छेंवारी ले अबही तक गुड़ीच पारा म राहय अउ उहेंच छुछवावय। बिहनिया होय चाही रतिहा, रोजेच एकईस ठी घर ल किंजरय। ककरो न ककरो घर काहीं न काहीं जे खाय बर पा लेवय। जे खाय तहां गुड़ी पारा के आन बिलई मन संग खेलय अउ बेरा पहावय। बिलई पंचन के मरम रिहिस के कोनो बिलई होय अपन पारा के एकइस घर म किंजरही, आन बिलई के पारा म मछरी कुकरी चूरे रिहि तभो झन जाही। मरम ल डिह भर के बिलई मन मानत रिहिन। सांति, सुन्ता अउ रउति बर मरम धरम अउ नर नियाव बनाये जाथे अउ माने ल परथे।
एक दिन का होइस के गु़डी पारा ले सटे बनिहार के घर म मछरी चूरे रिहिस। एक त बनिहार के घर अउ छेंवपारा। वो पारा के बिलई ह  छूछवाये बर नइ अईस। लागथे वो पारा के बिलई मन ह अपन पारा के आन घर मन म जे खा डरे रिहिन होही। मुकु बिलई ह अबड़ बेरा ले देखिस। बनिहार के घर म वो पारा के बिलई मन आते नइये अउ परछी म मछरी के कांटा मन ह परे हाबे। मुकु बिलई के सईता छांड़ दिस।
मुकु बिलई  ह येती वोती ल देखिस अउ कले चुप बनिहार के घर म गीस। मछरी के कांटा ल मार आंखी मूंदे चोखिया चोखिया के खाय लगीस। ठउका वो पारा के बिलई ह आ परीस ते मुकु बिलई ह धरा गे। मुकु बिलई ह थूथील बद्दा करीस तभो नइ मानिस। अपन होय चाही आन, नर धरम के टोरईया ह पयहर होथे अउ ये थब्बी दे म बेवस्था ह छरिया जथे। डिह म बिलई मन के जुराव होइस। जम्मो बिलई मन ह दाऊ के फूटहा परसार म जुरिअईन. सरी के गोठ ल सुनीन तहां डिहयार बिलई ह डांड़ लेवत किहिस-मुकु बिलई, तेंह सईता के मारे बेवस्था के मान नइ करेस। जिनगी म कइसनो दुख दुरघट आये, अपन मरम महत्ता ल नइ छोड़ना चाही। परान भले जाय फेर सत ह झन जाये। इही म सुख संसार हे। तोर पय के इही डांड़ के तेंह एक पुन्नी के पहावत ले डिह ले बाहिर रिबे। आजो पुन्नी हे। काली ले तोर डांड़ के सुरू होही। 
जुराव उसल गिस। सरी बिलई मन चारी करत अउ सोह मरत अपन-अपन पारा म चल दिन। मुकु बिलई ह बइठे रिहिस तेमेर ले उठबेच नइ करीस। दुख म आंसु बोहावत पछतावत रिहिस। पहाती के सुकुवा ह लुकईस अउ बेरा पंगपंगईस तहां मुकु बिलई ह डिह ले निकर गे। चारा के टोह म किंजरत रिहिस। घर के रहईया अउ सिद्धो के खवईया ल बन म जियानथे। आगर म सिकार करे बर  पराथाबे। बेरा मंझन होगे फेर चारा नइ पईस। पोटा ह खोलागे, उपराहा म पोटा ये सेती कांपत रिहिस के कुकुर कोलिहा झन अभरा लेवय। रद्दा म जउन केकरा मेचका पईस तउने ल लटपट हबक के पेट के रकसा ल भुलवारे लगीस। पेट के रकसा ल त भुलवारीस फेर अघावत नइ रिहिस। ताते तात सिद्धो के खवईया ल जउन रांधे बर परे हे जीव कलबला गिस। डांड़ त डांड़ होथे भोगे ले परहीच। बिलई ह आंकड़ा होय के सेती बम्बावत रिहिस। अइसे आकब होय लगीस के कहूं सुतक झन लग जावय।
एक घंव अघईस तहां अपन थूथील के निरवार करत बइठे रिहिस। उदूप ले देखिस के जुना गस्ती के जर संद ले ओसरी पारी तीन चार कोरी मुसुवा ह निकर के खेलत हाबे। भूख नइये त छप्पन भोग बिरथा कस होथे। मुकु बिलई ह एको ठी ल नइ हबकीस। गुनतारा करीस के जम्मो मुसुवा ल कइसे खावंव। मुसुवा के गोहड़ी म मोर एक पुन्नी पहा जही। एक घंव फेर लहर के लाहरा ह मन म ऊंचीस अउ पाप पय के पल्हरा ह  बुद्धि म घपट गिस। एक ठी पय के डांड़ ल भोगाथाबे अब पाप के हूल म कुदे के मन करीस। अनफबीत बूता गोठ बर बुद्धि तको अगुवाहा कस काट करथे। मुकु बिलई ह डबरा खोचका म खोजत गीस अउ दू चार ठीन डड़वा कोतरी ल मार के माला गूंथ लीस। माला ल गर म अरो के माथा म लाली रगड़ के टिका बना लीस। साधु- बैरागी बरन गस्ती कोती गीस। जम्मो मुसुवा मन सरी फॉक खेलत रिहिन। मुकु बिलई के आरो पईन तहां दोरदिर ले अपन बिला म नींग गे। बिलई ह गस्ती के खाल्हे म बइठ के भजन गाये लगीस। मुसुवा मन बिला के मुहाटी म बुलुंग-बुलुंग करीन। बिजरईन अउ गारी तको बखानीन।
मुकु बिलई ह किहिस- तुमन काबर बुलुंग बुलुंग कराथाबव। अपन अपन भोंड़ू ले निकरव अउ किंजरव। में तुमन ल काहींच नइ करंव। मे त साधु बन गे हंव। मोर मन म न सईता हे न कोथा म भूख। ये देखव मछरी मेचका के माला पहिरे हंव।
मुसुवा बेड़ा के सियान ह भूसभूस करीस त मुकु बिलई ह परतीत देवात किहिस-लागथे तुमन साधु के महत्ता ल नइ जानौ, में ह सात्वीक होगे हंव। ओस चांट के जिथंव अउ ठांव ठांव गुन गियान बगराथौं। तहूं मन आवव। मोर संग खेलव अउ जग के सरी सत महिमा ल जानव।
मुकु बिलई ह ढोंगी आय किके नइ जानीन अउ मुसुवा मन वोकर संग खेले लगीन। किसिम किसिम के खेल खेलीन। बिलई के संग खेले म मुसुवा मन ल अलगेच मजा अइस। बेरा सिरईस तहां सरी मुसुवा ह  खेलई कुदई ल बिसार के अपन अपन बिला म निंगे लगीन। जेन मुसुवा ह जम्मो ले पिछवईस तेन ल मुकु बिलई ह पांव म दबा दिस। पिछवाय मुसुवा ल ढोंगी बिलई ह हबक दिस तेन ल बिला म ओइले मुसुवा मन का जानय, बिलई ह पईध गिस। मुसुवा संग खेलय अउ ओइले के बेरा जेन मुसुवा ह पिछवावय तेन ल खा देवय।
पय पाप ह न खरतरिहा के होय न दई देवता के। सियान मुसुवा ल अइसे आकब होइस के वोकर बेड़ा ह कमतियावत हाबे। भूसभूस गिस त मुसुवा मन के जुराव करीस। सबले भोकंडा हाबे बिजाड़ मुसुवा ह। बिजाड़ मुसुवा ल अढ़ोईस-जलधस सरी मुसुवा ह नइ ओइलही तलघस तेंह बीला म झन नींगबे। गस्ती जाके कोनो खोलखा नइते ओदहा म सपट के पासत रिबे।
बिजाड़ मुसुवा ह वोइसनेच करीस। खेले बर निकलीन त बिजाड़ मुसुवा ह रूख के फिलिंग म बइठ के खाल्हे ल देखत रिहिस। रोज असन बिलई संग खेल कूद के मुसुवा मन ह बिला म ओइलत गीन। जइसे पिछवाय मुसुवा ल बिलई ह हबकीस तइसे रूख म बइठे बिजाड़ मुसुवा के आंखी बरगे। बिजाड़ के जीव सोंठ होगे। आदहा बल करत रूख ले उतरीस अउ बिला म गीस। बिला म नींगे ले आगु बिलई ल बता दिस के तेंह ढोंगी अस। बिलई के चेत उड़ागे।
सरी मुसुवा मन फेर बुलुंग बुलुंग करीन अउ घातेच गारी बखानीन। बिलई ह कतको कीरिया खईस फेर वोकर गोठ म नइ अइन। एक ले दू अउ दू ले चार दिन होगे फेर मुसवा मन नइ मानीन। मुसुवा के बिला म कोठी होथे जेमा सकला अन भरे रिथे। मुसुवा मन ह कोठी के अन ल खावत रिहिन। बिलई ह काला खाय। चार दिन के मनावत ले पेट खोलागीस। पेट के रकसा नाचे ले हलाकान होइस अउ मुसुवा कोती आसरा नइ दिखिस तहां माला के मछरी ल करदंग-करदंग खईस अउ जुगार म रेंग दिस। चार दिन के अइसने लांघन। रद्दा म कांहीं चारा नइ  रिहिस अउ कुकुर के टेन म झपा गे। इही ल किथे दुब्बर बर दू असाढ़। कुकुर मन बन्नी बन्नी देखिन अउ कुदईन। मुकु बिलई ह परान बचाये बर पल्ला डिह कोती गीस। डिह ले डिहयार बिलई मन ह वोकर निकारा करे हाबे तभो ले डिह के घर म लुका के कुकुर मन ले बोचकीस। जेन घर म गे रिहिस तिहां थोकन थिरईस। संसा ह थेगहा पईस तइसे वो घर म दूध चूरे के सोंद पा लीस। जीव जाग गे। धर्रा पट्टी दूध खोली म गीस। खउड़ा म कूड़ेरा अउ कूड़ेरा म दूध उखनावत रिहिस। एक त ढोंगी उपर ले सईताहा, मुकु बिलई के जीव ह धीरज ल नइ जानीस। हड़बड़ावत दूध के साढ़ी ल मुहु म अमरीस। पांव ह थोकन छलंड का गे, उखनावत दूध म बिलई ह सउहे गीर परिस। थोरकेच म बिलई ह कांदा कस उसनागे। कोनो पंचन होय, राज्य होय, समिति होय, देस होय चाही जीव जन्तु सबके मरम बेवस्था होथे, जेन ल सईता सुवारथ म नइ बिगाड़ना चाही। जेन बिगाड़थे तेन ह अऊ बिगड़ते  जाथे। एक दिन ढोंगी मुकु बिलई कस बिन मरना के मरना सिरा जथे।

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चंद्रशेखर चकोर 
परिया टोरउनी रेगहा :  छत्तीसगढ़ी कहिनी संग्रह
लेखक- चंद्रशेखर चकोर
ग्राम कान्दुल, पोस्ट सुन्दर नगर, 
जिला रायपुर 492013 (छ.ग.)
मो.- 9826992518
प्रथम संस्करण-2019
सर्वाधिकार लेखकाधिन
मूल्य-300/-

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