छत्‍तीसगढ़ी कहानी : सासन के रासन

सासन के रासन

डोमाडिह के सरी मनखे बर जिंनगी के थेगहा खेती-किसानी ह आय। डोली के मया ल बिसार के कोनो मनखे होय सुख नइ भोग सकय भलूक लघियाते लांघन आंखी लोमे बर पर जही। अइसन ये सेती हो जही के गांव म न गौटिया हे न दाऊ, जउन हाबे तउन आय मंडल, भूतियार नइते फेर बनिहार।
डिह के कतको बनिहार मन ह साहर चल दिन हे। जेन मन ह डेरा डांगरी नइ उसाले हाबे तेखर जिनगी ह एक लांघन दू फरहार होगे हाबे, काबर के जनवरी ले जून तक गांव म काहीं खास बनि भूति नइ चलय।
मंडल मन ह अपन डोली अपन बखरी म मड़ियाय सुख रउती ल अटकराथाबे। अटके परे बनिहार तियार के अपन भूति बनावाथाबे अउ सरी तीज तिहार अउ चारयानी के मजा लेवाथाबे।
डिह म उबरे बरन हाबे त सरी भूतिहार मन ह। जेन मन अपन दू तीन एकड़ डोली म किसानी करथे अउ बखत परे मंडल मन घर बनि तको जाथे। येमन न बनिहार बरन डिह ल बिसार सकय न मंडल मन कस अपन डोली म जांगर टोरत रउती के गीत गुनगुना सक य। अइसने भूतियार म एक झीं हे झाडू। झाडू के सुआरी हे सुकलिया। दुनो परानी अपन तीन झीं लईका फेंकू, फगनी अउ फिरन के संग हंसी खुसी दिन पहावाथाबे। अपन खेत के भूति अउ ठलहा बिगारी म मंडल मन घर के बनिहारी म सुघ्घर सुख पावाथाबे। बेड़ा, पंचन अउ गांव के चरयानी म साफर के दिन ल नहकावाथाबे।
एक पईत अइसे होईस के डोमा गांव के रावन म मुरमी नाये के सरकारी योजना अईस। सरपंच ह बनिहार मन के संग झाडू ल तको अढ़ोईस। बनिहार मन संग झाडू अउ सुकलिया ह मुरमी नाये के भूति म जाय लगीन। रोजेच के नब्बे-सौ रूपया बनी पईन ते दुनो परानी ल सरकारी बूता ह ओल्हागे। कभू गोदी त कभू गिट्टी करमकभू पुलिया निरमान त कभू पचरीकरन, सरकारी सिलि ह किंजरते रिहिस।
झाडू कना बनि के पईसा सकलावत रिहिस तेन पाय के एक दिन दुनो धनि सुवारी मुहाचाही म लगे रिहिस के का सरेखा करबो। ठउका गांवे के मुकेश ह आके बतईस-कका मैं ह पी.डी. फायनेंस कंपनी के एजेन्ट अंव। कम्पनी म पईसा जमा कर दे, पांच बछर म दुगुना हो जही। मुकेश ह गांवेच के पढ़े लिखे टुरेलहा आय जउन ह नेटवर्किंग के बूता कराथाबे। लागमानी, संगवारी अउ चिन्हार के मनखे मन कना पईसा जमा करवा के कमीशन पावाथाबे। झाडू ह भूसभूसाय बरन थोकन अगुन छगुन करीस तहां पईसा जमा करे के फार्म ल भर दिस।
लगते जुलाई सरी किसान मन ह अपन अपन खेत जाये लगीन। झाडू ल सरकारी बूता के सेती खेती बर बेरा नइ ओसरीस त अधिया म अपन सरी डोली ल दे दिस। अधिया म दिस तहां खेत के मेड़ो ल बिसर गे। घर ले पउंरी उसलय तउन सरकारी योजना के बूता बर नइते फेर बइठे ठांगुर घर म दिन पहा देवय।
अधिया के खेती कतेक, बने हियाव करईया होगे त सिरज जथे नइते फेर कलथ मारथे। कोरे गांथे बेटी नीदें कोड़े खेती। अधिया लेवईया खेतिहर ह बने जीकर नइ करीस। सावां, कउंवाकेनी अउ दूबी ह सिरच गे। धान ह थोक अक होईस तउन ल आधा आधा बांट लीन।
झाडू ह अपन तीन एकड़ खेत म थोक अकन अन्न पाईस तभो ले वोकर मन ल अखर नइ होईस काबर के सासन के रासन ल सोला आना पावाथाबे। सासन के रासन म बने टी.वी.तको बिसा डरीस। येखर बाद झाडू के जिनगी, तीन मन तेरा म ढोल बजाये डेरा म कस होगे। अपन रद्दा आवय अउ अपन रद्दा जावय। मंडल मन के मुहाचाही ल बिसार दिस। डिह के जुराव अउ गुड़ी के ठट्ठा म साफर होवई ह नोहर होगे।
जून के भोंभरा अउ बेरा के ताव ह सरकारी बनी के आगू डोहर होगे। सड़क भूति अइसे चलत रिहिस के जर जूड़ म तको झाडू ह नांगा नइ मारत रिहिस। रोजाना के नब्बे -सौ रूपया झोकत रिहिस अउ पी.डी. योजना म खत्ता के खत्ता जमा कर देवय।
जून के पहाते झाडू ल फेर अपन तीन एकड़ खेत के संसो होईस। जुलाई लग गे, बादर बरसगे। किसान मन के धान बोवई पसलोर होवाथाबे फेर वोकर खेत ल कोनो अधिया म लीन न रेगहा म।
झाडू अउ सुकलिया ह गुनीस के अब का करबो? दुनो के एकेच मंसा होईस के खेती करबो त सरकारी बूता ह बिल्होराही।  खेत म जांगर टोरबो तेखर ले बने हे सरकारी भूति ह। न दवई खातू के संसो न दुकाल के भूसभूस। झाडू के तीन एकड़ डोली ह परिया परगे।
डोमा डिह के सरी भूतियार अउ मंडल मन ह जुलाई ले अपन खेत म जीकर लगाये जांगर टोराथाबे त झाडू मन ह सरकारी काम ल उरकावाथाबे। सबोच के भाग सम्हराथाबे। चारो मूड़ा हरेली, राखी, कमरछट अउ पोरा के उच्छाह संग पीतर तको पहागे।
अलहन ह आरो देके नइ आवय। दसेरा के नाहकते मुकेश के पी.डी. फायनेस कंपनी के आफिस बंद होगे। कोनो -कोनो किहिन के एजेन्ट मन ह बइठ गे हाबे। काहीं होय, वोमन छत्तीसगढ़ ले करोड़ो के रकम ल धर के टरक दे हाबे। एजेन्ट मन मुहुलुकवा होगे। सरी मनखे संग झाडू तको निरौना लगईस फेर का हो सकथे? छत्तीसगढ़ ले अइसन पच्चासो कम्पनी ढप खाये हाबे।
झाडू के जमा पईसा ह चरचरावत घाम के कमई रिहिस। अइसे गंवागे जनामना जानबे नइ करत होही। मुहुं ओथर के रिगे। जबर बिपता झाडू उपर तब अईस जब चुनाव के अचार संहिता लागू होय ले सरकारी सिलि म ढांक माढ़ गिस। दुब्बर बर दू असाढ़।
सरकार ल चाही के विकास के अपन सरी योजना ल जनवरी ले लेके जून तक चलावे। जेखर ले बनिहार, भूतियार अउ मंडल मन ह जुलाई ले दिसम्बर तक खेती के काम करे। अन्न के बिना मंत्री होय चाही संतरी, अधिकारी होय चाही भिखारी जिनगी त चलबे नइ करय।
झाडू बर अब सासन के रासन महमा बनगे। न सरकारी भूति न खेत म फसल न सकलाये पईसा अउ मंझोत म ठाढे सउंहे देवारी के तिहार। धपोर दिस। रोये म राम नइ मिलय। झखमारी कस खेत के मेड़ म डंका मढ़ईस अउ मंडल मन घर दुनो परानी बनिहारी म गीन। दुनो परानी मुहाचाही म अतके किहिन खेती ह जिनगी के थेगहा आय। इंहा ले ओसरही तभे अउ कोनो मेर ओड़ा देबो। अऊ तहां फेर चउमास अईस। अपन परिया लहुटे डोली म जांगर हुरकईस। झाड़ू के जिनगी म नवां रंग भराय लगीस। फेर खेतिहर के गत गुनगुनाय लगीस।

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चंद्रशेखर चकोर 
परिया टोरउनी रेगहा :  छत्तीसगढ़ी कहिनी संग्रह
लेखक- चंद्रशेखर चकोर
ग्राम कान्दुल, पोस्ट सुन्दर नगर, 
जिला रायपुर 492013 (छ.ग.)
मो.- 9826992518
प्रथम संस्करण-2019
सर्वाधिकार लेखकाधिन
मूल्य-300/-

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