छत्‍तीसगढ़ी निबंध संग्रह: भोले के गोले

छत्‍तीसगढ़ी निबंध संग्रह: भोले के गोले

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  • कृति- भोले के गोले
  • लेखक- सुशील भोले
  • विधा- निबंध, व्‍यंग्‍य, आलेख, कहानी
  • भाषा- छत्‍तीसगढ़ी
  • प्रकाशक- वैभव प्रकाशन
  • संस्‍करण- 2014
  • कॉपी राइट- लेखकाधीन
  • सहयोग- छत्‍तीसगढ़ राजभाषा आयोग छत्‍तीसगढ़ शासन
  • मूल्‍य- 100/- रूपये

ऑनलाइन पढ़े अब छत्‍तीसगढ़ी किताब- भोले के गोले
अनुक्रमणिका-

क्र. व्यंग्य /लेख / कहानियाँ

अपन बात...
सिखती बेरा के रचना मन ल आज पढ़बे त हांसी घलोक लागथे, फेर वोकरे मन बर मोह घलोक जादा होथे, वो लइकुसहा बेटा सहीं जेला अंगरी धर के रेंगे बर सिखोएन। मोरो ये किताब के रचना मन अइसने बेरा के रचना आंय, जेकर मन के अंगरी धर के मैं लिखे-पढ़े बर सिखेंव। एमा कतकों अनगढ़ना बानी के घलोक हे, तभो ले ए मन ल आप मन के आगू म राखे के उदिम करत हौं।
ये जम्मो रचना मन एती-तेती बगरे रिहिन हें। काबर ते ए मन ल अलग-अलग बेरा म अलग-अलग संदर्भ अउ पत्र-पत्रिका खतिर लिखे गे रिहिस हे। फेर अभी छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग ह इहां के रचनाकार मन के लेखनी ल किताब के रूप म लोगन के आगू म लाने खातिर जेन बड़का बुता करत हे, तेकरे सेती ये छर्री-दर्री बगरे कागज-पातर मन ल सकेल के 'भोले के गोले' नांव ले आप मन के आगू म रखत हौं।
ए गद्य संकलन म एकाद कहानी, दू-चार व्यंग्य अउ विविध किसम के लेख हे। एला एकमई आपके आगू म राखे खातिर सबले जादा छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के सचिव पद्मश्री डॉ. सुरेन्द्र दुबे के संगे-संग आयोग के जम्मो कर्मचारी-संगवारी मन, मोर पिरोहिल हितवा डॉ. सुधीर शर्मा अउ वैभव प्रकाशन के संगवारी मन, नव उजियारा सांस्कृतिक साहित्यिक संस्था के चंद्रशेखर चकोर अउ जयंत साहू जे मन ये रचना मन ल सकेले खातिर मोला घेरी-बेरी हुदरिन-कोचकिन अउ जम्मो हितु-पिरितु मन के अभारी हवंव जेमन मोला बेरा-बेरा म रस्ता देखावत रहिथें।
जम्मो झन ल मोर जोहार-पैलगी.....
सुशील भोले

वरिष्ठ साहित्यकार सुशील भोले जी का संक्षिप्त जीवन परिचय-

प्रचलित नाम - सुशील भोले
मूल नाम - सुशील कुमार वर्मा
जन्म - 02/07/1961 (दो जुलाई सन उन्नीस सौ इकसठ) 
पिता - स्व. श्री रामचंद्र वर्मा
माता - स्व. श्रीमती उर्मिला देवी वर्मा
पत्नी- श्रीमती बसंती देवी वर्मा
संतान -     1. श्रीमती नेहा – रवीन्द्र वर्मा
                 2. श्रीमती वंदना – अजयकांत वर्मा
                 3. श्रीमती ममता – वेंकेटेश वर्मा
मूल ग्राम - नगरगांव, थाना-धरसीवां, जिला रायपुर छत्तीसगढ़
वर्तमान पता - 41-191, डॉ. बघेल गली, संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर छत्तीसगढ़
शिक्षा - हायर सेकेन्ड्री, आई.टी.आई. डिप्लोमा 
मोबाइल – 98269-92811  

प्रकाशित कृतियां-  

1. छितका कुरिया (काव्य  संग्रह)  
2. दरस के साध (लंबी कविता)
3. जिनगी के रंग (गीत एवं भजन संकलन)
4. ढेंकी (कहानी संकलन)
5. आखर अंजोर (छत्तीसगढ़ की मूल संस्कृति पर आधारित लेखों को संकलन)
6. भोले के गोले (व्यंग्य संग्रह)
7. सब ओखरे संतान (चारगोडि़या मनके संकलन)
8. सुरता के बादर (संस्मरण मन के संकलन)

कालम लेखन-  

1. तरकश अउ तीर (दैनिक नवभास्कर सन-1990)
2. आखर अंजोर (दैनिक तरूण छत्ती‍सगढ़ 2006-07)
3. डहर चलती (दैनिक अमृत संदेश- 2009)
4. गुड़ी के गोठ (साप्ताहिक इतवारी अखबार 2010 से 2015)
5. बेंदरा बिनास (साप्ताहिक छत्तीसगढ़ सेवक 1988-89)
6. किस्सा कलयुगी हनुमान के (मासिक मयारू माटी 1988-89)

अन्य लेखन- 

1. प्रदेश एवं राष्ट्रीय स्तर के अनेक पत्र-पत्रिकाओं में लेख, कविता, कहानी, समीक्षा, साक्षात्कार आदि का नियमित रूप से प्रकाशन।
2. ‘लहर’ एवं ‘फूलबगिया’ ऑडियो कैसेट में गीत लेखन एवं गायन।
3. अनेक सांस्कृतिक मंचों द्वारा गीत एवं भजन गायन। 

सम्मान-  

1. छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग द्वारा सन 2010 में प्राप्त ‘भाषा सम्मान’ सहित अनेक साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संगठनों द्वारा सम्मानित। 

संपादन एवं प्रकाशन- 

1. मयारु माटी (छत्तीसगढ़ी भाषा की प्रथम संपूर्ण मासिक पत्रिका)

सह संपादन- 

1. दैनिक अग्रदूत
2. दैनिक तरूण छत्तीगढ़
3. दैनिक अमृत संदेश
4. दैनिक छत्तीसगढ़ ‘इतवारी अखवार’
5. जय छत्तीसगढ़ अस्मिता (मासिक)
6. अनेक साहित्यिक एवं सामाजिक पत्र-पत्रिकाओं में

विशेष- 

1. छत्तीसगढ़ के मूल आदिधर्म एवं संस्कृति के लिए विशेष रूप से लेखन, वाचन, प्रकाशन एवं जमीनी तौर पर पुनर्स्थापना के लिए कार्यरत। इसके लिए सन 1994 से 2008 तक (करीब 14 वर्ष) साहित्य, संस्कृति कला एवं गृहस्थ जीवन से अलग रहकर विशेष आध्यात्मिक साधना के माध्यम से आत्मज्ञान प्राप्त किया।

2. गुजरात की राजधानी अहमदाबाद में 8 अक्टूबर 2017 को भारत सरकार के सहित्य अकादमी द्वारा गुजराती एवं छत्तीसगढ़ी साहित्य का आयोजन किया गया। जिसमें मैं प्रतिभागी के रूप में कवितापाठ किया। छत्तीसगढ़ी के अन्य प्रतिभागियों में डॉ. केशरीलाल वर्मा, डॉ. परदेशी राम वर्मा, रामनाथ साहू एवं मीर अली मीर प्रतिभागी थे।

प्रेरणा- 

पिताजी स्व. श्री रामचंद्र वर्मा, जिनके द्वारा लिखित प्राथमिक हिन्दी  व्याकरण एवं रचना (प्रकाशक- अनुपम प्रकाशन, रायपुर) संयुक्त मध्यप्रदेश के समय कक्षा तीसरी, चौथी एवं पांचवीं में पाठ्य पुस्तक के रूप में चलती थी, से प्रेरित होकर लेखन क्षेत्र में आया। 

प्रिय लेखक-  

अध्यात्म में – कबीर दास जी 
अंतर्राष्ट्रीय में – गोर्की 
राष्ट्रीय में – मुंशी प्रेमचंद
स्थानीय में – लोक जीवन एवं जन चेतना से जुड़े प्राय: सभी लेखक। 

इच्छा- 

छत्तीसगढ़ के मूल आदि धर्म एवं संस्कृति के मापदंड पर यहां के सांस्कृतिक-इतिहास का पुर्नलेखन हो। क्योंकि अभी तक यहां के बारे में जो भी लिखा गया, या लिखा जा रहा है, वह उत्तर भारत से आए ग्रंथों के मापदंड पर लिखा गया है। इसलिए ऐसे किसी भी ग्रंथ को छत्तीसगढ़ के धर्म, संस्कृति एवं इतिहास के संदर्भ में मानक नहीं माना जा सकता। इसलिए आवश्यक है कि छत्तीसगढ़ की संस्कृति को, धर्म या इतिहास को इसके अपने संदर्भ में लिखा जाए। 

पारिवारिक स्थिति- 

पिताजी स्व. श्री रामचंद्र वर्मा प्राथमिक शाला में शिक्षक थे, इसलिए निम्न-मध्यम वर्गीय परिवेश में पालन-पोषण हुआ। अभी भी आर्थिक रूप से लगभग यही स्थिति है। इसके पूर्व सन् 1994 से 2008 तक के आध्यात्मिक साधना काल में सभी प्रकार के अर्थापार्जन के कार्यों से अलग रहने के कारण अत्यंत गरीबी का सामना करना पड़ा, जिसका असर बच्चों  के भरण-पोषण पर भी हुआ। पिताजी के पास पै‍तृक ग्राम नगरगांव में पैतृक संपत्ति के रूप में एक कच्चा मकान, खलिहान तथा करीब दो एकड़ खेत था। लेकिन हम चार भाइयों के बीच हुए बंटवारा के पश्चात अब स्थायी संपत्ति के नाम पर मेरे पास (सुशील भोले) संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर स्थित एक छोटे मकान के अलावा और कुछ भी नहीं है। चार भाइयों और दो बहनों में मैं दसूरे नंबर का हूं। मुझसे बड़े एक भाई हैं- सुरेश वर्मा तथा मुझसे छोटे दो भाई मिथलेश वर्मा एवं कमलेश है। इसी प्रकार दो बहनें एक श्रीमती प्रभा-कृष्ण कुमार वर्मा (प्रभा का निधन हो चुका है) तथा दूसरी श्रीमती सरोज (चित्रा)- चंद्रशेखर वर्मा है। मेरी तीन संतानों में तीनों ही लड़कियां हैं, जिनका विवाह हो चुका है। पत्नी श्रीमती बसंती देवी वर्मा मात्र प्राथमिक तक शिक्षित है, इसलिए उससे लेखन या पठन-पाठन के क्षेत्र में कोई सहयोग नहीं मिल पाता। मेरे कई महत्वपूर्ण प्रकाशनों की करतरने और किताब आदि भी उसकी अज्ञानता की भेंट चढ़ गई। खासकर उस समय जब मैं आध्यात्मिक साधना काल में था। 

जीवकोपार्जन- 

आई.टी.आई. से डिप्लोमा प्राप्त करने के पश्चांत कुछ प्रेस में कम्पोजिटर का करते हुए दैनिक अग्रदूत (तब वह साप्ता‍हिक था) गया। वहां मेरी साहित्यिक प्रतिभा को देखकर कम्पोजिटर से संपादकीय विभाग में लाया गया। दैनिक अग्रदूत में ही सन् 1983-84 में मेरी पहली कविता एवं कहानी का प्रकाशन हुआ। प्रदेश के यशस्वी व्यंग्यकार प्रो. विनोद शंकर शुक्ल जो अग्रदूत के साहित्यिक परिशिष्ट के संपादक थे, उन्होंने ही मेरी रचनाओं में आवश्यक संशोधन (संपादन) कर प्रकाशित किया था। इसके पश्चात फिर मेरी लेखनी सरपट दौड़ने लगी, जो अब तक (आध्यात्मिक साधना काल को छोड़कर) सरपट दौड़ रही है।

दैनिक अग्रदूत के पश्चात कुछ दिन दैनिक तरूण छत्तीसगढ़, दैनिक अमृत संदेश एवं दैनिक छत्तीसगढ़ में सह संपादक के पद पर कार्यरत रहा। बीच में सन् 1988 से 2005 तक स्वयं का व्यवसाय- प्रिटिंग प्रेस संचालन, मासिक पत्रिका ‘मयारू माटी’ का प्रकाशन-संपादन एवं ऑडियो कैसेट रिकार्डिंग स्टूडियो का संचालन किया।

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