छत्‍तीसगढ़ी लेख: 'हीरा’ गंवाए हे बनकचरा म... सुशील भोले

ए ह छत्तीसगढ़ महतारी के दुर्भाग्य आय के वोकर असल 'हीरा’ बेटा मनला चुन-चुन के बनकचरा म फेंके अउ लुकाए के जेन बुता इहाँ के इतिहास लिखे के संग ले चालू होए हे, तेन ह आजो ले चलत हे। एकरे सेती हमला आज हीरालाल काव्योपाध्याय जइसन युगपुरुष मनला लोगन ल जनवाए के उदीम करे बर लागत हे।

 ए ह कतेक लाज के बात आय के छत्तीसगढ़ी लेखन के जेन ह गंगोत्री आय तेने ल इहाँ के इतिहास लेखन ले दुरिहाए के उदीम करे गे हवय। मोला लागथे के अइसन किसम के उजबक बुता ल उही मन करे हें, जिनला इहाँ के मूल निवासी मन के धरम, संस्कृति, इतिहास अउ गौरव ले कोनो किसम के इरखा या दुसमनी रहिस होही। काबर ते, इहाँ के ए सब जिनीस संग जतका दोगलाई करे गे हवय वइसन सिरिफ कोनो दुसमन-बैरीच ह कर सकथे, कोनो हितु-पिरितु अउ संगी-संगवारी मन नहीं।
आप मनला ए जान के आश्चर्य होही के जब कभू छत्तीसगढ़ी लेखन के शुरूवात के बात आथे, त झट ले सुंदर लाल शर्मा के नाम ले देथन, ए कहिके के प्रकाशित रूप म उंकर लिखे 'दान लीला’ ह सबले पहिली किताब आय। फेर ए बात ल कइसे भुला जाथन के उंकर ले कतकों बछर पहिली सन् 1885 म हीरालाल काव्योपाध्याय ह 'छत्तीसगढ़ी व्याकरण’ लिखे रिहीन हें, जेमा व्याकरण के संगे-संग लोक गीत अउ साहित्य ल घलोक सकेले गे रिहीस हे। ए व्याकरण ल वो बखत के दुनिया के सबले बड़का व्याकरणाचार्य सर जार्ज ग्रियर्सन ह अंगरेजी म अनुवाद करके छत्तीसगढ़ी अउ अंगरेजी के समिलहा रूप म सन्् 1890 म छपवाए रिहिस हे।

इहाँ एक अउ बात के चरचा करना चाहथौं के जब सुंदर लाल शर्मा ले आगू निकले के बात होथे, त संत कबीर दास के बड़का चेला धनी धरम दास के बात करे जाथे, उंकर लिखे निरगुन भजन- 'जामुनिया के डार मोर टोर देव हो’ जइसन मन के उदाहरन दिए जाथे। ए ह बिलकुल दोगलाई के बात आय, काबर ते धरम दास के एको ठन रचना मनला छत्तीसगढ़ी के आरुग रूप के अंतर्गत नइ रखे जा सकय। उंकर रचना मन म मिश्रित भाषा के उपयोग करे गे हवय, जइसन कबीर दास जी ह अपन रचना मन म करयं। एकर सेती धरम दास ल छत्तीसगढ़ी के रचनाकार नइ माने जा सकय। अइसने अउ बहुत झन हें, जे मन छत्तीसगढ़ म रहयं भले फेर उन ब्रज, अवधी या खड़ी बोली म रचना करयं। हम जब छत्तीसगढ़ी के बात करथन, त आज के जेन छत्तीसगढ़ी के आरुग रूप हे तेकर बात करथन, अउ आज के रूप म सिरिफ हीरालाल जी के 'छत्तीसगढ़ी व्याकरण’ ल ही प्रकाशित रूप म सबले जुन्ना किताब या लेखनी माने जा सकथे, अउ कोनो दूसर ल नहीं।

मैं ह इहाँ के मूल संस्कृति अउ इतिहास के बात हमेशा करथौं, अउ जम्मो जगा ए बात ल कहिथौं के इहाँ के साँस्कृतिक इतिहास ल, इहाँ जेन सृष्टिकाल या युग निर्धारण के हिसाब ले कहिन ते सतयुग के  संस्कृति ल नवा सिरा ले लिखे जाना चाही। जेन छत्तीसगढ़ ह आदिकाल ले बूढ़ादेव के रूप म सृष्टिकाल के संस्कृति ल जीथे, वोकर प्रचीनता ह सिरिफ रामायण अउ महाभारत (द्वापर-त्रेता) तक सीमित कइसे हो सकथे? बस्तर के लोकगीत म ए बात के जानकारी मिलथे के जब गणेश  जी ल प्रथमपूज्य के आर्शीवाद दे दिए जाथे, त वोकर बड़का भाई कार्तिक ह रिसा के दक्षिण भारत आ जाथे। कार्तिक ल मना के वापस हिमालय लेगे खातिर भगवान शंकर अउ देवी पार्वती ह सोला साल तक बस्तर म रहे हावयं। जब शिव जी ये छत्तीसगढ़ म रहे हावयं, त निश्चित रूप ले इहाँ के इतिहास ह वतका जुन्ना हे। त फेर अइसन काबर लिखे जाथे के इहाँ के इतिहास ह सिरिफ रामायण-महाभात काल तक सीमित हे।

ए तो जुन्ना बेरा के गोठ होइस अब कुछ आज के बात। इतिहास लेखन के जब गोठ करत हावन त आजो जेन लिखे जावत हे, तेला खलहारना जरूरी हावय, काबर ते आजो वइसनेच चाल चले जावत हे, जइसे पहिली चले गे रिहिसे। अभी कुछ दिन पहिली इहाँ रायपुर म छत्तीसगढ़ी के  एक बड़का कार्यक्रम होइस, जेमा इहाँ के साहित्यकार अउ पत्र-पत्रिका के ऊपर जतका भी वक्ता मन बोलिन वोमा छत्तीसगढ़ी भाखा के एकमात्र संपूर्ण मासिक पत्रिका 'मयारु माटी’ के नाम के उल्लेख एको झन वक्ता मन नइ करीन। अब एला का कहे जाना चाही? वक्ता मन के अधूरा ज्ञान ते जानबूझ के करे गे बदमासी। जबकि ए बात सोला आना सच आय के इहाँ पत्रिका के नाम म जतका भी पत्रिका निकले हे वोमा सिरिफ 'मयारु माटी’ ल ही संपूर्ण पत्रिका कहे जा सकथे, बाकी अउ कोनो ल नहीं। बाकी मन कोनो कविता संकलन के रूप म निकलत हें, त कोनो कहानी अउ गद्य संकलन के रूप म। एक संपूर्ण पत्रिका के जेन मानक रूप होथे, वोमा कोनो ल पूर्ण रूप से नइ रखे जा सकय। 

अइसने बात साहित्यकार मन के संबंध म घलोक हे, लेख लिखने वाला या सभा म वक्ता के रूप म बोलने वाला मन के जतका चिन-चिन्हार के होथे, तेकर मन के नाम ह तो बने जग-जग ले लिखे मिलथे, भले वोकर  रचना के स्तर ह खातू-कचरा किसम के राहय, फेर जे मन सहीं म बहुत अच्छा लिखत हावयं या पहिली लिखे हावयं वोकर मन के नाम ह कोनो मेर खोजे नइ मिलय। ए सबला का कहे जाना चाही? अज्ञानता, मूर्खता या बदमासी?

इहाँ के इतिहास लेखन म अंगरी उठाए के मोर जेन उद्देश्य हे, वो ह कोनो मनखे ल दोसी बताना नइए, फेर अतका जरूर हे के अइसन किसम के काम ल पूरा ईमानदारी अउ पूरा-पूरा जानकारी के आधार म होना चाही, मात्र सुने-सुनाय या अपन-बिरान के आधार म नइ करे जाना चाही। काबर ते इहाँ अइसन मनखे मन के संख्या जादा हावय, जेन मनला 'कौंवा लेगे कान ल’ कहि दे, त उन कान ल टमड़े ल छोड़ के कौंवा के पाछू भागे म अगुवा जाथें। 

आज हीरालाल जी ल सुरता करत अउ गजब अकन गोठ करे के मन होवत हे, फेर अभी हर साल उंकर सुरता म ए कारज ल करना हे, तेकर सेती बाकी विषय मनला अउ अवइया बछर खातिर छोड़ना ह ठीक रइही। 
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  • कृति- भोले के गोले
  • लेखक- सुशील भोले
  • विधा- निबंध, व्‍यंग्‍य, आलेख, कहानी
  • भाषा- छत्‍तीसगढ़ी
  • प्रकाशक- वैभव प्रकाशन
  • संस्‍करण- 2014
  • कॉपी राइट- लेखकाधीन
  • आवरण सज्जा - दिनेश चौहान
  • सहयोग- छत्‍तीसगढ़ राजभाषा आयोग छत्‍तीसगढ़ शासन
  • मूल्‍य- 100/- रूपये

वरिष्ठ साहित्यकार सुशील भोले जी का संक्षिप्त जीवन परिचय-

प्रचलित नाम - सुशील भोले
मूल नाम - सुशील कुमार वर्मा
जन्म - 02/07/1961 (दो जुलाई सन उन्नीस सौ इकसठ) 
पिता - स्व. श्री रामचंद्र वर्मा
माता - स्व. श्रीमती उर्मिला देवी वर्मा
पत्नी- श्रीमती बसंती देवी वर्मा
संतान -       1. श्रीमती नेहा – रवीन्द्र वर्मा
                 2. श्रीमती वंदना – अजयकांत वर्मा
                 3. श्रीमती ममता – वेंकेटेश वर्मा
मूल ग्राम - नगरगांव, थाना-धरसीवां, जिला रायपुर छत्तीसगढ़
वर्तमान पता - 41-191, डॉ. बघेल गली, संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर छत्तीसगढ़
शिक्षा - हायर सेकेन्ड्री, आई.टी.आई. डिप्लोमा 
मोबाइल – 98269-92811  

प्रकाशित कृतियां-

1. छितका कुरिया (काव्य  संग्रह)  
2. दरस के साध (लंबी कविता)
3. जिनगी के रंग (गीत एवं भजन संकलन)
4. ढेंकी (कहानी संकलन)
5. आखर अंजोर (छत्तीसगढ़ की मूल संस्कृति पर आधारित लेखों को संकलन)
6. भोले के गोले (व्यंग्य संग्रह)
7. सब ओखरे संतान (चारगोडि़या मनके संकलन)
8. सुरता के बादर (संस्मरण मन के संकलन)

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