बूढ़ा देव के रूप म आदि देव महादेव के संस्कृति जीयत छत्तीसगढ़ के जम्मो परब के जुड़ाव कोनो न कोनो रूप ले शिव परिवार ऊपर आधारित होथे। कातिक महीना म शिव पूजा के जेन इहां चलन हे तेला कातिक नहाना कहे जाथे। कातिक नहाए के सुरुवात लगते कातिक के एकम ले होथे, जेन पूरा अंधियारी पाख म गौरा-पूजा (शिव-पार्वती बिहाव परब) तक चलथे। अइसे कहे जाथे के भगवान शिव अउ पार्वती के बिहाव कातिक अमावस्या के होए रिहिसे तेकरे सेती इहां के जम्मो कुंवारी नोनी मन कातिक के ये अंधियारी पाख म मुंदरहा ले नहाथें अउ भगवान भोलेनाथ के बेलपत्ता, धोवा चांउर, फूल-फलहरी ले पूजा करथें।
गांव-गंवई म कातिक नहाए के उत्साह देखते बनथे। पारा भर के जम्मो नोनी मन एक-दूसर घर जा-जा के उनला उठाथें अउ तरिया जाथें जिहां नहा-धो के तरिया के पानी म दिया ढीलथें। बेरा पंगपंगाय के पहिली बरत दिया ल पानी म तउंरत देखबे त गजब के आनंद आथे। दिया ढीले के बाद फेर तरिया पार के मंदिर म भगवान भोलेनाथ के पूजा करे जाथे, अउ ए आसीस मांगे जाथे के उहू मनला भगवान भोलेनाथ जइसे योग्य वर मिलय।
कातिक नहाए के सुरूवात होए के संगे-संग इहां शिव-पार्वती बिहाव के नेवता दे के संदेशा गीत-सुवा गीत के रूप म घलोक शुरू हो जाथे। एकरे सेती जम्मो नोनी मन रोज संझा टोपली म माटी के बने सुवा ल मढ़ा के घरों-घर जाथें अउ वोला अंगना के बीच म राख के वोकर आंवर-भांवर घूम-घूम के ताली पीटत गीत गाथें। गीत-नृत्य के बाद घर गोसइन ह जेन सेर-चांउर, तेल अउ पइसा देथे तेला गौरा-गौैरी पूजा (शिव-पार्वती बिहाव) जेन कातिक अमावस्या के होथे तेकर खरचा (व्यवस्था) खातिर राखथें। अइसे किसम के कातिक नहाए के परब ह पूरा होथे। कतकों जगा कातिक नहाए के परब ल पूरा महीना भर घलोक करे जाथे। फेर एकर महत्व पंदरा दिन के अंधियारी पाख म जादा हे, जेमा बिहनिया कातिक नहाए, संझा सुवा नाचे अउ अमावय के दिन ईसर देव (शिवजी) संग गौरी-गौरा बिहाव के जम्मो नोंग-जोंग शामिल होथे।
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- कृति- भोले के गोले
- लेखक- सुशील भोले
- विधा- निबंध, व्यंग्य, आलेख, कहानी
- भाषा- छत्तीसगढ़ी
- प्रकाशक- वैभव प्रकाशन
- संस्करण- 2014
- कॉपी राइट- लेखकाधीन
- आवरण सज्जा - दिनेश चौहान
- सहयोग- छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग छत्तीसगढ़ शासन
- मूल्य- 100/- रूपये
वरिष्ठ साहित्यकार सुशील भोले जी का संक्षिप्त जीवन परिचय-
प्रचलित नाम - सुशील भोले
मूल नाम - सुशील कुमार वर्मा
जन्म - 02/07/1961 (दो जुलाई सन उन्नीस सौ इकसठ)
पिता - स्व. श्री रामचंद्र वर्मा
माता - स्व. श्रीमती उर्मिला देवी वर्मा
पत्नी- श्रीमती बसंती देवी वर्मा
संतान - 1. श्रीमती नेहा – रवीन्द्र वर्मा
2. श्रीमती वंदना – अजयकांत वर्मा
3. श्रीमती ममता – वेंकेटेश वर्मा
मूल ग्राम - नगरगांव, थाना-धरसीवां, जिला रायपुर छत्तीसगढ़
वर्तमान पता - 41-191, डॉ. बघेल गली, संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर छत्तीसगढ़
शिक्षा - हायर सेकेन्ड्री, आई.टी.आई. डिप्लोमा
मोबाइल – 98269-92811
प्रकाशित कृतियां-
1. छितका कुरिया (काव्य संग्रह)2. दरस के साध (लंबी कविता)3. जिनगी के रंग (गीत एवं भजन संकलन)4. ढेंकी (कहानी संकलन)5. आखर अंजोर (छत्तीसगढ़ की मूल संस्कृति पर आधारित लेखों को संकलन)6. भोले के गोले (व्यंग्य संग्रह)7. सब ओखरे संतान (चारगोडि़या मनके संकलन)8. सुरता के बादर (संस्मरण मन के संकलन)
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