छत्‍तीसगढ़ी आलेख: आमरित पाए के परब शरद पुन्नी... सुशील भोले

ये बात ल सब जानथेें के छत्तीसगढ़ के संस्कृति सृष्टिकाल के संस्कृति आय। युग निर्धारण के दृष्टि ले कहिन त सतयुग के संस्कृति आय, एकरे सेती इहां वो बखत के होए घटना के सुरता म हमन आजो परब अउ तिहार मनाथन। 

नवा जुग के आए के साथ नवा-नवा संस्कृति के घलोक इहां आना होइस, एकरे सेती आज के पीढ़ी ये बात ल कमतीच जानथे के सृष्टिकाल म जेन समुद्र मंथन होइस अउ वोमा ले कई किसम के रत्न के संग विष निकालीस अउ जब वो विष ल भगवान भोलेनाथ पी के नीलकंठ बनगे। तेकर पाछू फेर अमरित निकलीस। तेकर परब ल हमन कब-कब अउ कइसे-कइसे मनाथन?

जे मन इहां के मूल संस्कृति ल जानथें वो मन फट कहि दिहीं के कुंवार अंजोरी पाख के दसमी ह विष हरन अउ पुन्नी ह अमरित पाए के तिथि आय जेला हमन दंसहरा अउ शरद पुन्नी के रूप म मनाथन। इहां ये जानना जरूरी हे के दंसहरा अउ विजया दसमी दू अलग-अलग परब आय। विजया दसमी भगवान राम के दुवारा रावन ऊपर विजय पाए के परब आय जबकि दंसहरा ह भगवान भोलेनाथ दुवारा समुद्र मंथन ले निकले विष के हरन के परब आय। दसहरा असल म दंस+हरा=दंसहरा अर्थात विष के हरन आय। 

हमर इहां के संस्कृति म दंसहरा के दिन नीलकंठ पक्षी, जेला इहां के भाखा म टेहर्रा चिरई कहे जाथे वोकर दरसन करई ल भारी शुभ माने जाथे। ए बात के संबंध इही विष हरन या दंसहरा के संग हे। काबर ते शिव जी ल समुद्र मंथन ले निकले विष के पान (हरन) के सेती नीलकंठ कहे गीस। एकरे सेती टेहर्रा चिरई (नीलकंठ) ल ए दिन भगवान शिव के प्रतीक माने जाथे अउ वोकर दरसन ल शुभ माने जाथे। 

हमर छत्तीसगढ़ के बस्तर अंचरल म जेन ए अवसर म रथ यात्रा के परब मनाए जाथे वो असल म समुद्र मंथन अउ विष हरन के परब आय। ये दुख के बात आय के आज वोकर रूप ल बिगाड़े जावत हे, वोला आने संदर्भ के साथ जोड़े जावत हे। तइहा के समय म वो रथ ल मंदराचल परवत के प्रतीक के रूप म आगू-पाछू खीेंचे जावय अउ आगू-पाछू खिंचई म जब रथ ह टूट-फूट जाय त लोगन विषय निकले के दृश्य उपस्थित करे खातिर चारों मुड़ा आंखी-कान मूंद के भागयं। बाद म फेर जब सबो झन रथ तीर म सकलावंय त वोमन ल शिवजी द्वारा विषपान करे के प्रतीक स्वरूप दोना मन म थोक-थोक मंद (शराब) बांटे जाय। इही ह समुद्र मंथन अउ विष हरन के असली परब आय। 

जे मन समुद्र मंथन के इतिहास ल थोक बहुत जानत होहीं वोमन ए बात ल ठउका जानत होहीं के विष हरन (दंसहरा) के पांच दिन पाछू समुद्र ले अमरित निकले रिहीसे। एकरे सेती हमर ए सतजुगी संस्कृति म दंसहरा के पांच दिन पाछू माने कुंवार पुन्नी के अमरित पाए के परब शरद पूर्णिमा के रूप म मनाए जाथे। छत्तीसगढ़ के हर गांव अउ हर घर म लोगन खीर-तसमई बनाके घर के अंगना म या कोनो भी खुल्ला जगा म बने वोला कोनो बरतन म खुल्ला करके रख देथें। आधा रात के जब चंदा ह अपन पूरा कला के साथ जुड़-जुड़ पुरवाही संग अमरित के बरसा करथे तेकर पाछू फेर वो खीर ल वो जगा उपस्थित जम्मो मनखे ल परसाद के रूप म बांटे जाथे। अइसे माने जाथे चंदा ह घलो ए दिन भगवान शिव के ही रूप होथे। उंकर एक नांव चंद्रमौली हे ते ह इही दिन साक्षात होथे। काबर ते जे ह विष ल पीथे उहीच ह लोगन ल जीवन के रूप म अमरित बांटे के सामरथ राखथे। एक किसम कुंवार दसमी के चालू होए परब ह कुंवार पुन्नी तक चलथे जेला विष हरन ले अमरित पाये तक चलने वाला परब कहि सकथन। 
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  • कृति- भोले के गोले
  • लेखक- सुशील भोले
  • विधा- निबंध, व्‍यंग्‍य, आलेख, कहानी
  • भाषा- छत्‍तीसगढ़ी
  • प्रकाशक- वैभव प्रकाशन
  • संस्‍करण- 2014
  • कॉपी राइट- लेखकाधीन
  • आवरण सज्जा - दिनेश चौहान
  • सहयोग- छत्‍तीसगढ़ राजभाषा आयोग छत्‍तीसगढ़ शासन
  • मूल्‍य- 100/- रूपये

वरिष्ठ साहित्यकार सुशील भोले जी का संक्षिप्त जीवन परिचय-

प्रचलित नाम - सुशील भोले
मूल नाम - सुशील कुमार वर्मा
जन्म - 02/07/1961 (दो जुलाई सन उन्नीस सौ इकसठ) 
पिता - स्व. श्री रामचंद्र वर्मा
माता - स्व. श्रीमती उर्मिला देवी वर्मा
पत्नी- श्रीमती बसंती देवी वर्मा
संतान -       1. श्रीमती नेहा – रवीन्द्र वर्मा
                 2. श्रीमती वंदना – अजयकांत वर्मा
                 3. श्रीमती ममता – वेंकेटेश वर्मा
मूल ग्राम - नगरगांव, थाना-धरसीवां, जिला रायपुर छत्तीसगढ़
वर्तमान पता - 41-191, डॉ. बघेल गली, संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर छत्तीसगढ़
शिक्षा - हायर सेकेन्ड्री, आई.टी.आई. डिप्लोमा 
मोबाइल – 98269-92811  

प्रकाशित कृतियां-

1. छितका कुरिया (काव्य  संग्रह)  
2. दरस के साध (लंबी कविता)
3. जिनगी के रंग (गीत एवं भजन संकलन)
4. ढेंकी (कहानी संकलन)
5. आखर अंजोर (छत्तीसगढ़ की मूल संस्कृति पर आधारित लेखों को संकलन)
6. भोले के गोले (व्यंग्य संग्रह)
7. सब ओखरे संतान (चारगोडि़या मनके संकलन)
8. सुरता के बादर (संस्मरण मन के संकलन)

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