छत्‍तीसगढ़ी आलेख: छत्तीसगढ़ी व्याकरण के 125 बछर... सुशील भोले

जे मन आज घलोक छत्तीसगढ़ी ल संवैधानिक रूप ले भाखा के दरजा पाए के रद्दा म खंचका-डिपरा बनावत रहिथे, उंकर जानकारी खातिर ये बताना जरूरी होगे हवय के छत्तीसगढ़ी के व्याकरण बने 125  बछर ले जादा होगे हवय। काव्योपाध्याय हीरालाल चन्नाहू ह सन 1880 ले 1885 के बीच  म छत्तीसगढ़ी व्याकरण ल लिखित रूप म एक किताब के रूप दिए रिहीसे, जेला सन 1890 म अंगरेजी भाखा के बड़का व्याकरणाचार्य सर जार्ज ग्रियर्सन ह अंगरेजी अनुवाद कर के छत्तीसगढ़ी अंगरेजी के समिलहा छपवाए रिहीसे। हीरालाल चन्नाहू ल सन 1884 म गुरूदेव रविन्द्रनाथ टैगोर के भाई के संस्था द्वारा  उंकर भाखा अउ संगीत के क्षेत्र म विशेष योगदान खातिर 'काव्योपाध्याय’ के उपाधि घलोक दिए गे रिहीसे।

सर जार्ज ग्रियर्सन ह छत्तीसगढ़ी व्याकरण के बड़ाई करत अपन टिप्पणी म लिखे रिहीसे-'भारतीय भाषा मनला जाने-समझे खातिर छत्तीसगढ़ी व्याकरण ह एक अच्छा माध्यम साबित होही।’ निश्चित रूप ले ए ह हर छत्तीसगढ़ी भाषी मनखे मन बर गरब के बात आय काबर ते वो समय तक हिन्दी सहित कोनो भी हिन्दी नीत भाखा मनके प्रकाशित रूप म व्याकरण नइ आए रिहीसे। आजादी के आंदोलन के समय जब देश ल एक सम्पर्क भाखा के जरूरत होइस त खड़ी बोली म जोड़-तोड़ अउ सुधार करके एक नया रूप दे गेइस, जेला हिन्दी के नांव म आज जानथन। फेर एकरो व्याकरण ह कामता प्रसाद गुरू के माध्यम ले सन 1921 म बनीस। माने छत्तीसगढ़ी ले कतकों बछर के पाछू।

आज छत्तीसगढ़ राज बने के बाद इहां के सरकार ह छत्तीसगढ़ी ल राजभाषा के दरजा दे के राजभाषा आयोग के गठन कर दिए हे, तेकर सेती छत्तीसगढ़ी के संबंध म कुछु जादाच चर्चा होए ले धर लिए हे। अउ ये चर्चा म कुछ अइसन मनखे मन घलोक झपाय परे हें, जे मन ल अभी एकर कई किसम के व्यावहारिक जानकारी नइ हो पाए हे। वोकरे सेती कभू ए मन मानकीकरण के बात करथें, कभू व्याकरण के बात करथें, शब्दकोश के बात करथें, त कभू लिपि के बात करथें।

अइसन मनखे मनला संक्षेप म अतके बता देना जरूरी लागथे के छत्तीसगढ़ी के सब कुछ हावय व्याकरण हावय। सन 1885 म लिखे काव्योपाध्याय हीरालाल चन्नाहू ले लेके आज के डॉ. चन्द्रकुमार चन्द्राकर के लिखे व्याकरण तक करीब सात-आठ लेखक के, शब्दकोश के घलोक इही स्थिति हे कतकों लेखक मन के संयुक्त प्रयास ले भाषिका प्रकाशन, वैभव प्रकाशन के संगे संग छत्तीसगढ़ शासन के शिक्षा विभाग डहर ले घलोक एकर प्रकाशन हो चुके हे। छत्तीसगढ़ विधानसभा के प्रयास अउ राजभाषा आयोग के माध्यम ले हिन्दी छत्तीसगढ़ी अउ अंगरेजी के समलिहा प्रशासनिक शब्दकोश घलोक आगे हवय। जिहां तक लिपि के बात हे त छत्तीसगढ़ी के मूल लिपि ल पहिली श्रीहर्ष लिपि कहे जाय, जेला आज घलोक इहां के कतकों जुन्ना मंदिर के शिला लेख म देखे जा सकथे। वइसे भाखा के मान्यता खातिर लिपि के अनिवार्यता नइहे। हिन्दी, संस्कृत, मराठी, अंगरेजी जइसन कतकों भाखा के अपन खुद के लिपि नइहे। अइसने छत्तीसगढ़ी घलोक ल अभी नागरी लिपि म लिखे जाथे। ए अच्छा घलो आय काबर ते आज नागरी लिपि ल पूरा दुनिया म समझे जाथे, एकर ले ए फायदा के बात आय के नागरी लिपि के सेती छत्तीसगढ़ी ल घलोक पूरा दुनिया म आसानी के साथ पढ़ लिए जाही।

कतकों मनखे छत्तीसगढ़ी के मानकीकरण के बात करथें, त मोला एहर फोकटइहा के गोठ बरोबर लागथे। काबर ते सबले पहिली बात तो ए हवय के इहां के जुन्ना भाषाविद मन एकर कतकों पइत चर्चा कर डारे हें, अउ रायपुर-दुरुग म बोले जाने वाला छत्तीसगढ़ी ल मानक रूप म स्वीकार कर डरे हें। तभो ले महूं ल एमा थेाक-मोक गोठियाये के मन होवत हवय। काबर ते मैं चाहथौं के एला एक निश्चित खांचा म बांध-छांद के झन राखे जाय अभी नंदिया के धारा बरोबर हरहिंच्छा बोहावन दिए जाय। जेन क्षेत्र म जइसन बोले जाथे वो क्षेत्र ले वइसने लिख के आवन दे जाय। धीरे-धीरे जब सब झन एक-दूसर ल पढ़हीं, त सबो वोमा के अच्छा-अच्छा रूप ल धरत जाहीं, तहां ले मानकीकृत भाखा खुदे बन जाही।

वइसे भी हमर इहां कहावत हे- 'कोस-कोस म पानी बदलय, चार कोस म बानी।’ ए बात सही आय, तभे तो आज घलोक हिन्दी ल दिल्ली म बोले के तरीका आने हे, त हैदराबाद म आने, मुंबई म आने हवय त कोलकाता म आने। भाखा के निरंतरता ल कोनो किसम के छेंका डार के रोके झन जाय, नइते जइसे बोहावत पानी ल रूंध के छेंक दिए जाथे त वो सर-गल जाथे, तइसने कस भाखा घलोक हो जाही। 
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  • कृति- भोले के गोले
  • लेखक- सुशील भोले
  • विधा- निबंध, व्‍यंग्‍य, आलेख, कहानी
  • भाषा- छत्‍तीसगढ़ी
  • प्रकाशक- वैभव प्रकाशन
  • संस्‍करण- 2014
  • कॉपी राइट- लेखकाधीन
  • आवरण सज्जा - दिनेश चौहान
  • सहयोग- छत्‍तीसगढ़ राजभाषा आयोग छत्‍तीसगढ़ शासन
  • मूल्‍य- 100/- रूपये

वरिष्ठ साहित्यकार सुशील भोले जी का संक्षिप्त जीवन परिचय-

प्रचलित नाम - सुशील भोले
मूल नाम - सुशील कुमार वर्मा
जन्म - 02/07/1961 (दो जुलाई सन उन्नीस सौ इकसठ) 
पिता - स्व. श्री रामचंद्र वर्मा
माता - स्व. श्रीमती उर्मिला देवी वर्मा
पत्नी- श्रीमती बसंती देवी वर्मा
संतान -       1. श्रीमती नेहा – रवीन्द्र वर्मा
                 2. श्रीमती वंदना – अजयकांत वर्मा
                 3. श्रीमती ममता – वेंकेटेश वर्मा
मूल ग्राम - नगरगांव, थाना-धरसीवां, जिला रायपुर छत्तीसगढ़
वर्तमान पता - 41-191, डॉ. बघेल गली, संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर छत्तीसगढ़
शिक्षा - हायर सेकेन्ड्री, आई.टी.आई. डिप्लोमा 
मोबाइल – 98269-92811  

प्रकाशित कृतियां-

1. छितका कुरिया (काव्य  संग्रह)  
2. दरस के साध (लंबी कविता)
3. जिनगी के रंग (गीत एवं भजन संकलन)
4. ढेंकी (कहानी संकलन)
5. आखर अंजोर (छत्तीसगढ़ की मूल संस्कृति पर आधारित लेखों को संकलन)
6. भोले के गोले (व्यंग्य संग्रह)
7. सब ओखरे संतान (चारगोडि़या मनके संकलन)
8. सुरता के बादर (संस्मरण मन के संकलन)

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