छत्‍तीसगढ़ी कहानी: मन के सुख... सुशील भोले

भोला... ए...भोला.. लेना अउ बताना अंजलि के कहिनी ल-जया फेर लुढ़ारत बानी के पूछिस।
भोला कहिस- अंजलि जतका बाहिर म दिखथे न, वोतके भीतरी म घलोक गड़े हावय। एकरे सेती एला नानुक रेटही बरोबर झन समझबे। एकर वीरता, साहस, धैर्य, अउ संघर्ष ह माथ नवाए के लाइक हे, तभे तो सरकार ह नारी शक्ति के पुरस्कार दे खातिर एकर नांव के चिन्हारी करे हे।
-हहो जान डरेंव भोला, फेर सरकार के बुता म तोरो योगदान कमती नइए। आज अंजलि ल जेन सब जानीन-गुनीन, सरकार जगा सम्मान खातिर वोकर नांव पठोइन, सब तोरे सेती तो आय। तैं कहूं वोकर बारे म लिख-लिख के पेपर मन म नइ छपवाए रहिते, त खादन के हीरा कस उहू कोनो मेर लुकाए-तोपाए रहितीस।
-तोर कहना सही हे जया, फेर लिखे-पढ़े वोकरे बारे म जाथे, जेन वोकर योग्य होथे। कोनो भी अयोग्य मनखे खातिर कुछु लिखबे, त एकर ले लेखनी के अपमान होथे, एकर सेती ए कहई ह सही नइए के अंजलि ल नारी शक्ति के पुरस्कार मोर सेती मिल हे। अरे भई मैं वोकर बारे म नइ लिखतेंव त कोनो अउ लिखतीस, आखिर हीरा के चमक अउ फूल के खुशबू ल कोनो रोके-तोपे सकथे का, आज नहीं ते काल वोकर चमक दिखतीस, फेर दिखतीस जरूर।
- एकरे सेती तो मैं तोर मेर केलौली करत हौं, बताना अंजलि के कहिनी ल। जया फेर गोहराइस।
-त कहिनी ल सुन के कइसे करबे?
- अई कइसे करबो, हमूं मन वोकरे सहीं आत्म निर्भर बने के उदिम करबो। कब तक पर भरोसील रहिबो, अपन जांगर म कमाबो अउ अपन जांगर म खाबो।
भोला ल जया के ए बात अच्छा लागीस।
वो कहीस- मैं चाहथौं जया, के जम्मो नारी परानी मन आत्मनिर्भर बनयं, अपन पांव म खड़ा होवयं। आज हमला जेन नारी शोषण अउ अत्याचार के किस्सा सुने ले मिलथे, वोकर असल कारण आय बेटी मनला पढ़ा-लिखा के आत्मनिर्भर नइ बनाना। मोला समझ म नइ आवय आज के पढ़े लिखे जमाना म घलो पर के धन कहिके वोकर शिक्षा अउ रोजगार खातिर काबर धियान नइ दिए जाय।
भोला लंबा सांस लेवत कहिस- अंजलि संग घलोक तो पहिली अइसने होए रिहीसे। दाई-ददा मन जइसे खेती-मजूरी करइया रिहीन हें तइसने उहू ल बना दिए रिहीन हें। ददा छोटे किसान रिहीसे तेकर सेती वोकर दाई ल घलोक गृहस्थी के गाड़ी तीरे खातिर अपने खेती-किसानी के छोड़े आने बुता करे ले घलो लागय।
- अच्छा आने बुता घलोक करय, कइसन ढंग के। जया अचरज ले पूछ परीस।
भोला कहिस- हां, अपन खेत के बुता ल करे के बाद वोकर दाई ह जंगल ले लकड़ी अउ कांदी-कुसा लान के तीर के शहर में बेचे ले जावय। अइसने वोकर ददा ह खेती के बुता के बाद घर-उर बनाय के ठेका लेवय, कुली-मिस्त्री संग खुदो राजमिस्त्री के बुता करय। अइसन म तैं खुदे सोच सकथस जया तब अंजलि अउ वोकर भाई-बहिनी मन कतका अकन पढ़त रिहीन होहीं?
-अई... अइसन म कोनो कहां पढ़े सकही।
-हां, तैं सही काहत हस जया, चार झन नान-नान भाई बहिनी म सबले बड़े अंजलि भला कइसे पढ़े सकतीस। चौथी तक पढ़े पाइस। तहां ले उहू ह अपन दाई संग जंगल जाए लागिस, लकड़ी अउ कांदी लाने खातिर। अइसने करत-करत सज्ञान होए लागिस त दाई-ददा मन तीर के गांव म वोकर बिहाव घलो कर दिन।
कांचा उमर म भला बिहाव के अरथ ल कोनो कहां जानथें। न बाबू पिला, न छोकरी पिला। एकरे सेती अंजलि ससुरार म तो चल दिस फेर जांवर-जोड़ी के सुख ल नइ जानीस। ठउका बिहाव के होते वोकर जोड़ी ल पढ़ई करे खातिर शहर भेज दिए गीस, अउ अंजलि घर के संगे-संग खेत-खार के बुता म झपो दिए गीस। ए बीच अंजलि ल अपने ससुर के गलत नीयत के तीर घलोक सहे ल परीस एकरे सेती वो ह अपन जोड़ी ल मना-गुना के मइके म आके रेहे लागीस।
दमांद बाबू जब पढ़ लिख के हुसियार होगे त नौकरी करे के उदिम करे लागीस। फेर वोकर दाई-ददा तो निच्चट अड़हा काकर तीर जाके वोकर बारे म गोहरातीस। एकरे सेती वोला अपन ससुर तीर जाए ले कहिस। वोकर ससुर माने अंजलि के ददा ह घलोक पढ़े-लिखे नइ राहय, फेर घर-उर बनाए के ठेकादारी करत शहर के जम्मो बड़े-बड़े अधिकारी मन संग चिन्हारी कर डारे राहय। अपन इही चिन्हारी के सेती वोकर दमांद ल सरकारी ऑफिस म नौकरी लगवा दिस। अउ अंजलि के अपने ससुर के सेती ससुरार नइ जाए के जिद के सेती दमांद ल घलोक अपने घर राख लेइस।
अपन जोड़ी संग रहे के सुख अंजलि ल जादा दिन नइ मिल पाइस। काबर ते ससुर ऊपर लांछन लगाए के सेती वोहर मने-मन  म तो चिढ़ते राहय ऊप्पन ले शहर म पढ़त खानी उहें के एक झन छोकरी संग वोकर आंखी चार होगे राहय। एकरे सेती जब वो ह नौकरी म परमानेंट होइस, तहां ले ससुराल के घर ल छोड़ के शहर म रेहे लागिस, अउ वो शहरिया छोकरी संग बरे-बिहाव सही बेवहार करे लागिस। अंजलि ए सबला के दिन सहितीस? आखिर वोला मजबूर होके मइके म बइठे बर लागिस।
अब अंजलि ल अपन जिनगी अंधियार बरोबर लागे लागीस, वो सोचिस- सिरिफ भाई-बहिनी मन के सेवा अउ कांदी-लड़की बेच के जिनगी ल पहाए नइ जा सकय, तेकर ले फूफू दीदी जेन बड़का शहर म रहिथे, तेकरे घर जाके शहर म कुछु काम-बुता करे जाय।
- अच्छा... तहां ले अंजलि अपन गांव ल छोड़ के शहर आगे-जया पूछिस।
-हहो जया, इही शहर म तो मोर वोकर संग भेंट होइस। तब ले अब तक मैं वोकर जीवन के संघर्ष यात्रा ल देखत हावौं।
-वाह भोला... वो तो आखिर पढ़े-लिखे नइ रिहीसे त फेर एकदम से ए बड़का काम ल कइसे धर लिस होही?
- तैं सही काहत हस जया... अंजलि ल ए बड़का जगा म पहुंचे खातिर अड़बड़ मिहनत करे ले लागे हे। शुरू-शुरू म तो जब वो ह शहर आइस त रेजा के काम करीस। कोनो जगा घर-उर बनत राहय तिहां अपन फूफू दीदी संग माटी मताए अउ गारा अमरे बर जावय। तेकर पाछू एक झन डॉक्टर इहां झाड़ू- पोंछा के काम करे लगीस। इहें वोला पढ़े अउ आगे बढ़े के माहौल मिलिस। उहां के डॉक्टर अउ नर्स मनले मिलत प्रोत्साहन के सेती वो आया, फेर नर्स अउ फेर नर्स ले डॉक्टर के पदवी तक पहुंचगे। फेर एक दिन अइसनो आइस जब वो दूसर के अस्पताल म नौकरी छोड़ के खुद के अस्पताल चलावत हे। अब वो माटी मताने वाली अउ झाड़ू-पोंछा लगाने वाली नहीं, भलुक, डॉक्टर अंजलि हे।
-सिरतोन म भोला, लोगन के विकास के किस्सा तो सुनथन फेर एकदम से कोइला ले हीरा के दरजा पावत कमतीच झन ले देखथन।
-तैं सही काहत हस जया, तभे तो सरकार ह वोला नारी शक्ति सम्मान दे के निर्णय लिए हे। अवइया राष्ट्रीय परब म वोला हमर राज के मुख्यमंत्री ह शासन डहर ले सम्मान करही।
- फेर भोला... वोला अपन ये संघर्ष के दिन म अपन जोड़ी के सुरता नइ आइस?
-दगाबाज के सुरता कर के काय करतीस?
-तभो ले जिनगी म एक संगवारी के, एक परिवार के जरूरत तो घलोक होथे न, तभे तो जिनगी के आखरी घड़ी ह पहाथे। 
- हां जया, तोर कहना सही हे, फेर अब वोकर परिवार तो अतेक बड़े होगे हवय के वोला एक ठन घर म सकेले नइ जा सकय। जतका झन के दवई-पानी करथे, रोग-राई ले छुटकारा देवाथे, सब वोकर परिवार के हिस्सा बनत जाथें।
- हां... ये तो भौतिक परिवार होइस। फेर अंतस के सुख तो कुछु अउ खोजथे न।
-तोर कहना सही हे जया, फेर अंजलि एकरो रस्ता निकाल डारे हे। मन के सुख अउ शांति के खातिर वो ह अपन तीर-तखार के कलाकार मनला जोर के एक ठन सांस्कृतिक समिति बना डारे हे। तैं तो सुनेच होबे के संगीत ह आत्मा ल परमात्मा तक पहुंचाए के सबले सुंदर अउ सरल रस्ता होथे, एकरे सेती एला असली सुख अउ शांति के माध्यम कहे जाथे।
- अच्छा-अच्छा त अंजलि ह डॉक्टरी के संगे-संग कलाकारी घलोक करथे।
- हां जया... तन के सुख के संगे-संग वोह लोगन ल मन के सुख घलोक बांटथे। 
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  • कृति- भोले के गोले
  • लेखक- सुशील भोले
  • विधा- निबंध, व्‍यंग्‍य, आलेख, कहानी
  • भाषा- छत्‍तीसगढ़ी
  • प्रकाशक- वैभव प्रकाशन
  • संस्‍करण- 2014
  • कॉपी राइट- लेखकाधीन
  • आवरण सज्जा - दिनेश चौहान
  • सहयोग- छत्‍तीसगढ़ राजभाषा आयोग छत्‍तीसगढ़ शासन
  • मूल्‍य- 100/- रूपये

वरिष्ठ साहित्यकार सुशील भोले जी का संक्षिप्त जीवन परिचय-

प्रचलित नाम - सुशील भोले
मूल नाम - सुशील कुमार वर्मा
जन्म - 02/07/1961 (दो जुलाई सन उन्नीस सौ इकसठ) 
पिता - स्व. श्री रामचंद्र वर्मा
माता - स्व. श्रीमती उर्मिला देवी वर्मा
पत्नी- श्रीमती बसंती देवी वर्मा
संतान -       1. श्रीमती नेहा – रवीन्द्र वर्मा
                 2. श्रीमती वंदना – अजयकांत वर्मा
                 3. श्रीमती ममता – वेंकेटेश वर्मा
मूल ग्राम - नगरगांव, थाना-धरसीवां, जिला रायपुर छत्तीसगढ़
वर्तमान पता - 41-191, डॉ. बघेल गली, संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर छत्तीसगढ़
शिक्षा - हायर सेकेन्ड्री, आई.टी.आई. डिप्लोमा 
मोबाइल – 98269-92811  

प्रकाशित कृतियां-

1. छितका कुरिया (काव्य  संग्रह)  
2. दरस के साध (लंबी कविता)
3. जिनगी के रंग (गीत एवं भजन संकलन)
4. ढेंकी (कहानी संकलन)
5. आखर अंजोर (छत्तीसगढ़ की मूल संस्कृति पर आधारित लेखों को संकलन)
6. भोले के गोले (व्यंग्य संग्रह)
7. सब ओखरे संतान (चारगोडि़या मनके संकलन)
8. सुरता के बादर (संस्मरण मन के संकलन)

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