छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंग्‍य: भोले के गोले... सुशील भोले

भोकवा दाऊ ल ए बात के बड़ा दुख राहय के भोला टूरा ह वोला काहींच म नइ घेपय। जब देखबे ते अन्ते-तन्ते हुदरी दय। वो सोझ कहि दय-मनखे पइसा ले नहीं, ज्ञान अउ संस्कार ले बड़े होथे, अपन कर्म ले बड़े होथे। फेर भोकवा दाऊ के अपन अप्पत गुन, वो पइसा के छोड़ न काहीं अउ जिनीस के गोठ करय, न सुनय। एकरे सेती भोला वोकर ऊपर व्यंग्य बान के गोला ऊपर गोला छोड़त जाय।

एक दिन महूं वोकर ले कहि परेंव- भोला भाई तोर तोप के गोला ह भोकवा दाऊच ऊपर काबर छूटथे, वो लेड़गा टूरा जेन चंदन-बंदन लगाये ए गली ले वो गली टेंग रेचेक किंदरत रहिथे, तेकर ऊपर काबर नइ छूटय? आखिर उहू हर तो ज्ञान के अंधरा आय तभो ले लोगन ल ठगत मार बकबकावत रहिथे।

फेर एकर खातिर वो कहां दोषी हे भइया? दोषी तो ए भोकवा दाऊ सरीख मन हें, जे मन अपन आप ल समाज के मुखिया समझथें, अउ बिन सोचे-गुने ककरो भी पाछू लेड़ब्बा बरोबर किंजरे ले धर लेथें। धरम-करम के नांव म उनला मुड़ म बइठार लेथें। अरे भाई जब कोनो फोकट म अपन मुड़ म बइठारे बर तियार हो जाथे, त कोन नइ बइठहीं वोकर मुड़ म। एकरे सेती मैं लेड़गा टूरा ल नहीं भलुक भोकवा दाऊ ऊपर रिस करथौं। वोकर अक्त्ीी-पक्ती ल हुदरथौं, तेमा ए चेतय अउ कोनो भी ननजतीय ल मुड़ म झन बइठारय। काबर ते ये पइसा वाला मन के देखा-सिखी आने मनखे मन घलोक अइसने करे ले धर लेथें।

भोला के बात मोला ठउका लागीस। ये तो ठउका आय के पइसा वाला मन जइसे करथें, आम जनता घलोक देखा-सिखी म वइसने करे लागथे। एकरे सेती ए बड़े कहे जाना वाला मनखे मनला कुछू भी करे के पहिली बने सोच-समझ लेना चाही। बिन गुने-जाने धरम-संस्कृति के नांव म कोनो भी ल मुड़ म नइ बइठार लेना चाही। इहां मुखिया बन के किंजरने वाला मन के इही भकलाही चाल के सेती तो बाहिर के मनखे इहां धरम-संस्कृति के नांव म आवत हें, अउ हमर मुड़ म बइठत जावत हें। तहां ले धीरे-धीरे राजनीति, समाज, सत्ता, पद, पइसा, पावर जम्मो ल अपन कब्जा म लेवत जावत हें। अउ हमर बड़े-बड़े दाऊ मुखिया मन अपन अप्पत बुध के सेती सिरिफ उँकर पिछलग्गू बन के रहि जाथें। फेर ये बड़ा ताज्जब के बात आय के एकरो सेती इहां के आम जनता ल ही उन दोष देथें, अपन करनी ल नइ देखयं।

अइसन मन ए बात ल काबर नइ सोचयं कि तुंहरे देखा-सिखा म तो ए मन बाहिर के धरम, संस्कृति, भाखा-बोली अउ लोगन के गम पाइन हें, उनला मुड़ म बइठारीन हें। तुम वोला बड़ूे कहिके पांव परे हौ, तेकर सेती एहू मन पांव परीन हें। अउ जब वोट दे के बेरा आइस त उनल वोट घलोक दे देइन, त आखिर का गलती करीन?

तुमन कहूं इहें के मूल धरम, संस्कृति, भाखा-बोली अउ लोगन के अंगरी ल नइ छोड़े रहितेव। अपन जनता ल अपन गुलाम नहीं, भलुक अपन संगी-साथी, हितु-पिरितु अउ घर-परिवार कस समझे रहितेव, त इन बाहिरी मनखे ल वोट दे बर काबर जातीन? उंकर गुरु, उंकर संस्कृति, उंकर बोली, उंकर भाखा ल मुड़ म काबर बइठारे रहितीन?

भोला बाबू ह वो दिन मोर जगा काहत रिहीसे तेन अब सिरतोन कस लागथे। वो काहत रिहीसे- तुंहला कहूं बाहिरी लोगन ले मुक्ति पाना हे, त सबले पहिली उंकर पोथी- पतरा अउ धरम-कचरा ल मुड़ ले उतारे ले लागही, तेकर बादे म बाकी जिनीस म तुम मुक्ति पा सकहू। बाकी मनखे मन भले वोकर ए गोठ ल ''भोले के गोले’’ कहिके हांसत अउ टरकावत राहयं, फेर मोला वोकर जम्मो बात ह सोन कस उज्जर अउ हीरा कस टन्नक लागथे। 

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  • कृति- भोले के गोले
  • लेखक- सुशील भोले
  • विधा- निबंध, व्‍यंग्‍य, आलेख, कहानी
  • भाषा- छत्‍तीसगढ़ी
  • प्रकाशक- वैभव प्रकाशन
  • संस्‍करण- 2014
  • कॉपी राइट- लेखकाधीन
  • आवरण सज्जा - दिनेश चौहान
  • सहयोग- छत्‍तीसगढ़ राजभाषा आयोग छत्‍तीसगढ़ शासन
  • मूल्‍य- 100/- रूपये

वरिष्ठ साहित्यकार सुशील भोले जी का संक्षिप्त जीवन परिचय-

प्रचलित नाम - सुशील भोले
मूल नाम - सुशील कुमार वर्मा
जन्म - 02/07/1961 (दो जुलाई सन उन्नीस सौ इकसठ) 
पिता - स्व. श्री रामचंद्र वर्मा
माता - स्व. श्रीमती उर्मिला देवी वर्मा
पत्नी- श्रीमती बसंती देवी वर्मा
संतान -       1. श्रीमती नेहा – रवीन्द्र वर्मा
                 2. श्रीमती वंदना – अजयकांत वर्मा
                 3. श्रीमती ममता – वेंकेटेश वर्मा
मूल ग्राम - नगरगांव, थाना-धरसीवां, जिला रायपुर छत्तीसगढ़
वर्तमान पता - 41-191, डॉ. बघेल गली, संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर छत्तीसगढ़
शिक्षा - हायर सेकेन्ड्री, आई.टी.आई. डिप्लोमा 
मोबाइल – 98269-92811  

प्रकाशित कृतियां-

1. छितका कुरिया (काव्य  संग्रह)  
2. दरस के साध (लंबी कविता)
3. जिनगी के रंग (गीत एवं भजन संकलन)
4. ढेंकी (कहानी संकलन)
5. आखर अंजोर (छत्तीसगढ़ की मूल संस्कृति पर आधारित लेखों को संकलन)
6. भोले के गोले (व्यंग्य संग्रह)
7. सब ओखरे संतान (चारगोडि़या मनके संकलन)
8. सुरता के बादर (संस्मरण मन के संकलन)

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