छत्‍तीसगढ़ी जीवनी: सुरता बिसंभर यादव 'मरहा' के... सुशील भोले

ये ह तब के बात आय जब हमन छत्तीसगढ़ी भाखा के महिनावारी पतरिका ''मयारू माटी'' के प्रकाशन के उधेड़ बुन म लगे रेहेन। 9 दिसंबर सन 1987 के संझा रायपुर के कुर्मी बोर्डिंग म मयारू माटी के विमोचन छत्तीसगढ़ी लोक कला मंच के सर्जक दाऊ रामचंद्र देशमुख के माई पहुनई दैनिक नवभारत के संपादक कुमार साहू जी के पगरइती म होए रिहिसे। ए कार्यक्रम म लोक सांस्कृतिक मंच के एक अउ पुरोधा दाऊ महासिंग जी चंद्राकर विशेष अतिथि के रूप म उपस्थित रिहिन हें। 

ये जम्मो पहुना मनला मयारू माटी के विमोचन कार्यक्रम म लाने खातिर, उंकर अनुमति ले खातिर मैं अक्टूबर-नवंबर 1987 म कई पइत दुरुग अउ बघेरा जावंव। नवंबर के महीना माने कोंवर जाड़ के आरो आगे राहय। एक पइत मोला दाऊ रामचंद्र जी देशमुख के गांव बघेरा म गोठ-बात करत जादा सांझ होगे। त दाऊ जी मोला रात-बिकाल के अतेक दुरिहा रायपुर कहां जाबे चार पहर रात ल इहें बीताले कहि के रोक लेइन। उही रात के मोला पहिली बेर बिसंभर यादव जी मरहा के दरसन होइस। 

असल म दाऊ जी वो बखत तक ''चंदैनी गोंदा'' के विसर्जन करके ''कारी'' के प्रदर्शन म लग गे रिहिन हें। अउ इही सब दृश्य ल प्रदर्शित करे खातिर उन ''यात्रा जारी है'', शीर्षक ले एक ठन टेली फिल्म बनाए रिहिन हें। वो फिलिम ल मोला देखाए खातिर बिसंभर यादव जी ल मोर संगवारी बनाइन। अउ मोला बताइन के यादव जी घलोक पोठ साहित्यकार हें, संग म म वतके अच्छा कलाकार घलोक हें। बात जब आगू बाढ़े लागिस त धीरे-धीरे सब जानबा होवत गीस के उन दूनों एके गांव बघेरा के रहइया आंय, संग म परोसी घलोक। दाऊ जी के घर के तीरेच म रहिसे बिसंभर यादव जी के घर ह। 

दाऊ जी बताइन के यादव जी उंकर संग कलाकार के रूप म शुरूवाती दौर ले जुड़े रिहीन हे। इहू बताए रिहिन हें के कलाकारी के बेरा म कलाकारी करथें, अउ बांचे बेरा म बढ़ई के बुता करथें। मोला आजो सुरता हे, यादव जी, दाऊ जी के कहे म अपन दू-तीन ठन कविता घलोक सुनाए रिहिन हें। संग म मयारू माटी म छापे खातिर वो कविता मनला मोला देवाय घलोक रिहिन हें। वो तीन कविता म के एक ठन के शीर्षक के तो मोला आज सुरता शीर्षक रिहिसे-''अस्पताल के एक्सरा'' ए कविता के सुरता आज तक दिमाग के कोनो कोंटा म ए सेती रचे-बसे हावय, काबर ते एला कई बछर बाद म मंच मन म घलोक सुने के अवसर मिले रिहिसे। 

वो बखत हमूं मन नेवरिया कवि होगे रेहे हावन, तेकर सेती ऐती-तेती चारों-कोती अवई-जवई चलत राहय, त मरहा जी संग घलोक भेंट होवत राहय। एके मंच म कविता पढ़े के अवसर मिलत राहय। मरहा जी तो जीवन के आखिरी सांस तक मंच के धारन खंभा बने रिहिन हें। फेर मोर रूचि ह पत्रकार होए के सेती गद्य डहर जादा होए लागिस, एकरे सेती मोर संगती ह गद्य लेखक मन संग ज्यादा बाढ़े लागिस, अउ पद्य उहू म मंचीय कवि मन ले दुरिहाए लागिस। आगू चलके अइसे संजोग बनिस ते पूरा साहित्य जगत ले मोर दूरी बाढ़गे। असल म मैं जुलाई सन 1994 ले एक आध्यात्मिक साधना ल पूरा करे खातिर एकांत वास म चले गेंव, जेकर पूरा होए के बाद सन 2009 म वापिस साहित्य जगत म आये के उदिम करेंव। करीब 14-15 साल तक साहित्य जगत ले अलग रेहे के सेती मोर संपर्क ह कवि-साहित्यकार मन ले बहुते कम होवत रिहिसे। फेर मोर सौभाग्य हे के मरहा जी ये दुनिया ले प्रस्थान करे के पहिली उंकर संग फेर भेंट- पैलगी होए ले धर लिए रिहिसे। हमन अपन संस्था 'नव उजियारा सांस्कृतिक एवं साहित्यिक संस्था' डहर ले मरहा जी ल जेन साल हीरालाल काव्योपाध्याय सम्मान ले सम्मानित करे के निरनय लिए रेहेन, ठउका उहिच बछर उन ये दुनिया ले प्रस्थान कर देइन। हमन ल ए बात के हमेशा दुख रइही के हमन उंकर सम्मान के सौभाग्य नइ पाए पाएन। 
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  • कृति- भोले के गोले
  • लेखक- सुशील भोले
  • विधा- निबंध, व्‍यंग्‍य, आलेख, कहानी
  • भाषा- छत्‍तीसगढ़ी
  • प्रकाशक- वैभव प्रकाशन
  • संस्‍करण- 2014
  • कॉपी राइट- लेखकाधीन
  • आवरण सज्जा - दिनेश चौहान
  • सहयोग- छत्‍तीसगढ़ राजभाषा आयोग छत्‍तीसगढ़ शासन
  • मूल्‍य- 100/- रूपये

वरिष्ठ साहित्यकार सुशील भोले जी का संक्षिप्त जीवन परिचय-

प्रचलित नाम - सुशील भोले
मूल नाम - सुशील कुमार वर्मा
जन्म - 02/07/1961 (दो जुलाई सन उन्नीस सौ इकसठ) 
पिता - स्व. श्री रामचंद्र वर्मा
माता - स्व. श्रीमती उर्मिला देवी वर्मा
पत्नी- श्रीमती बसंती देवी वर्मा
संतान -       1. श्रीमती नेहा – रवीन्द्र वर्मा
                 2. श्रीमती वंदना – अजयकांत वर्मा
                 3. श्रीमती ममता – वेंकेटेश वर्मा
मूल ग्राम - नगरगांव, थाना-धरसीवां, जिला रायपुर छत्तीसगढ़
वर्तमान पता - 41-191, डॉ. बघेल गली, संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर छत्तीसगढ़
शिक्षा - हायर सेकेन्ड्री, आई.टी.आई. डिप्लोमा 
मोबाइल – 98269-92811  

प्रकाशित कृतियां-

1. छितका कुरिया (काव्य  संग्रह)  
2. दरस के साध (लंबी कविता)
3. जिनगी के रंग (गीत एवं भजन संकलन)
4. ढेंकी (कहानी संकलन)
5. आखर अंजोर (छत्तीसगढ़ की मूल संस्कृति पर आधारित लेखों को संकलन)
6. भोले के गोले (व्यंग्य संग्रह)
7. सब ओखरे संतान (चारगोडि़या मनके संकलन)
8. सुरता के बादर (संस्मरण मन के संकलन)

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