छत्‍तीसगढ़ व्‍यंग्‍य: धोंधो बाई... सुशील भोले

माईलोगिन मन के मुँह ह अबड़ खजुवाथे कहिथें। एकरे सेती जब देखबे तब वोमन बिन सोचे-समझे चटर-पटर करत रहिथें। हमरो पारा म एक झन अइसने चटरही हे, फेर ये चटरही ह आजकल 'कवयित्री’ होगे हे। बने मोठ-डाँठ हे तेकर सेती लोगन वोला 'कवयित्री धोंधो बाई’ कहिथें। वइसे नांव तो वोकर 'मीता’ हे, फेर 'गीता’ ह जइसे गुरतुर नइ होवय न, वइसने 'मीता’ ह घलो मीठ नइए। एकदम करू तेमा लीम चढ़े वाला। वइसे तो माईलोगिन होना ह अपन आप म करू-कस्सा ल मंदरस चुपर के परोसने वाली होना होथे, तेमा फेर कवयित्री लहुट जाना ह सिरिफ करू-कस्सा भर ल नहीं, भलुक जहर-महुरा ल मंदरस चुपर के परोसने वाली होना होथे।

वोला कवि सम्मेलन मन म जब ले जाए के चस्का लगे हे, तबले वोहा कवि मनला लुढ़ारे अउ ठगे के चालू कर दिए हे। एक दिन अपनेच ह मोला बतावत राहय- 'का बतावौं सर, अभी तो मोला चारों मुड़ा बगरना हे कहिके ए मन ल ठगत रहिथौं। मोर आदमी 'मेहलाबानी’ के हावय कहिके एकर मन जगा 'जाल’ फेंकत रहिथौं। अउ जब वोकर मन के माध्यम ले एकाद-दू मंच मिलगे, अउ संग म दू-चार जगा घूमे-फिरे के खरचा ल वोमन उठा डारिन, तहाँ ले चल जा रे रोगहा तोर ले जादा मोर नांव हे कहिके दुत्कार देथौं।’  

बाते-बात म महूँ पूछ परेंव- 'फेर मंच मन म तो आदमी के नांव ले जादा रचना अउ प्रस्तुति ह मायने रखथे न?’

-'कहाँ पाबे सर, आजकाल के आयोजक मन रूप-रंग अउ देंह-पाँव ल जादा देखथें। जेन जतका जादा फेशन करके रहिथे, वो वतके बड़े कवयित्री।’

-'अच्छा...’ मैं बड़ा अचरज ले कहेंव।

-'हाँ सर... मैं ह तो अपन गुरु के लिखे जेन किताब हे न, उही मनला कविता बानी के ढाल लेथौं अउ मंच म उही ल मेंचका बरोबर उदक-उदक के पढ़ देथौं। अरे ददा रे... तहां ले ताली बजइया मन के का कहिबे। नाचा म परी मनला मोंजरा दे खातिर बलाए बर जइसे सीटी ऊपर सीटी पारथें न, तइसने कस चारों मुड़ा ले इसारा कर- कर के ताली बजाथें।’

-'अच्छा...’ मैं अचरज ले कहेंव अउ गुने लागेंव के लोगन मन के कवि सम्मेलन के पसंद ह अइसन कब ले होगे हे। हमन जब पहिली सुने ले जावन, त अपन भाखा-संस्कृति अउ अस्मिता के बात करइया, अपन गौरवपूर्ण इतिहास के चरचा करइया मन ल 'ताली’ के सुवाद चीखे ले मिलय। फेर अब कइसे उल्टा होगे हे, कवयित्री मन के देंह-पाँव अउ सुंदरई म 'ताली’ बजथे कहिथें। फेर इहू सुनथंव के 'कवि सम्मेलन’ ह 'कवि नाचा’ के रूप धर लिए हे। 'नाचा’ म जइसे जोक्कड़ मन लोगन ल हंसाए बर अन्ते-तन्ते गोठियावत अउ मटकावत रहिथें, वइसने 'कवि नाचा’  म कवि मन हा-हा, भक-भक वाला चुटकिला सुनावत रहिथें। अउ सुने ले मिलथे के 'पद्म सम्मान’ ह घलोक अइसने मनला मिल जाथे कहिके।

कवयित्री मीता उर्फ धोंधो बाई ह मोला अन्ते-तन्ते गुनत देख के, हलावत कहिस- 'सर...सर... कहाँ चल दे हस? तोला तो संपादक हे कहिथें सर, मोर कविता ल छाप देेबे का?’ 

-'कविता ल... अरे तैं कविता घलोक लिखथस... अभीच्चे तो काहत रेहेस के अपन गुरु के लिखे किताब मनला सुर म ढाल के पढ़थौं कहिके...?’

-'त का होगे सर... उही ल तो आजकाल कविता कहिथें। जतका झन पत्र-पत्रिका छापथें, स्मारिका निकालथें, सबो झन तो उही मनला छापथें, त तैं ह काबर नइ छापबे सर...?’

-'मोला दूसर मन ले कोनो लेना-देना नइए भई, के वोमन तोर 'का’ जिनीस ल कविता मान के छापथें ते, फेर मोर जगा तो अइसन नइ चलय।’ काहत मैं वो तीर ले आगू बढ़ गेंव। 
----------0----------
  • कृति- भोले के गोले
  • लेखक- सुशील भोले
  • विधा- निबंध, व्‍यंग्‍य, आलेख, कहानी
  • भाषा- छत्‍तीसगढ़ी
  • प्रकाशक- वैभव प्रकाशन
  • संस्‍करण- 2014
  • कॉपी राइट- लेखकाधीन
  • आवरण सज्जा - दिनेश चौहान
  • सहयोग- छत्‍तीसगढ़ राजभाषा आयोग छत्‍तीसगढ़ शासन
  • मूल्‍य- 100/- रूपये

वरिष्ठ साहित्यकार सुशील भोले जी का संक्षिप्त जीवन परिचय-

प्रचलित नाम - सुशील भोले
मूल नाम - सुशील कुमार वर्मा
जन्म - 02/07/1961 (दो जुलाई सन उन्नीस सौ इकसठ) 
पिता - स्व. श्री रामचंद्र वर्मा
माता - स्व. श्रीमती उर्मिला देवी वर्मा
पत्नी- श्रीमती बसंती देवी वर्मा
संतान -       1. श्रीमती नेहा – रवीन्द्र वर्मा
                 2. श्रीमती वंदना – अजयकांत वर्मा
                 3. श्रीमती ममता – वेंकेटेश वर्मा
मूल ग्राम - नगरगांव, थाना-धरसीवां, जिला रायपुर छत्तीसगढ़
वर्तमान पता - 41-191, डॉ. बघेल गली, संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर छत्तीसगढ़
शिक्षा - हायर सेकेन्ड्री, आई.टी.आई. डिप्लोमा 
मोबाइल – 98269-92811  

प्रकाशित कृतियां-

1. छितका कुरिया (काव्य  संग्रह)  
2. दरस के साध (लंबी कविता)
3. जिनगी के रंग (गीत एवं भजन संकलन)
4. ढेंकी (कहानी संकलन)
5. आखर अंजोर (छत्तीसगढ़ की मूल संस्कृति पर आधारित लेखों को संकलन)
6. भोले के गोले (व्यंग्य संग्रह)
7. सब ओखरे संतान (चारगोडि़या मनके संकलन)
8. सुरता के बादर (संस्मरण मन के संकलन)

0 Reviews