छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंग्‍य: सम्मान के सपना... सुशील भोले

साहित्य के नांव म जोक्कड़ई करइया खेदूलाल ल जबले पद्म सम्मान मिले हे, तबले वोकरे प्रजाति के खेलन, खोरबाहरा, खुबू, खोरकिंजरा, खोरवा जइसे जम्मो झन राज सरकार के अलंकरण ले लेके केंद्र सरकार के पद्म सम्मान तक के  सपना म विधुन होगे हावयं। बपरा मन अपन-अपन परिचय के कागद धरे ये गली ले वो गली, ए मंत्री ले वो अधिकारी अउ ए चयन समिति ले वो सिफारिश तक किंजर-किंजर के सांड़ ले सोकसोकहा बानी के पठरु कस होगे हावयं।

सबो बात तो मोला बने लागीस, काबर ते जे मन लिखत-पढ़त हें, गावत-बजावत हें, नाचत-कूदत हें वोकर मन के हक बनथे अइसन जिनीस खातिर सपना देखे के, अपन सपना ल पूरा करे के। फेर जब ए रस्ता म एक झन सीडी  बेचइया ल जब मैं देखेंव त तरुवा धर लिएंव। लोगन बतावत रिहीन हें, के वो ह अपन आप ल कला-साहित्य के सबले बड़े सेवक मानथे, संरक्षक अउ पारखी तेकर सेती चाहथे के वोला राज अउ केंद्र दूनो स्तर के सम्मान मिलय, संग म इहां के जनता घलोक वोला कला-साहित्य ऋषि के पदवी देवय। लोगन बताथे के वोकर पोंसवा कलाकार अउ साहित्यकार मन वोला कला पुरुष के पदवी म बइठार डरे हवयं, तेकर सेती जनता ह वोला कला-ऋषि के पदवी देवय।

एक पइत मोरो वोकर संग अड़भेट्टा होगे। त गुनेंव आज तो पूछे लिए जाय के जे बात के सोर उड़त हे, वो ह सिरतोन आय के नहीं ते? मैं पूछेंव- कस सेठ, मोला अइसे आरो मिलत हे के ए साल के पद्म सम्मान खातिर तहूं ह सरकार जगा आवेदन पठोए हावस कहिके?

-हां पठोया हूं नी बाबा! वरी इस पूरे छत्तीसगढ़ में मेरे से ज्यादा कोई कला का पुजारी है? जितना कैसेट और सीडी बेचकर मैंने यहां की सेवा की है, उतना और किसी ने किया है क्या?

बात तो सिरतोन काहत हस, जतका लंदर-फंदर कैसेट बच केे तैं ह इहां के दूरदशा ल बिगाड़े हावय, वतका अउ कोनो तो एकर गत ल नइ मारे हे।

मोर बात ऊपर वो थोक रोसियावत कहीस- वरी क्या लंदर-फंदर कहता है नी? जो जैसा मांगेगा वैसा ही तो देगा ना। अब लोग जब तड़क-भड़क मांगता है तो हम तो भजन सुना नहीं सकता है नी?

मैं वोकर हां म हां मिलावत कहेंव- भई एक लेखा तोर कहना सही हे। आखिर कोनो भी व्यापारी के एकमात्र सिद्धांत या उद्देश्य सिरिफ लाभ कमाना होथे। चाहे वोकर बर वोला कइसनो माल परोसे बर लागय। इहां तक तो तोर कहना सही हे, फेर ये कहना के लोगन जइसे मांगथे, वइसन देथन, ए ह गलत हे। देना भइ में ह तोर से आरुग संस्कृति म गूंथे कैसेट मांगत हाववं, त मोला वइसने देना।

वरी तेरा अकेल्ला के लिए कइसे बनाएगा न बाबा। दो-चार और लोगों को खंधोलो न। आखिर शूटिंग-फूटिंग में खरचा लगता है कि नइ?

आखिर शूटिंग म का खरचा लागत होही सेठ? एकठन विडीयो कैमरा ल एक जगा मढ़ा देथेस, तहां ले टूरी-टूरा मन परघनी कस नाचा धमक-धमक नाच देथें। एमा भला का खरचा आवत होही?

वरी आएगा कइसे नहीं। कलाकारों को मोटर में बइठार कर ले जाता हूं। बोकरा-भात खवाता हूं। फेर ऊपर ले दू-चार रुपिया देता घलोक हूं।

अच्छा... तैं ह रुपिया देथस सेठ। अरे... मोला तो कलाकार मन बताथें के तै ह कलाकार मन ले फिलिम म चांस देहूं कहिके मांग लेथस?

बाबा... लड़कियों को... बिना पैसे के हालती-डोलती भी नहीं हैं। हां... लड़के लोग अच्छे हैं, फोकट में नाचते भी हैं, और पैसे भी दे देते हैं। कभी-कभी हमारे लिए सम्मान समारोह का आयोजन भी कर देते हैं। बाबा... तभी तो कला पुरुष का पदवी पाया हूं नी।

वोकर गोठ ल सुन के मोर मइंता तो भोगावत रिहीसे, तेकर सेती महूं बेलबेली लगाए कस कहेंव- अरे भई टूरा मन कस जब टूरी मन फोकट म नइ नाचयं, त तैं ह अपन घर के बहू-बेटी मनला काबर नइ नचवावस जी। अरे... इही बहाना उहू मनला कला नारी के पदवी मिल जाही। तैं कला पुरुष होगेस वो कला नारी कहाही। कतका सुघ्धर जांवर-जोड़ी बनहू। पूरा दुनिया म तुंहर नांव अमर हो जाही सलीम अउ अनारकली कस।

वोला मोर बात बने गढ़न केे नइ जनाइस तइसे  कस लागीस, तभे तो भनभनाय असन कहीस- हमर घर के नारी मन नाचा-गम्मत नइ करयं। दूसर मनला नचवाथें भर।

अच्छा त सिरिफ दूसर मनला नचवा भर के तुमन कला के साधक अउ सेवक बन जाथौ जी? ए तो दोगला- पना आय। अरे भई जब तैं दूसर के बेटी-बहू ल नचवा सकथस त अपन ल काबर नहीं? सिरतोन काहत हौं सेठ, तैं जब अपन घर के बहू-बेटी ल नचवाबे न, त इहां के नाचकाहर टूरा मन तोला अउ जादा पइसा दिहीं। अरे एक पइत तो नचवा के देख, चारों मुड़ा ले पइसा के बरसा होही तोर घर म। आखिर तहूं तो इही चाहथस न तोर घर के कोठी ह पइसा म भर जाय?

वरी हम धंधा करता है नी, उससे पैसा आएगा। काहत वो मोर तीर ले घुंचगे। मैं समझ घलोक गेंव, वोकर जगा मोर सवाल मन के कोनो किसम के सही जवाब नइए। न वोकर करा हे, न चयन समिति करा हे, न वोकर नांव के सिफारिश करने वाला मन करा हे। 

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  • कृति- भोले के गोले
  • लेखक- सुशील भोले
  • विधा- निबंध, व्‍यंग्‍य, आलेख, कहानी
  • भाषा- छत्‍तीसगढ़ी
  • प्रकाशक- वैभव प्रकाशन
  • संस्‍करण- 2014
  • कॉपी राइट- लेखकाधीन
  • आवरण सज्जा - दिनेश चौहान
  • सहयोग- छत्‍तीसगढ़ राजभाषा आयोग छत्‍तीसगढ़ शासन
  • मूल्‍य- 100/- रूपये

वरिष्ठ साहित्यकार सुशील भोले जी का संक्षिप्त जीवन परिचय-

प्रचलित नाम - सुशील भोले
मूल नाम - सुशील कुमार वर्मा
जन्म - 02/07/1961 (दो जुलाई सन उन्नीस सौ इकसठ) 
पिता - स्व. श्री रामचंद्र वर्मा
माता - स्व. श्रीमती उर्मिला देवी वर्मा
पत्नी- श्रीमती बसंती देवी वर्मा
संतान -       1. श्रीमती नेहा – रवीन्द्र वर्मा
                 2. श्रीमती वंदना – अजयकांत वर्मा
                 3. श्रीमती ममता – वेंकेटेश वर्मा
मूल ग्राम - नगरगांव, थाना-धरसीवां, जिला रायपुर छत्तीसगढ़
वर्तमान पता - 41-191, डॉ. बघेल गली, संजय नगर (टिकरापारा) रायपुर छत्तीसगढ़
शिक्षा - हायर सेकेन्ड्री, आई.टी.आई. डिप्लोमा 
मोबाइल – 98269-92811  

प्रकाशित कृतियां-

1. छितका कुरिया (काव्य  संग्रह)  
2. दरस के साध (लंबी कविता)
3. जिनगी के रंग (गीत एवं भजन संकलन)
4. ढेंकी (कहानी संकलन)
5. आखर अंजोर (छत्तीसगढ़ की मूल संस्कृति पर आधारित लेखों को संकलन)
6. भोले के गोले (व्यंग्य संग्रह)
7. सब ओखरे संतान (चारगोडि़या मनके संकलन)
8. सुरता के बादर (संस्मरण मन के संकलन)

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