छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंग्‍य: महंगई उन्नति के चिन्हारी

महंगई उन्नति के चिन्हारी

हमर घर टूरा के दाई ह महिना के रासन-पानी ल बजार ले बिसा के रिक्सा म जोर के लानीस। ओकर चेहरा म बिसेस चमक राहाय। जने मने कोनो पहेलवान ह दंगल जीत क आय हे तइसे। रिक्सा वाला ह अपन माथा के पछिना ल गर म लपटाय पटकू म पोछत रिक्सा भाड़ा ल झोके बर ठाढ़े रहाय। गोसईन ह अपन खाद म ओरमाय बेग ले दस रूपिया के नोट ल निकार के रिक्सा वाला डाहार हांत ल लमईस। नोट ल देखके रिक्सा वाला के मुह अइसे होगे जने मने कहि करू कासा ल खा डारे हे तइसे। अउ किथे ओतेक अस समान अउ उपर ले सवारी दस रूपिया म कइसे बनही बाई, याहा तरहा महंगई म, तीस रूपिया होही मई। महंगाई के नाव ल सुन के रिक्सा वाला के पीरा ल माहसुस करके ओला तीस रूपिया दे दिस। 

काबर कि खुदे बजार ले खरीदी कर के आय रीहीस, सरी जीनीस के भाव ह बादर ल छुवत हे। आज कल के महंगई के मार भला कोन घर-गिरस्ती वाला मन नई साहात हें ?  जइसे ओ रिक्सा वाला के पीरा हे तइसे सबो के हे। तभे तो सब डईकी-डउक मन महंगई ल मन माने बखानथें। सबो जीनीस ल परछी म मड़ा के डब्बा-डिब्बी म भरत-भरत मोला सुना-सुना के काहात हे - येदे जीनीस ह पहिली अतका म मीलत रीहीस तेन ह अतका म मीलत हे। येदे ह अतका किलो म मीलय तेन ह अतेक म मीलत हे। थोर महंगई बाढ़गे। दिन के दिन महंगई रोगहा ह सुरसा कस मुंह बाड़हत जात हे।  मैं अराम खुरसी म बईठे ‘हरिभूमि‘ पेपर ल पढ़त राहांव। गोसईन किथे - जब ते पहिली-पहिली नवकरी म आय त महिना म डेढ़ सव रूपट्टी मिलय। 

चालिस बरस नवकरी करत होगे। आज तोला रूपिया पंदरा हजार मीलथे। डेढ़ सव म हम महिना चला डारन, अउ थोक बहुत ल बचा घलौ डारन, आज ओतक-ओतक रूपिया ह पुर नई परत हे। में केहेंव-अरे बही तइहा ल लेगे बइहा। ओ समें सस्ती के जमाना रीहीस। तभो ले हमन राहेर के दार ल नई खा सकेन। न बने ओन्हा पहिर सकेन। आज बिगन राहेर दार के कौरा नई उठय। घीव, तेल, गोरस, ह नोहर होय राहाय। चालिस साल पहिली देस म अदमी के संखिया ह कमती रीहीस। काही-काही जीनीस मन मंगनी म मील जवय। अब तो सरहा जीनीस बर गॉठ ढिलीयाय बर परथे। ते मोला लड़स-अतक मांहगी-मांहगी जीनीस ल काबर लानथस कहिके, ससती ल-खाबोन त दु पइसा बांचही, अड़चन म काम आही कहिके। 

आज का जीनीस ह सस्ती हे, सरहा जीनीस-साग भाजी ह तक तो जरे के लईक मांहगी हे, तभो ले लेवत हन, खावत हन, पहिरत हन। आगू लोगन के जादा खरचा घलो नई राहाय। आज जमाना बदल गेय हे। पहिली जउन जीनीस ह जरूरी नई रीहीस तउन ह आज जरूरी होगेय हे। महंगई-महंगई चिचियाथें, तभो ले ओ जीनीस के मांग बाढ़ते जात हे। पिटरोल-डिजल के भाव ह रोज बाढ़हत हावय तभो ले लोगन मोटर-फटफटी चलाय बर कमती नई करंय। नई मिलय त बिलेक म ले के चलाथें। आज-काल तो मोटर-गाड़ी ह घरो-घर होगेय हे। आगू नोहराहा राहाय। पहिली बड़े आदमी मन घर टेलीफोन राहाय। 

आज जेन ल देखबे तेखर खीसा म मोबाईल पाबे। मोबाईल म थोर पईसा नई लागय। आज-काल लोगन के कमई घलो बाढ़ गेय हे तेखर सेती खरचा करे म कमी नई करंय। सऊख के आगू म पइसा का हे। आनी-बानी के देसी-बिदेसी जीनीस आ गेय हे। हमन ह अर्थ-सासत्र म पढ़े रेहेन कि मोटर-कार-टेलीफोन ह जतका जरूरी डाक्टर-उकील बयरीसटर, कलेक्टर बैपारी बर जरूरी हे, ततका जरूरी एक मासटर बाबू, चपरासी अऊ मजदूर बर नई हे। आज ओ सिद्धांत ह फेल खागे हे। आज सबो बर जरूरी होगेय हे।
 
आज भवतीय जुग म सब भवतीकता के गुलाम बनगें। लोगन माहंगी जीनीस ल बीसा के अपन हैसियत बघारथें। संसार म अइसे लोगन घलो हें, अउन मन ल एक टेम के पेज-पसिया घलो नसीब नई होवत हे। पहिली दुख पावत जीनगी कट जावय। आज कमती मेंहनत करके जादा सुख भोगेके आदी हो गेंय हें। तेखरले तो ओ मोबाईल ह अति होगे हे। सुतत-उठत-रेंगत-फटफटी-चलावत हाय-हलो करत रहिथें। भले एकसीडेंठ हो जाय, कोनो ल परवाह नई हे। टीबी, सीडी, फिरीस, कूलर, बासींग मसीन, आनी-बानी के इलेक्ट्रानिक जीनीस राखे-राखे हें। ए जीनीस मन सबो बर बहुत जरूरी होगेय हे। मोर गोसईन किथे - सुख कइसे नई भोगही पछिना गला के जउन कमई करथें तिखर ले जादा तो भसटाचार-लूचपतखोर मनसुख भोगत हें। 

सबके नयतिक चरित्र ह गीरत जात हे। सुआरत म सब अंधरा हो गेय हें। बिगन लूचपत के कहीं काम नई होवय। पढ़े-लिखे हुसियार लईका मन ल नवकरी नई मिलय। पईसा झोंक के नलइक मन ल भरती कर लेथें। नवकरी ह पइसा म बेचावत हे। तभे तो सब गोठियाथें।-नान-ना नवकरी बर लाख दु लाख देय ल परथे कहिके। लोगन करा फोकट के पइसा हे त बयपारी मन काबर नई लूटही। सब बात के एके ठन बात-सबले बड़े रूपईया-ददा चिनहे न भईया। जेकर करा पईसा हे तउने संसार के सुख ल भोगत हे। अइसे नई कहांय-कोनों जीनीस ह माहंगी हे ते ओला नई बिसावत। माहंगी होवय चहे ससती ओला लेहींच-इंही तो उन्नति ये-तरक्की ये। 

अतका गोठ ल सुनके मोर गोसईन कहिथे-हां-हां इही तो तरक्की ये तभे तो अतक दिन ले सुख ल भोगते हंन। ते हरिचंद सहिक महात्मा आस। दु पईसा कखरो करा लेवस, न मांगस। सब मन तो तनरबा के उप्पर ले दु पईसा ऐमा-ओमा निकारत हें, तभे तो पीटरोल-मोबाईल के खरचा के अलादे अतेक टुम-टाम ल करथें। खरी कमई ल अइसने उड़ातीन त जानतेन। मंहगई ह सब बर तरक्की ये, अउ तोर बर अंधियारी। अरे कहिथें न-अंधियारी के रोना रोय ले भला हे एको ठन दीया बार लेय। मोला आज चालिस साल होगे, तोर घर आये, का सुख मीलीस मोरे भाग फूटआ हे रोगहा ह। सब मन फटफटी म इंहा-उहा कींदरथें का मोला सऊख नई लागत होही जउन ल देखबे तउन मन मोबाईल धरे धरे हे, का मोला अपन पूत-भतिज, नाती-पंथी संग हांस-हांस के गोठियाय के सऊख नई लागत होही ? महू कखरो संग हाय-हलो कर लेतेंव। ते तो मुड़ मं राख ना के निकर जथस दिन भर बर, मैं चंडालीन अकैल्ला बइठे रहिथंव तोर डेरौठी ल राखत। टीबी-मीबी रहितीस ते उही ल देखत रहितेंव। 

मोरो मन हरिया जतिस। गरमी म पछिना थपथपावत बइठे रहिथंव, न कूलर, न पंखा। काला सुख कहिथे तेन ल महू भोग लेतेंव। मंहगई ह तो मरत ले रहिबे करही, येखर ले कहां मुकति मीलही? गांव म पक्की सड़क बनगे, दु-चार ठन पक्की मकान बनगे, रसपताल-इसकूल खुलगे, साहार के जम्मो गंदगी ह गांव म अमागे। गांव-गांव म मंद भट्ठी खुलगे। का इही ल तरक्की किथें ? तोर का तरक्की होईस। चालिस बरिस ले एके पद म हावस। दु चार महिना म रिटायेर घलो हो जबे। आधा तनखा म कइसे घर चलही ? 

चूलहा के गेस म पचाय रूपिया बाढ़गे कहिथें। आज-काल लकड़ी घलो नई मीलय। ओखरो चार-पांच सव रूपिया कुंटल हे कहिथें। मांहगई ह तो मारबे करत हे, फेर हम तो तोरे मारे मरत हन। गोसईन के महगई उपर चिंतन करई ल सुनके मोरो कवि हिरदे म चिंतन करे के खजरी उमड़ीस। मोर हिसाब म मंहगई तो सबो डाहार बाड़हत हे। येखर बर कोनो एक झन दोसी नईहे। ये ह भला सब के घुस्सा ल मोरे उपर काबर उतारत हे। घोड़वा के रोग बेदरवा उपर किथे तइसे। फेर ओखर सोंचई ह गलत नई हे, जइसन मोर घर अंसतोस अमाय हे तइसने सबो घर होही।
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लेखक का पूरा परिचय-

नाम- विट्ठल राम साहू
पिता का नाम- श्री डेरहा राम साहू
माता का नाम- श्रीमती तिजिया बाई साहू
शिक्षा- एम.ए. ( समाजशास्‍त्र व हिन्‍दी )
संतति- सेवानिवृत्‍त प्रधानपाठक महासमुंद छत्‍तीसगढ़
प्रकाशित कृतियां- 1. देवकी कहानी संग्रह, 2. लीम चघे करेला, 3. अपन अपन गणतंत्र
पता- टिकरा पारा रायपुर, छत्‍तीसगढ़
वेब प्रकाशक- अंजोर छत्‍तीसगढ़ी www.anjor.online

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