छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंग्‍य: एक सुआरी ब्रता

एक सुआरी ब्रता

बिगन जोड़ी के ये जीनगी अबीरथा लागथे। मोला आज माहसूस होवत हे। जब मोर गोसईन ह महिना भर होगे गांव गे हे, आवत नइ हे, तब। घर-दुआर के संभलई ह सबो ले नई होवय। एक झन मही अइसे खरतरिहा डौका आंव तभे तो ओहा अपन अतक बड़ गिरहस्ती ल मोर भरोसा छोंड़ के महिना-महिना गांव कींदरत रिथे। 
आज-काल के मनखे मन कांहां बिसवास करें के लइक हें ? एक झन गोसईन वाला (एक पत्नि व्रत) के धरम ल तो ओमन कब के चुलहा मं धसा डारे हें। करतव्यनीस्ठ, येके गोसईन संग जीनगी भर सुख-दुख ल भोगे के बात ह तो, केहेच भर के रहि गेय हे। तहा सबे झन तो हरहा गोल्लर कस ऐती-ओती मुंह मारे के ओखी खोजत रिथें। ये मन ल मोर ले कुछु सीखना चाहि। हमर घर तीर के एक झन परोसीन ह कांही-कांही के ओखी करके मोर घर अईच्च जही, चहे मोर गोसईन घर म राहाय चहे झन राहाय। साग ल बघारत रहूं ततके बेरा आ जथे अऊ पुछे लगथे-का बात हे परोसी, आज कांही खास बात ये का तोर फोरन ह तो बस्ती भर ममहागे ? नीच्चट देह ऊपर गिरे परथे। कहूं मोर गोसईन ह देख परही त मोर का दसा करही येला तो तुमन जानतेच हावव। अऊ कहिथे-बाबू तै ह बड़ सुग्घर के साग-भात रांधथस भई, अतका सुग्घर तो हमन माई लोगन मन नई रांधन। 
अपन बड़ई हा भला कोन ल बने नई लागय ? उहू कोनों माई लोग ह करत हे त, में तो अपन बड़ई सुनके फुग्गा सही फुलगेंव। दुसर मन सहीक महूं लजावत केहेंव-कांहा भऊजी अभीन तो में सीखत हों, कभू मिरचा जादा हो जथे त कभू कुछू अऊ। नून ल तो डारेच ल बीसर डारथो। नहिं ते कभू नून ह खर हो जथे। अऊ दार ह तो मोर बुती गल बे नई करय। त परोसीन भऊजी ह लाहाक के कहिथे - नहीं नहीं बाबू तैं तो दार ल अच्छा तरहा ले गला डारथस, चहे कइसनों दार होवय ओला गलनच परथे। ओ महराजीन घलो तुंहर बड़ई गोठिययावत रीहीस। जऊन घोटराहा दार ल गला डारीस तऊन ह असीक्खा होयेच नइ सकय, हम कइसे पतियावन, तभे मे अपन गोसईन ल महिना-महिना छोंड़ के रही जथस। हमर घर गुड्डू के पापा ह तो एक ठन हींग ल नई धोरय, तोर सहीक आदमी कहूं मोला मिल जतिस ते....। 
मैं सरम के मारे पानी-पानी होवत राहांव। काबर नी होतेंव, जेखर म पानी रहिथे तऊने तो पानी-पानी होही ? रंधनी घर म बने टठिया मन ल गोसईन ह सजा के टांगे राहाय तऊन ल देख के किथे - वाह का बात हे, माने ल परही भगवान ह तुहंला माई लोगन गढ़हत-गढ़हत डौका लोग बना दिस। 
मैं अचरित करत पुछेवं, कईसे- कईसे का होगे तेन मां ? 
ओ किथे- रंधनी घर के सजई ल तुहंर ले सीखे बर परही। का तुमन होम साइंस घलो पढ़े हावव ? 
मैं केहेंव-नहीं अइसन बात नोहे, ये टठिया उ ल तो उही मड़ा के गेय हे। एक-दु ठन मन ल मैं अइसने मड़ा देय हंव। बुता करईया बाई ह धो-मांज के मड़ा देथे। फेर जब ले गोसईन ह गांव गेय हे, तब ले उहू नी आवत हे। काली बतायेच बर आय रीहीस- बाई कब आही ? बाई आही त महूं आहूं कहिके। सब बुता ल मुहीं ल करे बर परथे सारे के ला। परोसीन-हां, हां तभे यदवईन दीदी ह काहत रीहीस-साहू बाबू सहीक हमर मोहल्ला म अऊ कोनों दुसर मरद नई है। जम्मों मरद मन ल ऊंखरले सीख लेना चाही। अइसे कोन बुता हे, जेन ल ओ नई कर सकय झाडू-बाहरी, बरतन-बासन, रंधई-गढ़ई कपड़ा-लत्ता कंचई सरि बुता ल कर डारथे। बिचारा ह। इहां तक सउहइन के सांया-लुगरा तक ल धो के सुखो डारथे। हाय हमन ल नी मिलीस अइसन जोड़ी, उप्पर ले सऊहइन ह बिचारा ल खीसियाते रिथे। अइसे नी करेस, ऊहां नी गेय ओ जीनीस ल नी लाने कहिके कीट-कीटावत रिथे। मैं परोसीन के अपनपन उपर बरफ सही टिघल गेंव। जब कहूं अपनपना देखाथे त ओहा अपनेच बरोबर लागथे। दुख ह हरा जथें, तेखरे सेती अपन संग लागमानी के कमजोरी ल ओखर आगू म गोठिया डारथे। मैं ओखर अपनपन ल देखके बांस भर गहुंरी भुइंया मं गड़ गेंव। अऊ मोर हिरदे बरत-भुजावत रहय। मैं कहेंव-तभो ले मोला हर हमेशा ताना मारत रिथे। किथे- तैं ओ मीसरईन ल अपन संग फटफटी म बइठार के काबर लाने ?  अऊ ओखर संग बने हांस-हांस के गोठियाथस ? मैं अच्छा तरहा ले जानथंव तोर ओखर संग जऊन खेल होवत हे तेन ल। 
कालोनी के जम्मों स्त्री मन तोरे बड़ई करथें, अऊ कोनों मरद नई हे ? तहीं एक झन मेछा वाला आस, जम्मों झन अपन मेंछा ल मुडुआ डारे हें ? सबो संग मीठ बेवहार राखना चाही कहिथस। का नारी मन संग मीठ-मीठ गोठियाना चाही, अऊ आदमी मन संग ? ओ मन जब बइठे-उठे बर आथें त तैं ह घर भीतरी सपट जथस। उंकर मन संग मुही ल बइठे बर परथे। मरदजात ते आस धुन मैं?
अपन दफ्तर के मेंड़म मन संग घलो लड़ियावत रिथस। सब मरदजात मन चूरी पहिर डारे हें का ? बता  भऊजी, अइसने कहेना चाही ? अच्छा बने गिरस्ती के गाड़ी सुग्घर चलत हावय, तेन ल बिगाड़ना चाहात हे। अरे ओ उप्परवाला ल धन्यवाद देना चाही जऊन ओखर संग सात भांवर कींदर के जीनगी भर बर अपन जोड़ी बनायेंव।  आज ले ओ कुंवारी रेहे रितीस। ओखर ले दु-तीन झन बड़े बहिनी मन आज ले उठे नई हे। बइठे-बइठे बुढ़िया होगे। अब कोन ऊंखर संग बिहाव करही आ मन तो आऊट आफ डेट घलो हो गीन। ये तीन्नों बहिनी मन अपन दाई के अंगोठ हावे। ओखर माहतारी घलो बड़ घमंडिन हे, डोकरा ल रोज करू-करू भाखा देवय। बने होगे बिचारा ल भगवान उठालीस। नहिते आज ले ओला करूंच भाखा सुने ल परतिस।
खपसुरती ले का होही दिन-रात ओला चांटत रही ? गुन के पूजा होथे भई। मोर दाई-भाई मन ल किथे-घेरी-बेरी आथे, इहां बने-बने खाय ल मिलथे तेन पायके। जब देखबे त भइगे पईसच मांगथे। जने-मने इहां पइसा के टकसाल हावय तइसे। का हमीमन एके झन आन जौन पईसा ल बांटत फिरबोन अऊ तो ऊंखर तीन-तीन झन भाई हे, ऊंखर करा नी मांगतीन ? तहीं बता भऊजी मोर ददा-भाई मन मोर मेंर नई आही त का दुसर मेंरन जाही ? इही दिन बर ओमन पइदा करीन, लिखईन-पढ़ईन ? का ऊंकर मन बर मोर कोनों फरज नई बनय ?  परोसिन किथे-अरे राम-राम ओला अइसन सपना म घलो नी करना चाही ? ओमन तो तुहर माता-पिता ये, ऊंकरे असीस ह पुरही। मैं तो जानथव कि सबे माई लोगन मन ऐके बरोबर होथें। उन एक-दुसर ले खुदे इरखा राखथे। 
ओह मोर सरोटा इंचत हे तेखर एके ठन कारन हे कि मोर आगू म मोर गोसईन ल हीनहर अऊ मोला बने बताना। अऊ ओकर फेंके जाल म फंसे राहांव। मैं पहलीच बता डारे हांव कि में एक पत्नी बरतके पालन करइया आंव परोसिन ल भरम होगे रीहीस कि में ओखर सहिरदयता ल देख के ओकर आकरसन म तीरा जहूं। अऊ गोसईन ल मोर उपर संखा हे तऊन हा सिरतोन हो जही, परमाणिक हो जही। मोर गोठ ल सुन के परोसिन ल सोरा आना बिसवास होगे अऊ किहिस-‘‘त सिरतोन म महराजिन संग तुंहर लटर-पटर नई चलय ?  काबर कि कुहरा जब निकरथे त जरूर कोनों मेंरन आगी लगे रिथे। संखा म, कोनों कोनहा म सतिया जरूर रहिथे। 
परोसिन ह सी.आई.डी. कुकुर बरोबर मोर अंतस म लुकाय चोर के पता करे बर चारा फेके रीहीस। उंहा चोर रहितीस तब न ?  गोठ ल आगू बड़हावत किथे-बइसे केहे हे ‘दिल लगी मेंड़की से तो पदमनी क्या चीज है।‘ दिल तो हे कखरो बर लग सकत हे। अब देखंव न राव साहेब संग सिरिमति एन के संबंध ला ले के कतक बड़ बात के बतंगड़ होईस। आखिर उही होइस जऊन होना रीहीस। अब मान लव कि तुंहर गोसईन खपसुरत हे, जवान, हे तभो ले तुहर मन कहूं मोर बर आगे या अऊ कोनों पर आगे त ओला कोनों का कर सकत हे, कइसे ? 
मन म जउन खोट हे तऊन ह बाहिर अइच जथे। मैं हड़बड़ा गेंव, न हव काहात बनीस न ना। जने मने मोला सांप छू डारीस तइसे होगे। मे अपन आप ल ओखर जाल म फंसत होंव अइसे लगे लगिस। मैं अपन ल निरदोस नई कहि सकत रेहेंव। तभे तोे ‘सांच ल आंच नहीं‘ किथे। मैं अपन निश्छल मन ल हाजिर नाजिर जान के अपन आप ल एक पत्नी बरता साबित करीच के सांस लेंव। 
मोर एक पत्नी बरत के आगू ओखर बहुपति तिरीसना हारगे। तभो ले ओह असफल परयास ल अपन विजय समझे लगिस। अपन गुरतुर मुसकई ल बगरावत ‘अंगूर खट्टे हैं‘ के तरज म हंस असन-चाल म अपन घर डाहार रेंग दिस।

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लेखक का पूरा परिचय-

नाम- विट्ठल राम साहू
पिता का नाम- श्री डेरहा राम साहू
माता का नाम- श्रीमती तिजिया बाई साहू
शिक्षा- एम.ए. ( समाजशास्‍त्र व हिन्‍दी )
संतति- सेवानिवृत्‍त प्रधानपाठक महासमुंद छत्‍तीसगढ़
प्रकाशित कृतियां- 1. देवकी कहानी संग्रह, 2. लीम चघे करेला, 3. अपन अपन गणतंत्र
पता- टिकरा पारा रायपुर, छत्‍तीसगढ़
वेब प्रकाशक- अंजोर छत्‍तीसगढ़ी www.anjor.online 

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