छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंग्‍य: हांसी गर के फांसी

हांसी गर के फांसी

हंसई के जीनगी मा बड़ महत्तम हे। कखरो, मजबुरी उपर, परोसी मन उपर दुख परे हे तेखर उपर, कखरो हार उपर हांसी आथे। काबर कि हंसई हा तो मनखे के सुभावे होथे ओहा दुसर उपर हांसथेच। हांसी हा सुखी जीनगी के महामंतर ये। कतको झन मन हांसे मा घलौ कंजूसी करथें। अपन ते अपन दुसर उपर घलौ नइ्र हांसय। कतको गियानिक मन के कहना हे, कि हंसई हा हमर सुवास्त बर बड़ फायदा के होथे। तेखर सेती हमन ला दुसर उपर बड़ हांसना चाही। कोनो रद्दा रेंगत हपटगे, कई झन केरा के फोकला मा बिछल के गिर परथें, कोनों गाड़ी-घोड़ा ले अपन सुंआरी सम्मेत गिर परथें ता लोगन के हांसी थामहे नई थमें। 

जब मन हा खुस रिथे ता हांसेच-हांसे के मन लागथे। खुसी हा जीनगी के परम-चरम उपलब्धि-परम पुरसारथ ये। यहा अलकरहा महंगई मा बडे़-बडे़ हमर सहीक पुरसारथी मन के कनिहा ढीलिया जात हे। गोंदली-बंगाला अऊ जलदी सरईया-गलईया जीनिस, हरियर साग-भाजी हा मनखे के मुंह के हांसी ला नंगावत हे। राजनीतिक पारटी मन लोगन ला आनी-बानी के सपना देखाके लुभावत हें। तौंन ला देख-सुनके मोला हांसी आथे। जौंन मन सुराज के तीन कोरी बछर मा जनता ला बेकारी, गरीबी, महंगई, अलगाववाद, वर्गभेद के सिवाय अऊ का दिन ? अंधरा बांटे रेवड़ी अपने-अपन ला देवय। समरिद्धि अऊ संपन्नता हा खास लोगन मन मेंर धंधाए हे। 

लचारी अऊ मजबुरी हा जनता के भाग मा हे। हांसी आथे-घातेच हांसी आथे, काबर के मोर गोसईन के कहना हे कि जौंन दुख-पीरा मा, असफलता मा घलो हांसथें उही मन जीनगी के अरथ अऊ जीनगी के मरम ला जानथें। कोनों बुद्धि, बल अऊ धन मा समाज मा चाहे कतको ऊंच काबर नई उठे रहाय, तभो ओ मरे कबरोबर हे। जीनगी तो जिंदा दिल के नाव हे। का होईस तोर बेटा परीकक्षा मा नपास होगे ते, सरकार नपास हो जथे, ओखर करोड़ो के योजना नपास हो जथे। कारखाना, बड़े-बड़े कम्पनी, बैंक फेल हो जथे। नेता मन के बड़े-बड़े वादा हा फेल खा जथे। इहां तक मनखे के हाटफेल हो जथे। ये नपास के चक्कर ले महुं केऊ खेप बांचे हौंव, तेखर जम्मों बड़ई ला मेहा अपन गोसाईन ला देथंव। कहूं ओहा ‘दार-भात मा मुसर चंद‘कहिथे तइसे बीच मा नई टोंकतिस त में कबके बोहा जतेंव। जुन्ना इतिहास गवाही हे- महान पुरूस मन बड़े-बड़े मुसिबत मा घलौ धीरज धरके मुस्की ढारत रहांय। 

समरकंद के राजा तैमूरलंग लड़ई मा बीस खेप ले हारिस, फेर ओ कभू हिम्मत नई हारिस, आखिर मा ओखर जीत होईस। तुमन सोंचथव कि सरकार हा हमर लईक होवय, तुमन जौंन-जौंन वेवस्था चाहथव सब ला पूरा करय, तैं चाहथस का ? इही न कि चऊंर-दार अऊ जम्मों जीनिस मन ससता होवय, महंगई कम होवय, बेकारी खतम होवय, देस के मन गरीबी रेखा ला नहाक के लालू अऊ  सुखराम के लैन मा आके ठाढ़ हो जावंय। 

तुंहर मन के मुराद अवस करके संपूरन होही, फेर येखर बर धीर-धरे बर परही। जइसे तीन कोरी बछर लेबाट जोहेव तइसे दुकोरी बछर ले अऊ धीर धरव। सत्तावादी राजा हरिसचंद्र अपन बेटा के मरे के दुख मा घलो थोरको दुख नई मनाईस। थोरको अपन मन ला उदास नई करीस अऊ अपन धरम मा अड़े रीहिस त का...? में अपन धरम के पक्का नई हो सकस ?  असल बात ये हे कि बिपत मा रोय-धोय ले, अपन उछाह ला कमती करे ले बढ़िया धीरज धरके निडर होके ओखर ले लड़ना चाही, इही मइनखे के सच्चा बीरता अऊ जीनगी के सफलता ये।

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लेखक का पूरा परिचय-

नाम- विट्ठल राम साहू
पिता का नाम- श्री डेरहा राम साहू
माता का नाम- श्रीमती तिजिया बाई साहू
शिक्षा- एम.ए. ( समाजशास्‍त्र व हिन्‍दी )
संतति- सेवानिवृत्‍त प्रधानपाठक महासमुंद छत्‍तीसगढ़
प्रकाशित कृतियां- 1. देवकी कहानी संग्रह, 2. लीम चघे करेला, 3. अपन अपन गणतंत्र
पता- टिकरा पारा रायपुर, छत्‍तीसगढ़
वेब प्रकाशक- अंजोर छत्‍तीसगढ़ी www.anjor.online 

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