छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंग्‍य: चुनई जीते के जुलूस

चुनई जीते के जुलूस

भईयाजी ओटिंग म जीते राहय। तेकर खेती सहर म बड़ भारी जुलुस निकरे राहय। फउज-फटाका, बाजा-गाजा, रंग-गुलाल के सेती देवारी अउ फागुन ह एके संग आगे हे तइसे लागत राहय। बिजय जुलुस ह अपन भरपूर जवानी म राहय। हजारों के भीड़ म आनी-बानी के नारा लगत राहय हमारा नेता कैसा हो-भोलू भईया जैसा हो जिंदाबाद-जिंदाबाद भोलू भईया जिंदाबाद। मुख्यमंत्री कैसा हो-भोलू भईया जैसा हो। भईया जी के गर फुल-माला म लदना बईला बरोबर लदाय राहय। मुंह-कान ह मार रंग गुलाल म बोथाय राहय। जम्मो चमचा-झारा मन बैंड बाजा संग नाचत-कुदत मेंछरावत राहय। भईया जी के छाती ह खुसी के मारे फुलत राहय। अपन दुनों हांत ल जोर-जोरे सड़क के दुनों बाजू ठाढ़े देखईया मन ल जोहार-भेंट करत राहय। मोला ये जुलुस ल देख के भोले बबा के बरात के सुरता आवत राहय। गोंसाई जी महराज ह रमायेन म जउन चौपाई लिखे हें तेकर सुरता आगे-जस दुलहुं तस बनी बराता- कौतुक विविध होही मगजाता। 

भईया जी चुनई रूपी जुद्ध जीते राहय। चुनई के महाजुद्ध म एक ले सेख जोधा मन अपन पराक्रम ल देखाथें। जुद्ध जीते बर का नी का उदिम करथें। चुनई जुद्ध के ब्रम्हास्त्र दारू अउ बोकरा के परयोग जम्मो जोधा मन करथें। कपड़ा-ओनहा अउ पइसा बांटथें। तभो ले ये गरेंटी नई हे कि दारू-बोकरा-कपड़ा-ओनहा-रूपिया बांटे हे तेन जोद्धा ल ही उन ओंट ल देही लाखो रूपिया ल पानी कस बोहवाथें तब अइसन सुख ल पाथें। बिचारा मन रात-दिन गांव गांव गली-गली घर-धर मांगे बर जाथें अउ आनी-बानी के वायदा करथें। भले जीते के बाद कोनों ल चिनहे चाहे झन चिनहे ककरो काम ल करें चाहे झन करें। 

मैं अपन संगवारी मन संग सड़क के बाजू म पान ठेला म पान खावत ठाढ़े राहंव पान ठेला के आगू म पान खा के घेरी-बेरी पुरकई ह तो हमर जुन्ना परंपरा आय। ओतके बेरा जुलुस के आगू आगू भईया जी आवत राहय, हमन ल देख के दुनों हांत ल जोरे परनाम करत अईस अउ मोर पांव परीस, मैं लकर-धकर ओकर दुनों खांद ल धर के उठायेंव। भैया जी मोला काबा भर पोटार लीस। महूं पोटार के ओकर पीठ ल थपथपायेंव, अउ जीत के बधई देंव। 
कोनो नेता जब जीत के आथे त ओटर मन उहीच ल ओंट देय हन किथें। हारे नेता के तीर म तक नई जावंय। हारे नेता बिचारा का करय, घर भीतरी बइठके अपन माथ पटकत रिथे। अपन खासमखास करता-धरता मन ल घलो ओ ह बिरोधी समझथे। कतको बिसवास पातर राहय, ओकार नजर म ओ मन घात करईया नजर आथे।  ओकर सुग्घर सपना चूर-चूर हो जथे। 

ये तो संसार के दस्तुर आय कि हंसइया संग दुनिया हांसथे, रोवईया संग कोनो नई रोवय। एक ठन गीत हावय-‘‘सुख के सब साथी-दुख में न कोय।‘‘ आज काल तो जेती बम ओती हम वाला हाना ल चरितार्थ करथें। भईया जी मोर अहसान मानत आगू बढ़गे। में संगवारी मनल केहेंव-अरें! ये कइसे जीतगे बुजा ह जी ?  सब झन तो येकर जमानत जप्त हो जही काहंय। मोर गोठ ल सुनके एक झन संगवारी किथे-अरे यार तहूं लेड़गा सहीक गोठियाथस आज काल चुनाव जीतना बड़ा भारी बात आय ?  जउन पईसा फेंकही-दारू-मंद बांटही, बोकरा भात खवाही तउन भला कइसे नई जीतही ? आज काल तो ओटर मन चेपटी म बेचागें हें। चुनाव जीते के ईस्टाईल होना चाही। समझें? जउन अपन आप ल सेर समझथे तउन ल सवा सेर मिली जथे। राजनीति कखरो बपउती नो हे। पासा कब पलट जही कोई कहे नई जा सकय, अब जमाना बदलगे, लोगन बदलाहट चाहथें। लोगन सबो ल तो अजमा डारिन। 

आज काल ओटर मन घलो ठट्ठा-मुट्ठा के आस्वासन देय बर सीख गेंय हें। तेकर सेती तो जेकर करा खाय बर पाथें तउने ल भोंदु बना देथंे। सबो पाल्टी ले खा पी लेथें अउ जउन ल ओंट देना हे तउने ल देथें। काबर कि कोनों जीतयं, खुरसी अउ पद पईन तहं अपन तिजोरी भरे म मंगन हो जथें। तोला चिनहय तक नहीं, कहीं काम ल बिगन लेय करय नहीं, अइसन तो इंखर चाल हे, का करबे। ओटर पांच बछर ले मुड़ धर के रोथे। पहिली इंखर तीर का रीहीस ? जा न आज देखबे करोड़ों के मालिक बने बइठें हें। सबो के एके हाल हे कोन ल बने कहिबे अउ कोन ल खराब। देस म हावा अइसने चलत हे। तेखरे सेती तो बिद्वान मन केहें हें-‘‘प्रजातंत्र मुर्खो का तंत्र‘‘ कहिके। अमीरी गरीबी-बेरोजगारी, भुखमरी, भस्टाचारी, अनियाव जइसन हजारों समसिया ह कभू नई सुलझे। देस म राज म कहीं समसियाच नई रही त नेता मनके दुकानदारी कइसे चलही ?

आतंकवादी मन आन देस ले आ के हमर देस म आतंक मचा दिन, कोनो ला कानों-कान गम नई मिलीस। आज काल बिगियानिक मन एक ले सेख मसीन बना डारे हें, सूचना तंत्र ह अतका बिकास कर डारे हे तेन हमर आंखी म दिखबें करत हे। फेर आतक बड़ भयानक घटना ह कइसे होगे? गुने के बात हे। रास-दाब म मेंडरी मार के बइठे हें इनला देस के संसों न जनता के भलाई के, अपन बनउकी ल तो केउ पीढ़ी बर बना डारे हें। 
मैं संगवारी ल केहेंव-
 ‘‘कोउ नृप होय हमें का हानि‘‘
अरे चलव ग अपन-अपन काम-बुता म। बारात म दुलही दुलहा ल अउ दुलहा ल दुलही मिलही फोकट म मटमटावत हे तउन ल का मिलही ?  हमन जम्मो झन खलखलावत हांसत अपन-अपन रस्ता रेंगेन।

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लेखक का पूरा परिचय-

नाम- विट्ठल राम साहू
पिता का नाम- श्री डेरहा राम साहू
माता का नाम- श्रीमती तिजिया बाई साहू
शिक्षा- एम.ए. ( समाजशास्‍त्र व हिन्‍दी )
संतति- सेवानिवृत्‍त प्रधानपाठक महासमुंद छत्‍तीसगढ़
प्रकाशित कृतियां- 1. देवकी कहानी संग्रह, 2. लीम चघे करेला, 3. अपन अपन गणतंत्र
पता- टिकरा पारा रायपुर, छत्‍तीसगढ़
वेब प्रकाशक- अंजोर छत्‍तीसगढ़ी www.anjor.online

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