छत्‍तीगसगढ़ी व्‍यंग्‍य: मेरिट म नई अइस तेखर पीरा

मेरिट म नई अइस तेखर पीरा

सुखीराम ह घातेच दुखी राहाय। में ह मया म दुखी होय के कारण पुछेंव, आज-काल के लइका मन ल का हो गेय हे तेन ल भगवाने जानय। सरी ऊंखर फरमईस ल पूरा करबे तभो ले पड़हाई-लिखई ल मन लगा के करबे नई करंय। ओ रात-दिन टीबी, मोबाइल अऊ कमपूटर म जीव ल देय रहिथें। न कपड़ा-ओनहा के संसो। उपराहा म उनला सौ-पचास जेब खरचा देवव। तभो ले ओमन मन लगा के पड़हई-लिखई नई करंय। ले-दे के पास होथें। जब मैं कोनो फलाना घर के लइका ह मेरिट म आ के डाकटर-इंजिनियर, बनगे, कोनो बने नवकरी पागे कहिके सुनथव त मोला मोर लइका मन ऊपर खिसियानी लागथे। सोंचथंव, अइसने मोरो घर के लोग-लईका मन बने पढ़-लिख के साहेब-सुभा बनतीन कहिके। बने-बने आदमी मन करा मुड़ नवांय ल परजथे।

मैं जौन-जौन लइका मन ल पड़ाय हौंव, आज ओ मन बने-बने नवकरी म हावय। पड़हत ले ओ मन मेरिट म अइन अऊ अपने ददा-दाई के नाव ल ऊंच करीन। जौंन गुरूजी ओ मन ल पड़हाथें, तिंखर नाव नई होवय, अऊ लइका नपास हो जथे त ऊखर दाई-ददा मन गुरूजी मन के नमूसी गोठियाथें। सबो दाई-ददा मन ल अपन लइका के भारी संसो रहिथे। एक झन सरमा महराज हे, जौंन ह अपन लइका ल मेरिट म लाने बर गोड़-मुड़ ल एक करके, मेरिट म लानिच के छोंडिस। गजब दऊंड़-धूप करीस। अऊ एक झन में हौंव निकम्मा, ओ विभाग म नवकर हौंव तभो अपन लोग-लइका मन ल मेरिट म नई लानन सकत हौंव। मेरिट ते मेरिट पास ल घलौ नई करवा सकेंव। एक झन ह तो अपंढ़ गोसईन ल घलौ मेरिट म लनवा डारीस। लोगन के कहेना हे-बिगन चढ़ावा के आज-काल काहीं नई होवय। पइसा ह तो पुरूसारथ आय। भई मैं तो मान गेंव ओला अऊ ओखर पुरूसारथ ल। 

मोर लइका मन तो बट्टा लगा दिन बान के नाव म। आज ले जतका झन मन मोर करा समसिया ले के अइन, ओ मन ल नराज नई होय ल परीस। मैं सहयोग के भावना म, भारी ले भारी जुम्मेदारी ले के ऊंखर काम ल करवायेंव। अऊ जब मोर लइका मन के पारी अइस त मोरे विभाग के मन मोला ठेंगवा देखा दिन। 

एक झन ल हाथ जोर के केहे रेहेंव-अरें, ओ छोटू ल थोकिंन देख लेबे जी, पेपर ह बिगड़ गेय हे काहात रीहीस। ओखर भरोसा म रही गेंव, अऊ कांही नई करेंव, जब देखते तब इही काहाय ले न हो जही, तोला संसो करे के जरूरत नई हे। अऊ जब परीकछा-फल निकरीस त ओखर नावे नई निकरीस- न फेल म न पास म। का करंव  मन ल मार के रहिगेंव। लइका ह खवई-पीयई ल तियाग दिस। मैं ओला समझा-बुझा के खवायेंव। 

आज काल लइका मन ल जादा हरके-बरजे के नो हे। कांहीं गलत कदम उठा डारथे। मैं ओला समझायेंव-देख बेटा ये साल नपास हो गेस त काही नई होवय, एक साल अऊ बने पढ़-लिख तें जरूर मेरिट म आबे कहिके। फेर जौंन नपास होय रहिथे उही जानही पीरा ल। कहिथे न ‘ठगड़ी का जानय बियाय के पीरा‘ अपन संगी-जवरिहा मन सो कईसे मिलय ? ओ मन चिढ़ाहीं-सारे ह गजब डिंग मारय, मेरिट म आहूं कहिके, पास घलौ नई होईस। 

कहिथे-होन-हार बिरवान के होत चिकने पात, जौंन हुसियार लइका रथे तेखर अलग पहिचान रथे। ऊंखर लच्छन अलग रथे।  गोठ-बात, अक्कल-बुध सब अऊ लईका मन ले अलगे रहिथे। मैं सुखीराम ल केहंेव-संगवारी, मैं तोर पीरा ल समझत हौंव, फेर का करंव, ‘सारी जग दुखियारी‘ हमन तो बहुत पन सुखी हन। 

आज काल पड़हइया मन के दाई-ददा मन बड़ परसान रहिथे। लइका मन ल मेरिट मा लाने बर का नई करें बर तियार रहिथे ? अऊ जब ऊंखर मन मुताबिक नई होवय त कइसे पगलियाय बरोबर हो जथेे। आज-काल दाई-ददा मन मे होड़ लगे हे ऊंखर लइका मन मेरिट म आवय कहिके। ताकि कोनों कालेज म बने चंदा दे के भरती करे जा सकय। दुखीराम कहिथे-अरे भइया पइसा वाला मन के का हे गा... ओ मन कहुंचो मेर बने जादा चंदा दे के भरती, करवा लेंथे, मेरिट अऊ परसेंटेज के बात नई राहाय। का तोर हमर लइका इंजीनियर-डॉक्टर बन सकही ? जादा होईस त शिकछा कर्मी बन जही, उहू ह आज-काल जौंन चलत हे सिस्टाचार तेखर हिसाब ले। बिगन सिस्टाचार के कांही काम नई होय सकय। आज-काल तो पंचइतीराज चलत हे, भरती बर, बने ठऊर बर बदली करवाय बर सब बर पान-परसादी जरूरी हे। 

सुखीराम ह तमतमाय कहिस- आज-काल तो सिरतोन के योगियता के कांही पुछंतरे नई हे गा...। पुछंतर रहितीस त अतका भसटाचार कांहा होतिस ? आज पइसा के बली म सब आगू बढ़त हें। कतको काबिल लइका मन गली-कली किंदरत, हें अऊ नकाबिल मन सुख भोगत हें।

दाई-ददा मन ये बात ल समझैं लइका के वास्तविक योग्यता ही ओ मन ल जीनगी जीये बर सीखा सकत हे।
कोनों देखावा झन करंय। लइका मन तो देस के भविष्य होथें। उन ला ऊंखरे गुन के पाछू-आगू बढ़ाय बर हमेसा कोसिस करय। लइका मन ल दूसर के देखा-सीखी फोकट के फोकट परदसनी के जीनिस झन बनावंय।

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लेखक का पूरा परिचय-

नाम- विट्ठल राम साहू
पिता का नाम- श्री डेरहा राम साहू
माता का नाम- श्रीमती तिजिया बाई साहू
शिक्षा- एम.ए. ( समाजशास्‍त्र व हिन्‍दी )
संतति- सेवानिवृत्‍त प्रधानपाठक महासमुंद छत्‍तीसगढ़
प्रकाशित कृतियां- 1. देवकी कहानी संग्रह, 2. लीम चघे करेला, 3. अपन अपन गणतंत्र
पता- टिकरा पारा रायपुर, छत्‍तीसगढ़
वेब प्रकाशक- अंजोर छत्‍तीसगढ़ी www.anjor.online 

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