छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंग्‍य: चोर के नाव मोर पाती

चोर के नाव मोर पाती

आदरनीय चोर भाई, सादर परनाम। आसा हे कि तें अपन परवार समेंत हली-भली होबे। मोला बिसवास हे कितोर ऐसो के देवारी हा चकाचक रिहिस होही, काबर कि तें मोर सायकल में अरोय झोला जौंन मं पांच हजार रूपिया रिहिस। तौन ल तें मीलखी मारत पार कर देय।  तोर घर तेल का असली घीव के दीया बरीस होगी। अउ ये डहर मोर आत्मा बरत रिहिस। तोर लईका मन मनमाने फटाका फोरिन होही, अउ मोर लईका मन मरनी मनावत रिहिन। 

बिधाता के बिधान घलौ बड़ बिचितर हे। कहूं खुसी मनाथे त कहूं रोथे। कहूं हा पेट के फुटत ले खाथें त कहूं मन भुखन मरत रहिथे। आजकाल ये संसार म तुंहरे सहींक चोर लूटेरा, गुंडा बदमास मन के चांदी हे। सिधवा मइनखे मन पछिना ओगरा-ओगरा के मर जथें, फेर पेट भर अन अउ तन भर ओनहा नई पहिर सकयं। तुमन आये दिन हजारों लाखों म हांत मारत रिथो। तेखर सेती तुंहर बड़े-बड़े माहाल देउर, फिरीज, टीबी, रेडवा, फोन, मोबाईल, मोटर-गाड़ी बैंक बेलेंस रथे। तेखर सेती तुंहर परवार बड़ मजा म रिथे। 

तुंहर मन करा चोराए के एक ले सेख तरीका रिथे। लोगन अपन धन ल बचाये बर कतको हुसियारी करंय, फेर तुंहर आगू म ऊंखर हुसियारी ह पानी भरथे। जब तुंहर मन के कोनो चोरी करे के तरीका ह जादा लोकप्रिय हो जथे त लोगन के कान ठाढ़ हो जथे। त तुमन अपन चोरी करे के तरीका ल बदल देथव। सायकल म सुतरी फंसाना, इसकूटर अउ फटफटी के डिग्गी ले निकार लेना तो साधारन बात हो गे हे।  तुमन महान हौव, तुंहर ले महान तुंहर मनोबिग्यान हे। फरक नई खावय तुंहर अंदाज करई ह। तुंहर फांस म कइसे फंस जथें बड़ अचरित लागथे। पुलुस ले जादा तुंहर बिरादरी ह चलाक हो गे हे। 

तुमन बड़ हिम्मत वाला होथव। तुंहर हिम्मत के दाद देये ल लागही। दिन दहाड़े बीच बजार होय या आम सड़क होय, लोगन के रूपिया-पइसा, सोन-चांदी के गहना मोटर, साईकिल, फटफटी कहीं जीनिस होय चोरा लेना हांसी खेल हे तुंहर मनबर। 

तुंहर बिरादरी वाला मन के पहुंच कहां नई हे ?  थाना, कछेरी, राजधानी ले लेके जिला-गांव तक हे। तुमन आनी-बानी के भेस म जिंहा नहीं तिहां रहिथव। तुंहर मन मेंर चीता कस चपलता अउ सेर कस फुरती होते। तुलिस ह तो छत्तीसगढ़िया ले जादा सीधवा हे। ओलाहर बखत धोखा हो जथे। तेखरे पाए के तुमन ल छोड़ के साव मन ल पकड़ लेथें।  तुमन जब चोरी कर के उत्ती कोती भागथव त ओहा बुडती डाहार खोजथे। 

हमर देस के पुलुस बिचारी ह सत्यमेव जयते वाला आदरस वाकिय म लदकाथे निहत्था बिगन काहीं अपराध होय कहींच नई कर सकय। भला बिगन आडर के ओ हा कहीं कइसे कर सकत हे ? तंुहर मन सहींक हमर पुलुस सुतंतर नई हे। पुलुस सुतंतर रहितीस त तुमन अतक अतलंग करे सकतेव ? सिरीमान चोर भाई, में तुंहर बिरता के गाथा ल गावत कभू नई थकंव। मोर जौन भी हितैसी हें, ऊंखर मेरन तुंहरे मन के बड़ई गोठियाथंव। आजकल तुंहर मन के परमोसन हो गे हे। पहिली तुमन चोरेच सहिक दिखव अऊ ओईसने बुता ल घलौ करव। पहिली भात-बासी, नानमुन चीज बस रूपिया पईसा, सेंध मारी, भाड़ी कूदई, ठग फुसारी करत रेहेव। 

आजकाल तो तुमन साहाब सहिंक सूट-बूट म रहिथव अउ मोटर साइकल, सूमो, मारूतिकार म जाथव-आथव अउ केऊ लाख ऊपर हाथ साफ करथव। मोर हितैसी मन ला मोर दुख ल बताथंव त ओ मन मोला खिसियाथें। कहिथें तैं बैकुफ आदमी आस। तैं भला ओतेक अकन रूपिया ल धर के भला काबर गये होबे ? बड़ अचरित बात ये, भला कहूं बिगन पईसा कौड़ी धरे बजार हाट जाथे ? कहूं-कहूं मन मोर गरीबी उपर मगरमच्छ कस आंसू बोहाथे अऊ मोर बर सहानभूति उड़ाथें। फेर जुच्छा सहानभूति ले का होही। मैं जानथंव ‘न नौ मन तेल होही न राधा नाचही।‘
 
चोर भाई में तो एक कलमकार आंव। सबो कलमकार मन अपने भुगते बात ल अपन कलम म उतार के समाज के आगू म पोरसथें, ओसने महूं पोरस परेंव। में मेहनत-मजूरी उपर बिसवास करथंव। एक झन बिद्वान ह केहे हें-‘कर्म ही पूजा है।‘ पछिना बोहवा के कमाये धन ल असल माने जाथे, फेर तुमन दूसर के कमाये धन के चोरी लूटे ल अपन खरी कमई समझथव, ये गलत आय। घूसखोरी, बईमानी ले कमाये धन बर तो लोगन ल अतक पीरा होथे, त पछिना ओगारे धन बर भला कईसे पीरा नई होही। ओ पीरा ल भुग्तभोगीच बता सकत हें। मोला मरे के लईक पीरा होय रीहिस। में तो कवि हिरदे अंव। तोला सरापे ल छोड़ के भगवान मेर तोला सद्बुद्धि देय बर पराथना करथंव। भगवान ह तोर रच्छा करय। 

माई लोगन मन ल सबले जादा अखरथे। मोर गोसईन ह सुतत जागत तोला बखानथे, तोर अमंगल कामना करथे। कहिथे-तोर खटिया टूट जतिस, तोला कोढ़ हो जतिस कहिके अपन दूनो हांत के सबो अंगरी ल पटपट ले फोरथे। अऊ का-का कलपथे। जइसन ते मोर लोग लईका के हक ल मारे तइसे तोरो लईका मन दाना-दाना बर तरसे। 
का करंव में मजबूर हौंव, ओला का कहिके समझावंव। में तो गीता के ये दे उपदेस ल आदर करथंव -
 ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।‘
तेखरे सेती हे चोर भाई तोर ले हांत जोर के बिनती हे कि तहूं मन ये दुसकरम ल तियाग के ईमानदारी के खरी कमई करव। भगवान तो खुदे देवइया ये। 
भगवान तुमन ल सद्बुद्धि देवय। 
तोर सुभ चेतक

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लेखक का पूरा परिचय-

नाम- विट्ठल राम साहू
पिता का नाम- श्री डेरहा राम साहू
माता का नाम- श्रीमती तिजिया बाई साहू
शिक्षा- एम.ए. ( समाजशास्‍त्र व हिन्‍दी )
संतति- सेवानिवृत्‍त प्रधानपाठक महासमुंद छत्‍तीसगढ़
प्रकाशित कृतियां- 1. देवकी कहानी संग्रह, 2. लीम चघे करेला, 3. अपन अपन गणतंत्र
पता- टिकरा पारा रायपुर, छत्‍तीसगढ़
वेब प्रकाशक- अंजोर छत्‍तीसगढ़ी www.anjor.online 

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