छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंग्‍य: गनपति महराज

गनपति महराज

सरकारी नवकर मन के दुये ठन तो बॉस होथें। एक आफिस अऊ एक घर म। दुनों के हुकुम मानना जरूरी होथे। संझा बेरा जइसे घर के डेरौठी मं गोड़ मढ़ायेंव, घर के बॉस के हुकुम होईस-बजार जा फरहार के समान अऊ एक ठन सस्ता वाला गनपति लान कहिके। बजार बड़ गरम राहाय ओ दिन गनेस चतुरथी राहाय। वइसे आज-काल माहंगाई के सेती बजार ह केऊ बछर ले तापमापी यंत्र ल ब्रेक कर देय हे। ठऊर-ठऊर म गनपति मन बेचाय बर बइठे राहाय। आज तक तो मैं ईमान आदमी अऊ नेता ल ही बेचावत देखे सुने रेहेंव। फेर आज तो संउहत भगवान बिधनहरन, अमंगलहारी-मोदकप्रिय लंबोदर महराज अपन भगत मन के हांत बेचाय बर तियार बइठे राहाय। एकदंत अपन देखाय के दांत ल (अदमी के घलौ होथे) देखावत अपन दया के दिरीसटी, लेवइया मन उपरह डारत राहाय। गनपति अपन आने-आने भेस म दस देवत राहाय। कोनों मेंरन ए.के.सैतालिस बंदुक धरे देस के आतंकवादी मन ल टीपे बर तियार राहाय। कहूं मेरन गांधी टोपी पहिरे जाकिट के पाकीट म एक हांत ल डारे, कहूं मेरन मोती-चूर के लाडू झड़कत, कोनों मेरन मुसुवा के बजाय डायनासोर उपर चघे, कहूं मेरन नॉगर जोतत राहाय। 
एक जघा तो गनपति महराज ह अपन दुनों हांत मं कटोरा धरे मतदाता मन मेंरन बोट मांगत राहाय। मैं एक ठन नानहे अऊ ससती वाला गनपति बिसाके घरवाली के हवाला करेंव। जब ले हमर देस मं‘हवाला कांड‘ होय हे तबले ये हवाला सबद ल लोगन जादा पसंद करे लगिन। हवाला-कांड होय के हीरो सिरि हर्षद मेंहता ल कोन नई जानय ? ओला तो सरी दुनियॉ जन डारीन। भला उहीच्च ल काबर कहॉव, इंहा तो जेन डाहार पखरा फेंकबे, अऊ जऊन ल परही, उही भस्टाचार के पुजेरी निकरथे। बइसे एकर उपर परसिद्ध ग्रंथ लिखे जा सकथे। माई लोगन मन ल गनपति बड़ सुग्घर लागथे। भला बिघन बिनासक ह कोन ल पियारा, नई होवय ? बिघन बाधा ह तो ऊंखर संगवारी ये। 
बस्ती म ठौर-ठौर म गनपति-‘साहजी गनपति‘ बिराजे हें, फेर मोर घर के गनपति ‘पोगरी गनपति‘ आय। वइसे देवी-देंवता तो सारवजनिक होबे करथें, पोगरी नई होवय। मोर घर के गनपति पोगरी ऐखर सेती आय, काबर कि मोर पछिना ओगारे कमई के लाडू ल खाथे। अऊ सारवजनिक गनपति ह लोगन ले चंदा उसुले (जबरदस्ती या अपन मन के)पईस के परसाद खाथे। एक जघा म गनपति महराज ह राजनीति पाल्टी वाला राहाय। ओह अपन हांत म बोट के ढोमना ल तो धरेच्च राहाय। अऊ दुसर हांत म पाल्टी के झंडा। अऊ एक हांत म चुनाव के छाप ल धरे राहाय। अपन भगत मन ल भारतीय नेता मन जइसे अपन वोटर मन ल कहिथे तईसे काहात राहाय- ‘‘मोर मयारू भगत हो- तुमन ल गाड़ा-गाड़ा असीस, हमरे पाल्टी ह तुमन ल असल सरकार दे सकत हे। मंहगई, बेरोजगारी, गरीबी जम्मों ल मेट सकत हे। महिला आरकछन अऊ समान अधिकार ल देवा सकत हे। 
नारी परतारना-अतियाचार अऊ जनाकारी करइया मन उपर रोक लगा सकत हे। फेर एक बात हे, तुमन अपन कीमती बोट ल हमरे पाल्टी वाला मन ल देहू, तब। तुहंर एकक बोट के कतका कीम्मत हे तेन ल हमर पाल्टी वाला मन अच्छा तरहा ले जानथे। ओ ह सरकार ल गिरा सकत हे। गनपति महराज अपन पाल्टी के एजेंडा म भस्टाचार ल खत्म करे अऊ छत्तीसगढ़ी भासा ल राजभासा बनाये के जरूरी मुद्दा के गोठे नई करीस अइसे लागथे कि भस्टाचार के बिगन ये राज ह चलबे नई करय। भस्टाचार ह अब सिस्टाचार हो गेय हे।  छत्तीसगढ़ी भासा ह राजभासा के दरजा ले-दे के पागे फेर ओकर मान-सनमान नइ हे छत्तीसगढ़िया मन कतको अपन मुड़ पटकें। नारी मन संग जऊन अतियाचार होवत हे ओ ह होते रही। 
गनपति आगू काहात हे‘‘ मैं खुदे जब ये पाल्टी म आ गेय हौंव त तुमन ल संसों करे के का परे हे ? तुमन तो जानतेच हावव कि मैं कतको पापी मन ल तारे हावंव कतको ल मारे हौंव, सब के दुख हरेंव, तेखरे सेती तुमन मोर इसतुती करथव, अंधरा ल आंखी देथस-कोढ़ी ल काया। बॉझन ल पुत देथस-निरधन ल माया। त फेर अऊ काला गुनत हौव, तुमन निसफिकीर हो के हमरे पाल्टी ल बोट देहू। एवअस्तु-कहिके भगत मन ल गनपति ह असीस देवत राहाय। भगत मन भाव बिभोर हो के गनपति के पाल्टी ल येसो के बोटिंग तिहार म उहीमन ल बोट ल देबोन कहिके कीरीया खावत अपन-अपन घर कोती रेंगथें।

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लेखक का पूरा परिचय-

नाम- विट्ठल राम साहू
पिता का नाम- श्री डेरहा राम साहू
माता का नाम- श्रीमती तिजिया बाई साहू
शिक्षा- एम.ए. ( समाजशास्‍त्र व हिन्‍दी )
संतति- सेवानिवृत्‍त प्रधानपाठक महासमुंद छत्‍तीसगढ़
प्रकाशित कृतियां- 1. देवकी कहानी संग्रह, 2. लीम चघे करेला, 3. अपन अपन गणतंत्र
पता- टिकरा पारा रायपुर, छत्‍तीसगढ़
वेब प्रकाशक- अंजोर छत्‍तीसगढ़ी www.anjor.online 

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