छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंग्‍य: हमर मांग पूरा करव

हमर मांग पूरा करव

मैं साग-भाजी बर बजार जावत रेहेंव रस्ता म पुलुस थाना परथे। मैं जान-बूझके थाना के आगू ले नई जावंव। मोला पुलुस अऊ पलुस थाना दूनों ले डर लागथे। ओ दिन कइसे थाना के आगू ले जा परेंव। देखेंव थाना के आगू म अड़बड़ भीड़ लगे राहाय अऊ ओमन जोर-जोर से चिचियावत राहांय, ‘‘हमारी मांगें पूरी करो, हमारी मांगें पूरी करो‘‘ कहिके। 
में सोंचत रेंहेव कोनहो सरकारी करमचारी मन होहीं कहिके। काबर कि ओ मन तो जब देखबे तब हड़ताले करत रहिथें। कभू तनखा बड़हा त कभू मांहगई त कभू परमोसन करो त कभू अऊ कांही-कांही बर। हमारी मांगें पूरी करो कहिके सड़क म आ जथे। अऊ सरकारो घलो बिगन हल्ला बोले उंखर मांग ल पुरा करबे नई करे। टकराहा हो गेय हें। 
एक झन ल पूछेंव त बतइस, ए मन कोनों सरकारी नवकर नोहे न कोनों मजदूर ए। ये मन  तो चोर आंय। एहू मन अपन संघ बना डारे हें, तेखरे सेती तो थाना के आगू म अपन मांग ल पूरा करवाय बर, सकलाए हें। मोला सुन के अंचभों लागिस। फेर गुनेंव जब जेहू-तेहू मन अपन संध बना सकत हें त ये मन काबर नई बना सकयं। एहू मन तो अजाद भारत के नागरिक आंय। इंखरो अधिकार हे। ये नैतिक अधिकार आय। सब भारत के नागरिक अपन-अपन संघ बना के अधिकार के हनन बर सरकार मेंरन गोहार पार सकत हें। मैं पूछेंव, कस भईया, त इंखर काय-काय मांग हे गा ? त बतईस, ‘‘अरे जान दे रे भईया बड़ अलकरहा  मांग हें।‘‘ मैं पूछेंव, का अलकरहा मांग हे बता न।  त किथे-  इंखर प्रतिनिधि मंडल ह थानादार मेर जाके लिखित प्रतिवेदन सौंपीन। ओमा लिखे हे, अभी तक येमन एक रात म छै ठन चोरी करत रिहिन। इंखर कहेना हे कि आज के मांहगई ल देख के छै ठन चोरी करई ह नई पोसावत हे। एक रात म बारा चोरी करबोन त पोसाही कहिथेें। काबर कि आधा माल ह तो उही डाहार चल देथे। बांच जथे आधा ह। तेखर सेती बंटवारा म ओमन ल कमती-कमती मिलथे। बने-बने चीज बस सोन-चांदी ह ऊंखरे डहार चल देथे। दुसर मांग ये हे कि रात किन गस्ती म सीसरी ल जोर-जोर से झन बजावंय। अइसन बुताबर कोनों सीनियर के डिपटी लगना चाही। नांवा-नांवा रंगरूट मन डोला देथें। सुते मइनखे मन ल जगा देथें। नावां मन पुलुस के नवकरी के मजा अऊ सजा ल का जानहीं बिचारा मन। अरे, दू पइसा कमाए बर चोरहा, चंडाल, जुआडी, सराबी, सट्टाबाज मन के संगति करहीं। पॉकिटमार मन ल मिलाके राखहीं तभे तो अपन परवार ल आजकाल के हिसाब म बने-बने सुख दे सकहीं। 
तिसर मांग ए हे कि रपोट ला दू लंबर के किताब म लिखे जाय। जनता ल दूसर रिपोट अउ कचेरी म दूसर रिपोट पेस करे जाय ताकि हमन ल सजा झन होवय। होवय भी तो कमती दिन के होवय। पुलुस तहकीकात म तब्दिली होना चाही। जेमा कि रपोट लिखइया मन दूसर बेर रपोट झन लिखवा सकय।  जानथे तेन मन तो छोटे-छोटे चोरी के रपोट ल लिखवावे नई करंय बिचारा मन। काबर कि पहिली तो रिपोट लिखउनी देबर परथे। फेर बीस बेर ले थाना कछेरी के चक्कर मारबे। अतक के घिसोटा ल कोन खावय। कोन उंखर धमकी-चमकी ल सुनय। तेखर सेती थोक-बहुत गीस ते गीस कहिके नई लिखवांय। दू नंबर के कमई वाला मन तो रपोट ल करबे नई करंय। तभो उनला बांटा तो देयेच ल परथे। रपोट करबे करथें त कमती-कमती लिखवाथें। काबर कि कहूं पूछ बइठिन कि अतका सोन-चांदी रूपिया-पईसा कहां ले अइस ? त का बताहीं। 
मैं सुनके बक्क ख गेंव, अऊ केहंेव, ते बने जानथस जी, तहूं इंखरे पाल्टी वाला अस का? हहो मैं तो इंखर पाल्टी के अध्यछ आवजी। कहिथे, अरे मैं तो इंखर नस-नस ल जानथंव ग, तनखा ले जादा तो पीटरोले हो जथे त डउकी-लईका ल कामा पोसहीं। ले न तुहु मन तो नवकरिहा, आव, एक ठन टुटहा सइकिल ह तो घलो नइहे। मोला हबले सुरता आगे, मोर गोसईन हा मोला साग-भाजी बर बजार भेजे हे। अउ मैं ह कहां के लफड़ाबाजी म भुलागेंव। लकर-लकर बजार डाहार रेंगेव। तभोले जावत-जावत सोचत रेहेंव का इंखर मांग ह पूरा हो ही ?

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लेखक का पूरा परिचय-

नाम- विट्ठल राम साहू
पिता का नाम- श्री डेरहा राम साहू
माता का नाम- श्रीमती तिजिया बाई साहू
शिक्षा- एम.ए. ( समाजशास्‍त्र व हिन्‍दी )
संतति- सेवानिवृत्‍त प्रधानपाठक महासमुंद छत्‍तीसगढ़
प्रकाशित कृतियां- 1. देवकी कहानी संग्रह, 2. लीम चघे करेला, 3. अपन अपन गणतंत्र
पता- टिकरा पारा रायपुर, छत्‍तीसगढ़
वेब प्रकाशक- अंजोर छत्‍तीसगढ़ी www.anjor.online 

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