छत्‍तीसगढी व्‍यंग्‍य: मइके जाय के तियारी

मइके जाय के तियारी

ओ दिन जब मोर गोसाइन हा बतइस-‘मैं मइके जाहूं खभर आए हे‘ कहिके अउ तियारी करे लगिस। का बतावंव संगी मोला अतका खुसी लागिस जइसे कोनहो ला एकलाख के लाटरी फंसे ले घलो ओतका खुसी नइ होही। खुसी के बात ये बरसों बितगे जबले बिहाव होके आए हे तबले ओहा एको बेर मइके नइगे हे। पंदरा बिस बछर ले मैं ओला कइसे झेलत आवत हौं मही जानहूं। बस इही जान लेवव के रूस में का इसटालिन के तानासाही चलही तइसे ओखर चलथे। दस बजे घर ले निकरथंव इसकुल जाए बर अउ चार-पांच बजे तक ले घर अभर जांवव। कहूं थोरको अबेर होइस त तुरते सवाल जुआब करथे। अतेक बेरा ले तोर इसकुल हा लगेच रिहिस ?  सब गुरूजी मन कइसे झपकीन अपन-अपन घर आ जथें ? तोला अपन लइका-लोग के संसो ही ता। कोनो मरे चाह सरे तोला तो संगवारी मन संग गुलछर्रा उड़ाए ले फुरसुत नई रहाय। कभू कोनहो डहार किदारे बर लेगही कहिथंव ता कहिथस-‘का किंदरई ये आज-काल समें बहुत खराब हें गुंडागर्दी, छेड़-छाड़ अड़बड़ होवत हे अपन घरे मां कले चुप कपाट-बेड़ी ला ओधा के खुसरे रहा तौने बने ये।

कतको झन संगवारी मन किथे-‘तैहा कभू चाहा पानी पिए बर अपन घर मा नइ बलावस जी अब्ब्ड़ कंजूस हस ? इही बात ला गोसाइन ला बताथव ता किथे- मैं पुछथंव ओ मन हमन ला के खेप ले बलाए हें ? तेन मा हमन चाहा बर बलाबोन ? कोनमार के हमर बेटा के बिहांव होवत हे तेन मां ? धुन छट्ठी मनावत हन ? कहूं के धन्ना सेठ अन ? अतका गोठ ला सुनके मोर मुंह मा लोहाठी तारा लग जथे। मोर जिनगी हा परपट भांठा होगे हे संगी। चल सारे ला चार-आठ दिन बने हर-हिनछा रहूं बने सुतहूं। आराम से आहूं-जाहूं कोन हे कहइया-टोकइया। संगवारी मन के सिकायेत हा घलौ पुरा हो जही। दसन-बिसन बछर के कसर ला निकारे के मऊका आए हें। 

दुसर दिन बड़े फजर ले ओकर फरमइस सुरू होगे। अउ दुसर बेरा होतिस ते इहीच बात बर बनेच झगरा हो जतेन फेर आज मैं चिटोपोट नइ करेंव। अलवा-जलवा साया के कपड़ा नाने बर केहे रिहिस मैं हा बनेच ऊंचहा असन मांहगी वाला ल ले लानेंव खुस होही कहिके। कहां पाबे संगी उलटा होगे अतका मांहगी के काबर लानेस कहिके जोर से खिसियागे। ओइसने गांव लेगे बर मिठई ला एक किलो ससता वाला लानबे केहे रिहिस मैंहा दुदी किलो ऊंचहा वाला ला लान लेंव। कहिथे-अतका मांहगी अउ दुदी किलो नपा के ले लानेस। तोर हांत मा कहूं पइसा अइस ते देख नइ संइहारे। में केहेंव - तोर मइके मां अतक तोर पूत भतीज देखही अतक बछर मा हमर फूफू दीदी हा आय हे कांही खऊ-खजानी लाने होही किके। मोर गोंठ ला सुनके खुस होगे। 

जब ऑटो हा आ के दुआरी मा ठाड़ होगे ता एक बेर घर ला बने सबो कोती बर ले देखत किथे- देखजी बने-बने रहिबे। घर दुआर ला बने देखबे-ताकबे। तोर आदत खराब हे घर दुआर ला भंग-भंग ले उघरा करके कहूं कोती बर रेंग देथस। ओ रोगहा ठेमना टुरा के मारे कांहीच हा नइ बांचय। ये पारा मा जतका चोरी-हारी होवत हे सब उहीच टुरा हा करत हे। रोगहा मन रात-दिन जुआ-चिती मंद-मऊहा मा भुलाय रहिथें। जांगर ला तो टेंढय नहीं। जब डिप्टी मा जाए करबे ता कपाट खिरखी मां बने सकरी तारा ठेंस के जाये करबे। कहूंचो झन जाबे तैं तो ओ डहार गप सड़ाका मा भुलाए रहिबे ये डहार सबो जीनिस ला डोहार डारहीं। 

लट्टू मन ला बुता के जाय करबे अइसने छोड़ दे थस। बिजली के मनमाने बिल आथे। अलमारी म आमा के अथान हे। उही तीर मा खाए के सोडा हे नून आय कहिके साग मा झन डार देबे। बाहिर गेट ला बने लगाबे एक कन मा सट्ट ले खुल जथे। लकड़ी छेना हा घाम मा सुखावत हे पानी-कांजी गिरे-गुराये भीतरा देबे। गेस के बड़ किल्लत होवत हे दुदी महीना होगे मिलत नई हे। रात ले जागे झन करबे तोर लिखई-पोतई मा आंखी हा पहिलीच ले कमजोर होगे हे। अइसे करबे-वइसे करबे कहात आटो मेंरन आवत घंटा भर होगे। 

मोला ये बात के डर लागत रहाय कि परोसी के करिया बिलई हा आके ओखर आड़ झन काट देवय फेर असइे नइ होइस। ओला टेसन मा रेल बइठारे बर महूं आटो मा बइठेंव। रसता मा घलो ओखर चेतई हा चालुच रहाय। असकटा के मोर हुकांरू देवई ला बंद करके कलेचुप येती-ओती बर देखे लगेंव ता ओखर धियान हा मोर कोती बर चल दिस कहिथे-कइसे चिटो-पोट नइ करत हस ? तोर तबियत तो बने हे ना ? कहिके मोर माथा ला छुइस ओखर गोठियई के मारे मोर माथा ह तीप गेय राहाय।  

किथे- अरे तोला तो बुखार धरे हे तइसे लागथे। आटो रिकशा वाला ला रोक-रोक गा चल लहुट में नइ जांवव मइके कहिके लहुटा लीस। में केहेंव-अरे मोला कांही नइ होय हे ओ तै जाना मइके फेर कब जाए बर मिलही ना कब। ओ किथे-अतक बछर मां एक बछर अउ नहीं-सही अतक पन के हालत ला देखके में नइ जांवव मइके। ओखर परन करई ला सुनके मोर सुआंसा थमगे। पासा पलटगे। में कहेव-नहीं-नहीं तैं हंसी-खुसी से जा फेर ओ कखरो नइ सुनने वाली भाड़ मा जावय मइके में अब जाबेच नइ करंव कहिके अड़ दिस। दुआरी मा आटो ले समान ला सब उतारत राहाय अउ मेहा ओ करम छड़हा बेरा ला गारी देवत ठाड़े रहांव। मोला पहिलीच ले अटकर कर लेना रिहिस कि मोर धरमपतनी ला जतका संसो मोर बर हे ये संसार मा ततका संसो अउ ककरो बर नइ हे। तेखरे सेती कहिथंव मोर गोसइन संसार भर ले सबले बढ़िया हें।

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लेखक का पूरा परिचय-

नाम- विट्ठल राम साहू
पिता का नाम- श्री डेरहा राम साहू
माता का नाम- श्रीमती तिजिया बाई साहू
शिक्षा- एम.ए. ( समाजशास्‍त्र व हिन्‍दी )
संतति- सेवानिवृत्‍त प्रधानपाठक महासमुंद छत्‍तीसगढ़
प्रकाशित कृतियां- 1. देवकी कहानी संग्रह, 2. लीम चघे करेला, 3. अपन अपन गणतंत्र
पता- टिकरा पारा रायपुर, छत्‍तीसगढ़
वेब प्रकाशक- अंजोर छत्‍तीसगढ़ी www.anjor.online 

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