छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंग्‍य: भुलऊ महराज के भविसवानी

भुलऊ महराज के भविसवानी

भुलऊ महराज हा जोतिस बिदिया म हुसियार राहाय। जम्मो भविसवानी हा सिरतोने उतरय। एक दिन घर म पोथी-पतरा ल लमाए बिचार करत बइठे राहाय।  ओतके बेरा एक झन जजमान आ जथे।  जजमान-पायलागी महराज पायलगी (काहात महराज करा आथे)

महराज- खुस राहा... (जइजमान के मुंह ल देख के) या मंगलू....आ-आ बईठ।
मंगलू - (बइठत-बइठत) आज पोथी-पतरा म कइसन बिपतियाय हस महराज ? कोनो बिसेस बात होही ?  तभे तुहार माथा के रेखा हा तिराए-तिराए दिखत हे। कहूं तुहार चिंता हा गांव साहार के दसा दिसा उपर तो नई हे ?  भसटाचार हा देस-राज अब गांव के पंचईत मं घलौ अमागे।  गांव-गांव म दु पालटी हो गेय हें।  गांव के भलई बर कोनो संसो नई करत हें। 

देस के संसद म सब पइसा झोंक-झोंक के परसन पूछत हें कहिके सुनई आए हे। या फेर दिनों दिन मांहगाई हा सुरसा कस मुंह ल फारत हे। तेकर संसो होही।
दिनोंदिन चोरी, लूटमार, हतिया, अउ जनाकारी होवत हे। हंमर छत्तीसगढ़ म आतंगवादी मन उधम मचावत हें तेखर सेती तुंहर बिचार करई हा गांव-साहार-देस के कोनों न कोनों समसिया उपर जरूर चलथे।  तुंहर भविसवानी ह आज ले फेल नई खाए हे। सिरतोने होथे। 

भुलऊ महाराज - जजमान कहूं सुरूज नरायेन हा उत्ती ल छोड़के बुड़ती कोती ले उए लगही त का होही ?
जजमान - महराज, आज तुमन कइसे उल्टा-पुल्टा गोठिया थो, तुंहर तबियत तो बने हे, न ? 
भुलइऊ महाराज - अरे ! जजमान मोला का होही ?  (आंखी ल मटकावत) मैं जौन बात के खुलासा करइया हौंव ओला सुन के सब चकरित खा जहीं। हां .....
जजमान - (अचरित खावत) महराज अइसन कोन बात ये जौंन ल सुनके सबके होस उड़िया जही, महूं तो थोक सुनव। 

भुलऊ महराज - (मुड़ ल डोलावत) मोर जोतिस के गनित कभू फेल नई खावय, तेन ल तो तैं जानतेच हस, भले सरकार के योजना हा फेल हो जथे।
जजमान - ले न झपकीन बता डार महाराज, मोरो जीव हा धुकुर-पुकुर करत हे। 
भुलऊ महराज - जजमान, बहुते खराब समे अवइया हे। 
जजमान - आज ले घलौ जादा खराब, महराज ?
भुलऊ महराज - हां जजमान, हां (पंचांग म अपन अंगरी ल रेंगावत) हमर गांव, साहार अउ देस म बेकारी हा अतका बाढ़ जही ते बड़े-बड़े डिगरी वाला मन मांछी मारत बइठे रहीं।  गली-गली म डागडर, इंजीनियर,उकील, डी.एड.बी.एड, वाला मन चिचियावत फेरी मारहीं, इलाज करवा लव, उकालत करवा लव, घर बनवा लव, इलका पढ़वा लव कहिके।  हतिया, जनाकारी, चोरी, बदमासी, धोखा, बईमानी, पाकिटमारी, ठग फुसारी, करे के कोचिंग कीलास चलही।  उकील मन कंसेसन रेट म कानहून के आंखी म धूर्रा डारे बर एक ले बढ़ के एक नुकसा बताहीं।  अभीन तो गीता उपर हांत मड़ाके सब झन लबारी मारत हें। कानहून ल कोन्हों डेरावत नई हें। 

जजमान - तबका होही महराज (डेर्रावत)?
भुलऊ महराज- जइसन ल तइसन वाला कानहून चलही। 
जजमान- अच्छा ? हल...। 
भुलऊ महराज - आदमी ह संसार म अतका बाढ़ जहीं, के ओ मन मंगल अउ चंदरमा ग्रह म अउ इहां तक ले समुन्दर के खालहे अउ उप्पर म घलौ घर बनाके रेहे लगहीं। 
जजमान - (अचरित करत) अच्छा! बड़ बिचित्तर बात बताए महराज। 
भुलऊ महराज- अउ सुन... हमर छत्तीसेगढ़ के बात नहीं ये ह सरी दुनिया के बात ये। जंगल-झाड़ी हा धीरे-धीरे नंदावत जात हे।  अवइया सौ पचास बछर म अइसे हो जही ते लोगन, जीव-जंतू मन पानी बिगन तलफ-तलफ के परान ल तियाग देहीं।
जजमान- हां, ये बात तो सोरा आना सिरतोन ये महराज, कोनो साल बने ढंग के बरसा नई होवय।  कभू नंगत के कुढ़ों देही त कोनो साल सुक्खा पर जथे। जउन हिसाब ले जंगल कटत हे, ततका पेड़-पौधा नई लगत हे। 
भुलऊ महराज - अउ सुन अंकाल-दुकाल ह तो परकीर्ति के बात ये।  मैं राजनीति के बात बतावत हों। 

जजमान - हां...हां ले बता महराज बता। 
भुलऊ महराज-हमर छत्तीसगढ़ राज म अन-धन के कमसल होवत जात हे।  तेखर सेती जतका जुन्ना करमचारी रिटायेर होवत जात है तिंखर जघा ल संविदा भरती ले भरे जाही।  भरे का जाही भरत हें। 
जजमान - हां हां तभे महराज एसो हमर राज म के हजार लइका मन ल सिकछा करमी बनाए गिस हें।  उहू म अड़बड़ लंद-फंद होय हे कहिके सुनई आय हे।  ये भरती ह सबे बिभाग म होय हे।  
भुलऊ महराज- अरे ! भइगे जइजमान, झन गोठिया कलजुग ह अब खराती आ गेये हे।  जइसन नई सोंचे होहव तइसन होवत हे। भसटाचार ह तो अब सीसटाचार बन गेय हे।  अब लोगन ल दुसर मेर हात लमाए म थोरको सरम नई हे। ओमन हात लमई ल अपन अधिकार समझथें।  लोगन मन घलौ नान-नान नवकरी बर लाख-लाख रूपिया देये बर तियार रिथें। भला ऊंखर मेंर काहां के पइसा पलपला गे, समझ नई आवय भई ?
नवकरी लगाए बर पइसा लेवत हें त लेवत हें, देस के संसद सदसय मन संसद म परसन उचाय बर घलौ पइसा लेय हें, अइसे समाचार पेपर म छपे रीहीस।

जजमान- भईगे महराज अति होगे... अति। हमर देस ह कइसे हो जही तइसे लागथे। कांहा गे हमर देस के आदरस, अउ संसकीरती ह ?  सतियवादी राजा हरिचंद के देस म चोर-लबरा मन के डेरा कइसे होगे ?
भुलऊ महराज जजमान... संसो करई हा वाजिब ये चेलिक-चेलिक लइका मन आज ठेलहा कींदरत हें, कतका दिन ले ठेलहा रहीं।  सरकारी नवकर मन के लईका मन नवकरी पाए के लालच म अपने ददा के टोंटा ल रेत दिहीं। 
जजमान- तोर भविसवानी ह मोला सिरतोन लागत हे महराज ! मोर भरम हा... (जजमान के गोठ ल सपूरन, नई होन दिस, बीचे म महराज हा पुछथे)
भुलऊ महराज- का भरम जजमान ?
जजमान- का बतावंव महराज आज-काल मोला कइसे-कइसे सपना आथे। अपने अपन मोर सुआंसा ह थमे लगथे। जाने-माने मोर टोंटा ल कोनों मसकत हे तइसे लागथे। मोरो नवकरी हा साल भर बाचे हे।
भुलऊ महराज- जजमान ! तोर भरम हा सिरतोन उतर सकत हे, आज-काल का नई होवत हे ?  जौंन ल पहिली सुने नई रेहेंव, सोंचे नई रेहेन तौन चरित्त ह आज होवत हे कि नई होवत हे ?

तहीं सोंच न भई ! करमचारी, नेता, बियापारी सबे मन के कारी करनी हा समें-समे म उजागर होवत हे कि नई होवत हे ?  त अपने सुवारत बर कोनो बेटा अपन बाप के टोंटा ल नई चपक सकही ?
जजमान- (मुड ल डोलावत) हां महराज तोर भविसवानी म ओजन दिखत हे मोला।  मोर देंह म तेखरे सेती डर अमागेय हे।  मोरो तीन-तीन झन बेरोजगार बेटा हें।  मैं उसनिंदा म हड़बड़ा के उठ के बइठ जथव। रातकीन नींद म का-का बर्राथव, त घरवाली ह खिसियाथे किथे -‘तोला तो रात-दिन मरेच के डर अमाये रहिथे। 
भुलऊ महराज- जजमान, तोर घरवाली ह ठौंकेच ल किथे। फेर अभीन तोर मरे के जोग नई हे। 
जजमान- हे भगवान, मैं का करंव (काहात अपन माथा ल पीटत उठके खोर कोती निकरथे) 
भुलऊ महराज-अरे...अरे.. जजमान मोर दइछना ल तो दे-दे।
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लेखक का पूरा परिचय-

नाम- विट्ठल राम साहू
पिता का नाम- श्री डेरहा राम साहू
माता का नाम- श्रीमती तिजिया बाई साहू
शिक्षा- एम.ए. ( समाजशास्‍त्र व हिन्‍दी )
संतति- सेवानिवृत्‍त प्रधानपाठक महासमुंद छत्‍तीसगढ़
प्रकाशित कृतियां- 1. देवकी कहानी संग्रह, 2. लीम चघे करेला, 3. अपन अपन गणतंत्र
पता- टिकरा पारा रायपुर, छत्‍तीसगढ़
वेब प्रकाशक- अंजोर छत्‍तीसगढ़ी www.anjor.online

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