छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंग्‍य: बरात के सुख

बरात के सुख

एसो तरि उपर बर बिहाव होइस, कहां जाबे कहां नई जाबे तइसे होगे। तकर ले अच्छा कहूं नइ जावंव कहिके ढेरियाय बइठे राहंव घर म, त एक झन मोर संगवारी अइस अउ किथे-या.. तैं कइस निसफिकीर बइठे हावस जी... चल कपड़ा ओनहा ल पहिर।  मोर टूरा के बरात म नइ जाबे त काकर म जाबे ?  मोला बरपेली तीरत लेगे। वइसे भी अरात-बरात म आजकल हो हुड़दंग के छोड़ अउ कांही नइ होवय। सब खाय पीये रिथे,  डीजे के कानफोड़ू अवाज, ढमक-ढमक नचई-कुदई ताय।  तेकरे सेती बरात म अवस करके लड़ई झगड़ा होथे।  बेरा-कुबेरा खवई अउ रात भर जगई के सेती उसनींदा रेहे ल परथे। तबियत घलो खराब हो जथे।  

मोला मोटर गाड़ी म कींदरई ह बने घलो लागथे। तेकर सेती मैं संगवारी के जोजियाई म अउ कींदरे के लालच म जाय बर तियार होगेंव। बने दुरिहा के सफर घलो रिहीस। गांव ले सौ कोस तो परबे करही। बस म बने सीट ह घलो मिलगे। रस्ता भर हांसत गोठियावत नंदिया-पहार, जंगल ल देखत मोर कवि मन कुलकुलागे। फेर यहू जानत रेहेंव के बरतिया मन संग तेलहा-फुलहा, लडुवा-पपची खाबे, फेर सूते बर कहां सूतबे ?  लठंग-लठंग खोर-गली म ए छोर ले ओ छोर कींदरबे ततके आय।  

बरात-परघनी के बाद खायेन-पियेन, गांव के मंदिर म बरतिया मन बर सूते के ठउर देय राहय तिहां सूतेन। में जेन ल डर्रावत रेहेंव तेने ह आगू आगे। पछलती रात कन मोर पेट ह गुड़गुड़ाये मुँह डाहर ले घुंगियईन ढकार आय लगिस का करंव सीसी म पीये बर पानी धरे राहांव तेने ल धरा पसरा धरेंव अउ बगइचा कोती बर झाऊ राहाय तेन मेंर बइठेंव। अंजान जघा अउ अंधियारी रात। झिगुरा मन सों सो कहिके नरियावत राहाय थोक थोक डरडरहू बानी घलो लागत राहाय।  

उदुपहा मोला एक झन सादा-सादा पहिरे मोरे डाहार आवत हे तइसे दिखीस। ओ अवइया ह थोक दुरिहा म जा के छिप होगे। में डेर्रागेंव ये ह जरूर भूत परेत होही किके। आधा डर आधा बल करके मने मन म केहेंव.... ना.... काहा के भूत परेत होही, मोर मन के भरम आय कहिके आंखी ल रमजेंव फेर उही सादा-सादा पहिरे आदमी दिखिस। अब दू झन रिहीन। अउ मोरे डाहार कांद-बुटा ल टारत भुतका डाहार अइस। येती बर मोर पेट ह अंइठत राहाय ढ़कार ह चलतेच राहाय। थोक दुरिहा म बीड़ी सिपचाय के बेरा माचिस ल बारबे त अंजोर होथे तइसे अंजोर होइस त मोला लागिस भइगे ये ह परेतिन आय अपन लइका सेकें बर आगी सुलगावत हे तइसे लगिस। 

आगी बर के बुझा गे, त ओकर चुरी ह लइका सेंके के बेरा बाजथे तइसे बाजे लगिस। अब मोर हाल ये डाहार डर के मारे खराब होवत राहाय। सीसी म पानी धरे रहेंव तेहू ह टमरत-टमरत हात म लागके जम्मों ह गँवागे। बिगन पानी लेय लटटे-पटटे उठेंव। दुनों गोड़ म पखरा बंघाये बरोबर भुइंया म जम गेय राहाय।  भुतका, खचका डिपरा ल कूदत-फांदत भागेंव हांफत-गजरत। थोक दुरिहा म गेंव फेर उही सादा-सादा पहिरे आदमी ह मोर आगू म आगे। मैं फेर गिरत हपटत भागेंव। त सादा-सादा पहिरे राहाय तौन मन दू-तीन झन राहाय तौन मन चिचियइन... काबर भागथस ग हमन तो बराती अन, ठाढ़ हो ठाढ़ हो कहिके। मैं ठाढ़ होऐंव ड़र के मारे मोर पागी-पटका के अउस नइ राहाय। ओमन मोला अइसने देख के खलखला-खलखला के हांसत राहायं। 

ऐती बर मोर सांस हा लोहार के धुकनी बरोबर उपरसस्सु चलत राहाय।  मैं जब जम्मों हाल चाल ल बतायेंव त ओमन किथे.... या... हमीं मन तो आवन जी, तोला तो हमन देखे हन, ओ भुतका के पाछू म बइठे रेहे न ?  मैं केहेंव... हत रे सारे हो मोला डरूआ के मार डारे रहितेव। एक तो मैं पेट पीरा के मारे मरत रेहेंव, मोर पेट बिछलगे हे तेकर सेती। ओ छोकरा मन जम्मों बराती मन ल बता-बता के कठल-कठल के हांसय।  जम्मों बस म बइठे बराती मन गांव के अमरत ले पेट ल रमंज-रमंज के हांसय। अउ आज ले हासथें। इही ल किथे भय नाम भूत।
-------------0-------------

लेखक का पूरा परिचय-

नाम- विट्ठल राम साहू
पिता का नाम- श्री डेरहा राम साहू
माता का नाम- श्रीमती तिजिया बाई साहू
शिक्षा- एम.ए. ( समाजशास्‍त्र व हिन्‍दी )
संतति- सेवानिवृत्‍त प्रधानपाठक महासमुंद छत्‍तीसगढ़
प्रकाशित कृतियां- 1. देवकी कहानी संग्रह, 2. लीम चघे करेला, 3. अपन अपन गणतंत्र
पता- टिकरा पारा रायपुर, छत्‍तीसगढ़
वेब प्रकाशक- अंजोर छत्‍तीसगढ़ी www.anjor.online

0 Reviews