छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंग्‍य: कूंवा के बेंगवा

कूंवा के बेंगवा

बड़े फजर ले कोन्हों मंदिर, कोन्हों माहजित, कोन्हों गिरजाघर त कोन्हों गुरूद्वारा डहान रेगथें। बयपारी भाई मन अपन दुकान अऊ कमइया मन अपन बुता मा जाथें।  सबो के अपन अलग-अलग नीसा हे।  कोन्हों ल मंद-मऊहा के त कोन्हों ल अपन बल के।  केऊ कीसम के नीसा के जोस मां उनला हउस नई राहाय,  कांहा जाना हे, का करे बर हे, ओकर का मन हे, का पाना चाहात हे, का बने के मन हे ?  ओहा हर बेखत ललचावत रथे। 
हमन काय चाहथन ?  बने विचार करे मां जानबा होथे कि हमन रात-दिन हड़बड़ाथन तेकर एके कारन ये, ओहा सुख अऊ सांति पाना, एकर ले अऊ कोनों जीनीस बर नो हे।  आदमी हा नौकरी, रोजी-रोजगार, पूजा-पाठ पराथना करथे- कि मोर घर गिरसती मां बने-हली भली राहाय, सुख-सांति राहाय कहिके।  फेर चारो खूंट जौंन भी देखथन ओहा जइसन सोंचथन तइसे नई दिखय, उलटाच दिखथे।  दिनों-दिन दुख अऊ हरहर कटकट दिखथे।  सब झन आफत मां फंसे हावय।  गिरावट आवत जात हे, कांहा हे ओकर आगू बढ़े के लच्छन ?  उप्पर उठेके का-का रद्दा हे ?  का उपाय हे? जिनगी के असल जीनिस ला पाये के ? 
कोन किसम ले जिनकी के असल जीनिस ला पाये जा सकत हे ?  कतको के मुंह ले इही सुनई आथे-अब का होही मुसकुल हे। आज-काल चैन हराम हो गेहे।  लोगन के नैतिक गिरावट ला काटना-रोकना कखरो बस के बात नो हे तब ले सब ला सोचे के पहिली भूला जथें कि बदलावट हा बिधि के विधान ये, बदलावट आके रही।  अंधियारी ले उगोना पाख आथे।  गिरावट के बाद उन्नति होथे। 
जउन मन जनमजात अंधरा हें ऊंकर मन बर तो नई कहे जा सकय, फेर जऊन मन रोजेच बदलाहट ला अपन ऑंखी मां देखत हें तौंन मन कभू नई कहि सकय कि जीनगी मां सीरतोन के सुख अउ सांति ला पाना मुसकल नई हे।  आज जउन हमन ला दिखत हे, ओ हा हमरे बनाये ये। ये भवसागर के नियम हा इही बिगयानिक सिद्धांत उपर चलथे, जतका जइसे होवत हे तेकर सोज अऊ उलटा दुनों परतिकिरया होथे।  जइसे कोनों गुमबज मां हम जइसे चिचियाथन ओइसने सुनाथे, ओइसने संसाररूपी गुमबज मां हमन जऊन करम करथन उही हा केऊ गुना बाढ़ के मिलथे।  
कोनों ला गारी देबो त गारीच मिलही, हमर आरती नई उतारय।  धोखा-दगा देबोन, कोनों ला ठगबोन त हमू धोखा खाबोन, हमू ठगाबोन। जौंन छाहीत हे तौंन ला तो मानेच ल परही।  नहीं, कहिच नई सकन।  चोर-मालिक हा घलौ साव नौकर ला बने कहिथे।  हतियारा हा कभू नई काहाय कि मोर बेटा के कोन्हों हा हतिया करय कहिके।  मोर डौकी अऊ बेटी संग कोनो जनाकारी करय।  मिलावट करईया हा नई चाहाय कि ओखर बेटा-बेटी, परवार हा येकर सिकार होवय कहिके।  ठग हा दुसर ठग ले डेर्रावत रिथे।  जौंन बेवहार हा अपने ला पसंद नई हे तौंन बेवहार ला हमन दुसर संग काबर करथन ? 
आज घर-परवार, समाज, संगठन, दफ्तर देस-विदेस के जऊन गड़हन हा बिगड़ाहा दिखत हे ओकर कुंवा के बेंगवापन (अपन देह बर गर करई के हद्द करई) अंवतरते हमन ला इही गियान देये गिसे कि तैहा फलाना जात-धरम-परवार अऊ देस के आस किके।  फलाना धरम के किताबेच ला बांचना हे।  फलाना रिवाज ला ही मानना हे।  हमन इही नान्हे विचार ला धरे हन।  इही कुंवा के बेंगवा वाला विचार के सेती ‘‘सर्वे भवंतु सुखिन, अऊ वसु धैव कुटुम्बकम के विचार हा जुच्छा कलपना अऊ अलकरहा बात लागथे।‘‘ हमला सिरतोन गियान के बात ला नई सीखोईन कि हमन एक ठन चेतन सकति आतमा आन।  आतमा के अपन धरम, सांति, परेम-अनंद, पबरित पर हे, जौंन ला सबो चाहथे।
हम जनमदाता, जगत पिता, परमात्मा, गॉड, भगवान, अल्लाह के सबले सुग्घर रचना अन।  हमन सब आतमा के दुनिया ले ये दुनिया मां नाटक करे बर आये हन।  नाटक खतम होय के बाद ये चोला ला तियागके परम धाम मा फेर जाय बर परही।  हमन जगत पिता के सब संतान अन।  हमन सबो  भाई-भाई अन।  अऊ ये संसार हा हमर कुटुम ये।‘‘ 
संसार के बाप हा इही कहिथे कि ओकर सब संतान हा सुख-सांति ले राहाय।  मिल जूर के राहाय-खावय-कमावय।  एक दुसर संग परेम करय।  कोन्हों बाप हा नई चाहे कि ओकर लोग लइका मन लड़य-झगरय।  एक दुसर ला मारय-पिटय, ककरो अहित करय।  ओइसने सब के कलयान करइया संसार के पिता हा घलौ सोंचथे कि मोर जम्मों बेटा मन एक दुसर ला सुख देवय। एक दुसर के हित के रकछा करय।  हम भगवान-अल्ला-ईसवर ला तो मानथन फेर ओकर सीखोय सीखोना ला काबर नई धरन ?  पोथी-पुरान ला हांत मां धरे-धरे कींदरत रहिथन। परमातमा के असल सीखौना ला तियाग देये हन। 
कबीर दास जी हा तो पहिलीच ले फटकारे हे- 
 ‘पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुवा पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम के, पढ़े सो पंडित होय।।‘ 
एक दुसर ले परेम तभे बाढ़ही जब हमन गियान के पहिली पाठ ला अपन सुभाव मा पक्का करन, सबो झन ला अपन भाई मानन।  धरम के नकली लेबल ला टार के असल धरम ला धरन।  हमन दुसर संग अइसन बेवहार झन करन जौंन हा हमी ला पसंद नई हे।  सबके सुख-कलयान के विचार राखन।  कुंवा के बेंगवा सहीक सोंच के सेती दुसर ला दुख दे के, सुखी रेहे के जौंन संभव नई हे, आज चारों खूंट दुख-असांति, तनाव अऊ मार-काट होवत हे। हमन बिसर डारथन कि-
 ‘चार बेद छह शास्त्र में लिखी है बातें दोय।
सुख दीन्हें सुख होत है, दुख दीन्ही दुख होय।।‘‘
तब हमन ये कुंवा के बेंगवा वाला सामाजिक खराबी ला तियाग के फेर परेम, सांति अऊ अनंद ले भरे, सुख ले भरे समाज के रचना करेबर आगू आवन।  बदलाहट ला अपने ले सुरू करन।  हमन बदलबों त जुग बदलही, समाज बनही, मंजिल खचित मिलही।  जइसे लइकापन के बिहाव होवई।  सती परथा,  छुआ-छूत ला मेंटाय घर कोनों-कोनां ला आगू डाहार आयेच ला परीस अइसने ये संसार के कमजोरी ला मेंटाके, ओला सबो गुन मो पोट्ठ बनाये बर संसार के पिता हा बलावत हे। हमन ला अच्छा रद्दा मां रेंगावय। 
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लेखक का पूरा परिचय-

नाम- विट्ठल राम साहू
पिता का नाम- श्री डेरहा राम साहू
माता का नाम- श्रीमती तिजिया बाई साहू
शिक्षा- एम.ए. ( समाजशास्‍त्र व हिन्‍दी )
संतति- सेवानिवृत्‍त प्रधानपाठक महासमुंद छत्‍तीसगढ़
प्रकाशित कृतियां- 1. देवकी कहानी संग्रह, 2. लीम चघे करेला, 3. अपन अपन गणतंत्र
पता- टिकरा पारा रायपुर, छत्‍तीसगढ़
वेब प्रकाशक- अंजोर छत्‍तीसगढ़ी www.anjor.online

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