छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंग्‍य: अपन-अपन गनतंत्र

अपन-अपन गनतंत्र

स्वतंत्रता अऊ गनतंत्रता ये दुए ठन तो रासटी तिहार हे। ये तिहार बर दुए झन मन संसो करथे, एक गुरू जी अऊ दुसर पड़हईया लईका। पन्दरही ले तियारी चलत रहिथे। काबर की ये रासटी तिहार ल मनाए के इही बपुरा मन ठेका लेय रहिथे। नेता अऊ आदरनी नागरिक मन झंडा फहराय बर अऊ अजादी के कहिनी सुनाय बर आथें। ओ मन ल नेवता के कारट भेज के बलाय जाथे। बड़ मुसकील में वो मन अपन अनमोल समें ल ये रासटी तिहार बर देथें। काबर कि समें बड़ मुलियवान होथे। समें ल फालतू गंवाना बने नो हे। उही-उही गोठ ल बात के बतंगड़ बनाए ले का फायदा ?
बैपारी मन तो अपन धंधा-पानी म बिपतीयाय रहितें। खाता-बही, फायदा-घाटा म मेंकरा कस अपने जाला मं फंदाय रहिथे। साहेब-बाबू मन केऊ ठन चक्रबिहू म मस्त रहिथे। सरकारी योजना ल सफल बनाना घलो ह देस सेवा के काम आए। कहूं योजना फेल खागे त इंखर का हाल होही आखिर इंखर पेट के सवाल हे न। 
सरकार ल समें-समें म योजना के माहात्तम, गुनवत्त अऊ उन्नति के आंकड़ा ल बतात रेहे बर परथे। तभे तो बिसवास जमथे कि ये योजना मन म हजारों करोड़ रूपिया लगाए जाथे। योजना ठउर म जतका काम नई होवय ततका काम तो सरकार के फाईल म हो जाए रहिथे। तेखर सेती बिचारा मन रात-दिन एक करके भीड़े रहिथे। छुट्टी के दिन घलौ छुट्टी नई मनावॅय। जौन रात-दिन अपन पछिना ओगराथे। तेखर कांही फल तो मिलना चाही न ? मिलथे घलौ। सिरि किसन भगवान ह गीता म केहे घलो हे- कर्मण्एवाअधिकारस्ते मां फलेषु कदाचनं।
धरवाली रीसा जही त ओला मनाए जा सकथे, कहूं साहेब के बाई रीसागे त समझो उही मालिक ये। साहेब के बाई के सेवकाई घलौ सरकारी डिवटी म सामिल रथे। आम नागरिक मन ल अपन-अपन समसिया के सेती फुरसुत नई मिलय। का 26 जनवरी अऊ का 15 अगस्त। जनता करा तो समसिया के पहाड़ हे- गरीबी, बेकारी, भुखमरी बेरोजगारी, मांहगई अऊ कतसो कनिहा टोर समसिया हे। गरीब ह गरीबी रेखा ले उबरे बर छटपटावत रहिथे। गरीबी रेखा ले मेंटरईया मन अपने गरीबी ल हटाय म लगें रहिथें। बेरोजगार मन काम-बुता के तलास म लगे रहिथे।
पइसा वाला मन बर नवकरी माढ़े रहिथे। अऊ मेंहनती, प्रसिकछित, मन बिगन पइसा के अपन भाग ल गारी देवत बइठे रहिथे। मांहगाई के बोजहा म लदगाए मन उबरे बर छटपटावत रहिथें। ओ मन जानत हें कि देस म कोनों पाल्टी के सरकार राहाय मांहगाई जइसे महारोग ल इंहा ले भगाना माहमूली बात नो हे।
हमर जुन्ना सियान मन के कहना है कि एखर ले बने तो अंगरेजे मन के राज रीहीस। चोर डाकू, ठग मनके डर नई रीहीस। न भष्ट्राचार घोटाला होवय। लोगन सच्चई ल छुट्टी म पीए रीहीन। देस बर भगति अऊ बफादारी राहाय। आज सही ओ बखत के लोगन के चाल नई बिगड़े रीहीस। नियम खराब नई होय रिहीस। आज अतक गिर गेंय हे ते झन पूछ। अपन सुआरत के सेती देस के संविधान ल घलौ बदल डारथें। सुआरत के खेल खेलत हें। जौंन मन ओंट के राजनीति करत हें, ओ मन काबर बने ताजा हावा के तरपदारी करहीं ? देस के धन ल लूटव अऊ अपन तिजोरी म सकेलव। सात पीढ़ी बर थाथी होगे। इही तियाग, देस भगति के ऊंखर सपत पत्र आय। जिंकर उपर देस ल बनाए के बीजहा हे, संवारे के संसो हे, उहीच मन सबले जादा सुआरथी होगें। 
गुरूजी लईका मन संग परभातफेरी करथें, नारा लगवाएं, काबर कि उही तो रासट निरमान करईया होथे। नाराय म रासटनिरमान के संभावना खोजे जावत हे। भारत माता की जय, पं.जवाहर लाल नेहरू की जय।
 ‘सुभाष चंद बोस की जय‘,  ‘बंदे-मातरम्‘,  ‘जय जवान-जय किसान‘। एक ठन नावा नारा अऊ जनम लेय हे- ‘ जय किसान-जय बिगियान।‘
कुछ दिन पहिली ‘बंदे माररम्‘ उपर घलौ अंगठी देखावत रीहीन। एक मुठा मन मातरी भूमि के ऊपर अऊ बिंदिया के देवइया सरसती दाई के बंदना उपर घलौ इतराज करत रीहीस। त ऊंखर म बने बुद्धि कांहा ले उपजही ?
इसकूल के लईका मन के बड़ सुग्घर परेड़ अऊ नाचा-गाना, गीत के परदसन होथे।  नेता मन परेड़ के सलामी लेथे अऊ अपन भासन म देस भगति-निसठा, करतब के थोथवा गोठ करथे। गोल-गोल बात करके लोगन ल बैकुप बनाथे। अऊ अपन पाल्टी के सरकार के गुनगाथें। दरबारी कवि बरोबर गुन गान काबर नई करहीं, खुरसी ल तो बचाएच ल लागही। अपन पेट कोन ल नई भावय। गुलामी के बेड़ी टोरईया मन के का कीम्मत हे ? कोन केहे रीहीन उनला देस ल अजाद करे बर गोली खा के अपन जीव देय बर, मरीन त अपने सेती। 
 ‘‘ठगड़ी का जानही बिआय के पीरा ?‘‘
गनतंत्र दिवस बर ऊखर भगति का पुछबे। अऊ अइसे अड़हा दिन तो नेता बरोबर दिखबे करथे फेर 15 अगस्त अऊ 26 जनवरी के दिन ऊंखर पोसाग म चमक जादा दिखथे। तेखर सेती कड़कड़ावत रहिथे। पहिली के नेता मन गांधी टोपी पहिरे राहायं। अब के नेता मन बिगन टोपी के गांधी गिरी करथें। दुसरा ल टोपी पहिराथें। खादी के माहात्तम अऊ भावना ले जूरे उद्देसिय आज ‘केस निखार‘ सोप सहीक देंह निखारे भर के हो गेय हे। 
गनतंत्र के माहात्तम मोला तब पता चलिस जब नेता गिरी वाला मन चंदा उसुल करे बर निकरीन अऊ ये तिहार ल बने हो-हुडदंग के साथ मनाए के मुनादी होईस। आज काल सब तिहार ल अपन-अपन तरिका ले मनाना चाहथें। फेर ये रासटी तिहार ल तो जम्मों देस वाला मन मिल के मनाथन तभे बने लागथे। भासनबाजी अब ओ मन ल येमा मजा नई आवय। देस जब ले अजाद होय हे तब ले हर साल 15 अगस्त 26 जनवरी आथे अऊ चल देथे देसभक्ति म हे। ?

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लेखक का पूरा परिचय-

नाम- विट्ठल राम साहू
पिता का नाम- श्री डेरहा राम साहू
माता का नाम- श्रीमती तिजिया बाई साहू
शिक्षा- एम.ए. ( समाजशास्‍त्र व हिन्‍दी )
संतति- सेवानिवृत्‍त प्रधानपाठक महासमुंद छत्‍तीसगढ़
प्रकाशित कृतियां- 1. देवकी कहानी संग्रह, 2. लीम चघे करेला, 3. अपन अपन गणतंत्र
पता- टिकरा पारा रायपुर, छत्‍तीसगढ़
वेब प्रकाशक- अंजोर छत्‍तीसगढ़ी www.anjor.online 

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