छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंग्‍य: अइसन सगा मन ले भगवान बचाए

अइसन सगा मन ले भगवान बचाए

आज-काल मैं सगा के नाव म अइसे जॅगिया जथंव जइसे लाली ओनहा ल देख के गोल्लर मन जगिया जथें। तुमन कइहव-‘अरें भइया, तोला सगा मन ले अतक चिढ़ काबर हे ?‘ त मैं कइहंव-‘यहां तरहा मांहगाई के जमाना मं सबे जीनिस के भाव ह आगी लगत ले मांहगा हो गेये हे। साहार म जिंखर घर हे ओ मन तो अपन घर ल नान-नान खोली बनाके दुधियारिन गाय बरोबर दुहत हें, झन पूछ। खोली मुहरन खोली नई हे, न टट्टी न नाहनी, न रंधनी खोली। ले-दे के एक ठन नानकीन खटिया दसही, अरछी-परछी के घलौ ठिकाना नई राहात। चुरूक-चुरूक मूते सहीक तो नल ह चलथे-तेखर किराया पांच सव, सात सव रूपया माहवारी।
तुहीं बतावव अइसने हालत म कहूं सगा आगे कखरो घर त ओखर दिमाक खराब नइ्र होही। ढोलक बजा-बजा के खुश होके थोरहे नाचही ? 
एक झन महू दोखहा आंव। गांव ले कमाए-खाए बर साहार के एक ठन अइसन मोहल्ला म किराया ले पारे हंव, जौन मोहल्ला ल साहार के परसिद्ध मोहल्ला के हे जाथे। तुमन तो खुदे जानथव समिया, कोन मन ल कहे जाथे तेन ल। अउ ओसने बने बर का-का करे ला लागथे तेन ल। हां त मैं जौन घर म किराया हाववं तेन मं तीने ठन नान-नान खोली हावे। एक ठन नानकीन रंधनी अउ दुठन रंधनी ले थोक चौक चाकर अउ खोली। एक ठन म उज-गुज सब जीनिस हावय। अउ एक ठन म माई-पिला सुतथन। कोनो सगा-उगा आ जथे गांव ले तेन ल उही उज-गुज वाले खोली म सुता देथन। घर के छानह अतका निच्चट हे ते दिन म केऊ खेप ले छानही अऊ मुड़ के झगरा होथे। अब्बड़ जुन्ना घर ये ओखर परवा छानही मन, अतका पन के घुनहा हो गेये हे ते अब-तब गिर जही तइसे लागथे। पहिली किराया घर मन तीस-चालीस बछर ले इही म राहात रीहीन त ओ बेखत किराया हा थोकीन राहाय। ओह पांच-दस रूपिया देवय। जब ले मैं ये घर म आयेंव तीन सौ, तीन ले चार चार ले पांच, पांच ले छे। ये सो के देवारी ले सात सौ देथंव। घर कुरिया के मरम्मत बर हर साल तुतारी लगाथंव त ले-दे के करवाथे।  उहू म खरचा ल मुही ल देय बर कहिथे। किराया म काट लेबे कहिथे। का करंव झखमार के देथवं, मुंही ल तो सहना  हे। 
थोकिन कमई म अउ कोन दुसर धर देखव बने घर-बर रूपिया तो घलौ होना।
मोर परवार म कुल छे झन होथन। हमन दुनो परानी अऊ चार झन लइका। मोर बोहासीन ह थोक घुस्सेल बानी के हे।  ओखर गुस्सा नाक म रहिथे। पहिली-पहिली जब ये घर म अइस त घर ल देखके कहिथे, ‘ये घर ये घुन चिरई खोंदरा, ये।  परान छुटे सहीक लागत हे। भगवान जाने इहां रहइया मन कइसे राहात रहीन हें ते ?‘ अब हमन ल इहां राहात बछर दु अकन होगे। भगवान के लाख-लाख असीस कि अब ओहा अपन-आप ला इंसान समझत हे। साहार के चाल-ढाल ल जान डारिस कि इहां भगवान ह मिल जही फेर घर हा नई मिलय। 
अब रे संगी हो तुंहर मन ले का दोवहूं। मेहरईन करा कहूं अपन पेट लुका सकही है? मैं इंहा दु हजार के नौकरी करथॅव। दु हजार के नौकरी म छे-छे ठन जीव ल मैं कइसे पोसथव ? है न अचरित के बात ? तभो ले दुखम्-सुखम परवार ह चलत हे। उपरहा म कहूंचो के सगा-उगा टपकते रहिथे। जब-जब सगा आथे हमर महिना के बजट बिगड़ जथे, ऊंखर मेहमानी करत-करत रोवासी लाग जथे।  दू-चार दिन होवन नई पावय टप्पले सगा च उतर जथे। भला अइसन म काखर जीव ह हदास नई होही ? सगा मन ला आजे जाही, काले जाही कहिके बने-बने खवाबे त मोअन अउ अंगद सही गोड़ जमा के रतिया जथे। ‘सीका देख बिलई रतिआय‘ कहिथे। तुही मन बतावव भला अइसन सगा मन बर काखर जीय नई खीसियाही ? ऊंखर आरती थोरहे उतारबे। 
देवारी मना गेय राहाय। इतवार के दिन राहाय। मैं घरे म राहावं। ओतके बेरा एक ठन रिक्सा मोर दुवारी म आके ठाढ़ होइस। हमन काहात रेहेन परोसी मन घर कोनो आवत होही कहीके। बाहिर एक झन परोसी हुंत करावत कहिथे-‘अरे गुरूजी तुंहर घर कोन गांव के ये ते सगा आय हे, तुही मन ला पूछत हे।‘ मैं सुनके बाहिर निकरेंव। देखथंव मोठ-डांठ फुटबाल सहीक एक झन अधेर हा अउ रिक्सा म कोच-कोच ले अमाये दु-तीन जन लइका अउ एक झन माई लोगन बइठे राहाय। ओमन जम्मो झन अनचिन्हार लागिन तभो ले मैं हांसत पुछेंव-‘तुमन कोन ल पुछत हौव जी कहिके।‘ काबर कि मोला तो पक्का विसवास रीहीस कि ये मन तो मोर घर के सगा नो हे। ये मोहल्ला म तो कतको झन मासटर रहिथे, ऊंखरे घर के हो ही। ओ ढोलक पेटवाला ह पूछथे-‘तही ह साहू मास्टर अस का, जौन रईपुर ले आये हे।‘ 
मैं केहेंव-‘ह हो मही तो आंव।‘ अतका गोठ ल सुन के ओ मोठल्ला ह अपन लइका लोग ल खिसियावत कहिथे-‘अरे तुमन ल उतरना हे ते जोराए रेहे के विचार हे। चलो उतारो पेटी, झोरा मन ल। इही घर तो आये हमर मितान के भतीजा के। ओखर अतका गोठ ल सुनके जम्मो झन जोरजिर-जोरजिर रिक्सा ले उतरगे। अपन समान मन ला लान के मोर दुआरी म ओरिया दिन। ओ मोटू हा कहिथे-‘बेटा ये समान मन ल सुनके मैं चकित खा गेंव, ‘मान न मान मैं तेरा मेहमान।‘ मं ओला जानव न चिन्हव न कभू देखे तक नई रेहेंव। 
का करंव भीतरी कोती लेग के मड़ाये त उंखर समान मन ल। त मोर घरवाली कहिथे-‘कोन गांव केय? तोर का लाग मानी ये ?  कोरी खरिका इलका-पिचका हे, ये मन ला कोन मेर सुताबे-बइठारबे। एक तो इंहा गोड़ मुड़ाये के ठऊर नई हे। ओखर घुस्सा के मारे मुंह कान ललिया गे।‘
मैं अकबका के केहेंव‘महूं नई जानव भई,ये मन कोन ये, कहां ले आये हे तेन  ल। मोर कका के मितान आंव तो काहात रिहीस। फेर कोन कका के मितान ये ते बने ढंग के बताये तो घलो नई हे, अउ समान मन ल भीतरा डारीस। मैं घर वाली ल समझायेंव-‘अड़बड़ तो हमर हिती-पिऊति हे। ले चल लोटा में पानी-उनी निकार अउ पांव-पलौटी कर, देखे जाही।‘ घरवाली ह का करे बपुरी ह भुन-भुनावत लोटा म पानी निकार के मड़इस।  अउ पांव-पैलगी करीस। 
पांव ल परत-परत कहिथे-‘हमन तुंहला तो नई चिनहत हन, कोन अंव, अउ कोन गांव ले आय हौव ते ?‘ त ओ ढोलक पेट वाली हफरत-हफरत कहिस-‘मैं तुहरे गांव तीर के मितनहा कका आंव। इंहा इलाज करवाये बर आये हांव। मितान ह बताय रीहीस, तुमन ल इंहे रहिथे कहिके। हमन खोजत-खोजत आय हन।  घर के राहत ले काहां धरमसाला म रहिबे कहिके।‘
मोर गोसइन ह सुन के किहिस-हां बने करेव आ गेव ते फेर देखव न साहार म नान-नान घर-दुआर बड़ अड़चन होथे। ले गोड़ हात ल धोवव कहिके रंधनी कोती आके चाहा के पानी ल चुलहा म मड़इस। मैं सगा मनसंग बइठ के काही कुछु जानकारी लेवत रेहेंव। मोला संखा रीहीस कि हो न हो ये मन कहूं दुसर साहू के सगा आय। धोखा म मोर घर उतर गेय हें। 
मोटू ह कहिथे- ‘बेटा तुमन नान-नान रेहेव तब के मैं तुंहर कका संग मितान बदे हांव। मैं तो तुहर गांव के घर म केऊ खेप ले आवत-जात रहिथंव। तैं तो पढ़-लिख के इहां साहार आगेस नवकरी करे ब। मैं तो अभी दु महिना पहिली तुंहर गांव गेय रेहेंव तब पता चलिस कि तै इंहा इस कहिके। न तै मोला चिनहे हस न मैं तोला।‘ 
ओखर अतका गोठ ल सुनके मोर जीव ह जुड़ईस। मैं मन-मने मा केहेंव,-‘अब तें कोनो होवस, मोर मुंड़ ऊपर बोजहा तो लदगाचगे अइसे कहिके भीतरी म जा के टूरा के दाई ल केहेंव-दे तो 
झोरा अउ पइसा ल साग-भाजी ले लानव सगा मन भुखाये होही। भात के अंधना आवत ले हटरी ले आ जथंव।‘ ओ कहिथे-‘कांहा मोर करा पइस कउड़ी हे, ओ दिन अउ ओ का कहिथे-तेन गांव के सगा आये रीहीन तिंखर बर जोर-तोर करके खरचा चलाये रेहेंव। मैं मुंड धर के बइठ गेंव। मैं तो सारे ये सगा मन के सेती बइहा जहूं तइसे लागथे, कतेक ल सगा मानबे तइसे लागथे। ला.... दे झोरा ल देखत हौं कोनो मेर उधार-बाढ़ी मिल जही ते कहिके। झोरा ल धर के हटरी आ गेंव।‘
घरवाली ह ओ मन ला चाहा-पानी ल पोरसीस। त ओ लइका मन अपन-अपन ले चील-पो रोये लगिन। कोनो कहात हे दुठन बिसकुट खाबो-कोनो काहाय हमन तीन ठन खाबो त कोनो काहाय हम बिसकुट नई खावन हम डबलरोटी खाबो। ओ ढोलक पेट वाला ह आडर फरमावत काहत हे-देख बहु मैं अतका बेरा तो चार ठन घीव के पराठा खाथंव अउ एक पाव दूध पीथंव मोर अतका इंतिजाम ल कर देबे। रात में सीरिप आधा किलो दूध पीथंव। बिहनिया एक गिलास चाहा पीये के आदत हे। अउ बारा बजे दस ठन गहू के रोटी अउ तरूहा सुक्खा साग। 
घरवाली के तरूआ सुखागे ऊंखर फरमईस ल सुन के। घर म सबे रासन पानी ह सीरा गेय राहाय। आखरी महीना म का बाचे रही। मैं आयेंव त बताइस। मैं मुड़ धर के बइठ गेंव। अच्छा सारे ह घर बइठे बला आथे। मैं सोचेंव, कका ह सुनही कि ओखर मितान मोर घर आय रीहीस त ओखर इंतिजाम ल बने ढंग के करीस नहीं कहिके ओहा खीसियाही। कहिके ओखर राहात ले बने-बने खवायेंव-पियायेंव। सगा ह दु दिन के बजाय एक हफता ले रहिगे। जाये के नावे नई लेवत राहाय। गोंह-गोंह ले तीन टैम खावय अउ कुमकरन बरोबर सुतय त काहां ले ओखर बीमारी कटय। 
ओखर डौकी ह घलौ दु-दु माई बरोबर खा पी के गोड़-हांत ल लमा के दिन भर मोर घरवाली संग आनी-बानी के गोठियावत राहय। एक ठन काहीं काम-बुता ल घला नई करय। लइका मन तेन भारी उतियइल करय। दरजन भर कप घलौ पटक-पटक के फोर डरिन। खिड़खी म चघ-चघ के खटिया-दसना ऊपर कुदय।  लइका मन अतका उतलइन करय फेर मजाल हे ऊंखर दाई-ददा मन ओमन ल राधेश्याम नई भजय। वाह रे, लइका अउ ऊंखर दाई-ददा ?  दु दिन म दसना-खटिया के बारह हाल होगे। घुड़मा-घुड़मा लइका मन दसना-पीढ़ म रोज मूतय। कुरिया के दुआरी म ठाढ़ होते साठ मुतइन-मुतइन बस्सावय। खटिया के जम्मो नेवार ह सरगे। 
एक दिन हमन दुनो परानी सुनता बांधेन ओ मन ला इहां ले भगाय बर। मोर एक झन संगवारी ल केहेवं। ‘अरें यार ! तोला मोर संकट ले उबारे बर एक ठन नाटक करे बर परही। ओ कहिथे का होही ? बता न मोला का करे बर परही।‘ मैं केहेंव तै मोर घरवाली के भाई बन के आबे अउ कहिबे चल बहिनी तुरते तियार हो ददा ल अबक-तबक हो गेय हे, तोला देखे बर ओखर परान ह अटके हे। बस तै अतकेच कहिबे तहां हम बना लेबोन। ओ कहिथे-‘ठीक हे मैं काली बड़े फजर ले आवत हौंव। तुमन होशियार रहूं।‘ मैं केहेंव-‘ठीक हे ठगबे झन। ओ किहिस मैं कालिच आहूं।‘
दूसर दिन ठौंका चाहा-पानी होवत राहाय ओतके बेरा अइस। मैं केहेंव तोर छोटे भाई आगे ओ पानी दे ...। घरवाली ह लोटा म पानी लान के दिस। अउ डर्रावत पूछथे कइसे बिहनिया ले आ गेस छोटू ?  घर डाहार दाई-बाबू मन बने-बने तो हांवय न ? तभो ले ओहा मुंह ल ओथार बइठेच रहाय कले चुप।  मैं फेर तिखारेंव का होगे छोटू तोर दीदी का काहात हे गा ? ओ हा डबडबावत आंखी ले कहिथे-‘दीदी, बाबू के तबियत बहुत जोर से खराब हे, घेरी-बेरी तोरे नांव ल ले-ले के तलफत हे। बड़े भइया हा तोला अउ भांटो ल तुरते बलाय हे, संगे म लानबे कहिके भेजे हें।‘
ओखर गोठ ल सुनके मोर बाई हा रोए-गाए ल धर लीस। सगामन घलौ आगे का होगे कहिके। मैं जम्मो किस्सा ल बतायेंव। अउ केहेंव -‘कका मोला माफी देहू मैं तुहंर सेवा ल नई करे सकेंव। हमन अभीच के गाड़ी म जावत हन, कोजनी हमर जावत ले हमर ससुर ह मरही धुन बांचही ते।‘
मितनहा कका कहिथे-‘नहीं-नहीं तुमन जावव, हमू मन अब जाये के तियारी करबो। महू ल तो डॉक्टर ह काली के कहि देय हे जा सकत हौव कहिके।‘ मैं मने-मन केंहेव बनिस रे बनौकी हा कहिके।  ओमन जम्मो जन हड़बड़ावत अपन कपड़ा ओनहा ल सकेल के पेटी अउ बेग ल बोजत लइका मन  ल येला-ओला लान कहिके चिचिया-चिचिया के बलावत राहाय। ले-दे म ऊंखर तियारी होइस। मोला कहिथे-एका ठन रिक्सा बला देते हमर गाड़ी के बेरा घलौ होवत हे।
मैं केहेंव हमरो गाड़ी के बेरा हो गेये हे। ठीक हे हमरो-तुंहरो दुनो झन बर रिक्सा बला देथंव कहिके मैं रिक्सा बला के लान देव। ओमन रिक्सा म बइठ के रेंग दिन टेसन डाहार। ऐती बर हमर मनके हंसई नई बनय। सुरता कर-करते कठल-कठल के अस हांसेन जम्मो झन के पेट फुले लगिस। मैं केहेंव ‘को जनी ओ मन अउ के दिन ले रहितीन ते ? अइसन सगा मन ले भगवान बचाय।‘
मैं मोर संगवारी ल गाड़ा-गाड़ा धन्यवाद देवत ओखर पीठ ल ठोकेंव। ओ कहिथे-‘पीठे ठोंकय ले काम नई बनय भाई चल गरम-गरम जलेबी अउ भजिया खवा। तोला अतेक बड़ मुसिबत ले छोड़ाये हौंव। फोकट के भऊजी के ददा ल मार डारेन।‘ मोर घरवाली ह अपन अंचरा म बंधाये दस के लोट ल छोरत कहिस-‘ये दे इही आखरी लोट ह बांचे हे, जा होटल ले लान दे।‘ मैं जलेबी-भजिया ल लान के तीनों झन के मझोंत म मड़ा के बैठ गेंव। जलेबी-भजिया बड़ मीठावत राहाय।

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लेखक का पूरा परिचय-

नाम- विट्ठल राम साहू
पिता का नाम- श्री डेरहा राम साहू
माता का नाम- श्रीमती तिजिया बाई साहू
शिक्षा- एम.ए. ( समाजशास्‍त्र व हिन्‍दी )
संतति- सेवानिवृत्‍त प्रधानपाठक महासमुंद छत्‍तीसगढ़
प्रकाशित कृतियां- 1. देवकी कहानी संग्रह, 2. लीम चघे करेला, 3. अपन अपन गणतंत्र
पता- टिकरा पारा रायपुर, छत्‍तीसगढ़
वेब प्रकाशक- अंजोर छत्‍तीसगढ़ी www.anjor.online 

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