छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंग्‍य: चोर अमागे

चोर अमागे

आधा रात के बेरा उदुपहा डेना ला धरके उठावत मोर गोसईन, डर के मारे कांपत घेंघराहा बानी चिचियावत काहात हे - ‘ये ओ उठ तो, ओदे सुन तो .. काके गोहार पारत हें, चोर-चोर कहिके। ओद.. सेठ के घर म चोर अमागे काहात हें।‘ 
तुहीं मन बतावव कातिक-अग्घन के महिना मरत ले जाड़ आधा रात के बेरा, सुग्घर बेलांकीट अऊ पिछउरी ल ओढ़के सुते मइनखे ल कोनों चोर पकड़े बर उचाही त घुस्सा नई लागही जी। ये चोरहा मन घलव याहा ठुनठुनी धरत जाड़ म चोरी करे के सुझथे। चोरी करे बर अइगें त पकड़ाना काबर। हुसियारी ले चोरी करना रीहीस। 
अतका म ओ फेर चिचिअइस-‘अरे उठन ओ..‘ मोला अइसे लागत रहाय जने-मने बरपेली जहाल म कोनो घिरलावत लेगत हे तइसे। मैं खिसियावत केहेंव-‘अरे तहूं का तमासा करत हस मैं नई उठवं अतक जाड़ म कखरो घर चोर अमावय चहे बघवा। मोला सुतन दे। दुसर बाजू केरवट्टी लेके सुत गेंव।‘
फेर उहू राजा हरिचंद के बेटी निकरीस, कहिथे- ‘अई ... वा... घनिय हे परोसी घर चोर अमागे हे अऊ तैं चैन के नींद सुतत हस ? ये बने बात आय ?
मैं फेर खिसियावत केहेंव-‘परोसी लूटावय चहे मरे नइहे मोला मतलब। मैं सबके ठेका लेय हांवव। न मैं थानादार आंव न कोतवाल, अऊ न मैं बीमा कम्पनी वाला आंव। काबर मैं अतक गरम ओनहा ल ओढ़के सुग्घर दंदकत सुते हांवव तेन ल छोड़ के बरफ सहीक जुड़ म अपन देहं ल ठुठराय बर जाहूं। मोला कहूं जुड़-सरदी धर लेही त ? परोसी मन करवाही मोर दवई पानी ल ? ओमन तो तोर घर आगी लगय चहे पानी बरसय झांके तक बर नई आवय। फेर का झख मारबे।‘
 ‘मैं - झन आंय मोर लुआठ ले फेर हमन ये बखत अतक जाड़ म मरे बर नई जावन।‘
 ‘ओ... नई जावस ? राम-राम ... तोला थोरको लाज नई लागय।‘ मैं ... सरम ? का के सरम ? का मैं कहूं चोरी करे हांवव ? 
ओ ह घुसिया के किथे-‘तोर सहिक डरपोकना मनखे एक ठन मुसुवा ल तो मारन नई सकय, तैं का चोरी-डाका डार सकबे ?  का डाका-चोरी ह, तोर बर मामूली खेल ये ? अरे थोक हऊस म आ ...  अइसन बुता करईया मन के करेजा सूपा असन रिथे। जौन जिए-मरे ल नई डेर्रावंय।‘
मोला ओकर गोठ ह जाहार ले जादा करू लागिस, मैं ललकारत कहंेव-‘बड़ हुसियारी मारत हस, त तहीं काबर नई जावस ? मोला रमायेन सुनावत हस।‘
ओ रखमखावत किथे ‘‘मैं जांवव। ले मही जावत हौंव, फेर बिहनिया मुंह देखाय लईक नई रहिजबे, में बता देथंव हां।‘ 
सिरतोने म रेंग दिस ग ...। अब मोला लचार होके अतक जाड़ म बलांकीट सुपेती के गरम-गरम सुख ल तियाग के ओ चंड़ाल जाड़ म उघरा देह दउड़े ल परगे। सलुखा भर ल पहिरे, हांत म नानकीन लउठी ल धरके बाहिर निकरेंव। का बतावंव ओतका बेरा ओकर जिद् मोला अइसे लागत राहाय। कहूं घरवाली बदली करे के जीनीस होतिस ते बदली कर देतेंव। 
ओ ह दुआरी मेंर चल देय राहाय, मैं लकर-धकर ओखर मेंर आयेंव। ओ ह मोला बियंग मारत कहिस-‘गली म थोर मईनखे सकलाए हें।‘ नान-नान लईका मन तक हांत म लउड़ी धरे मारो-पीटो धरो ... कहिके चिचियावत हे, का ते ओकरो मन ले गे बीते हस ?‘
कटाकट भीड़ ल देखेंव त मोरो मन म बीरता अऊ साहस के जुआर भांठा उमड़ गे। तुरते गली डाहन दउड़ेंव सेठ के घर कोती बर। 
ओमेरन अतका भीड़ रहाय जन पूछ, अतका रेलम-पेल तो कुंभ के मेला म घलव नई राहात होही। हांत म लउड़ी, बेड़गा, भाला, बल्लम, बरछी, धरे ठाड़े राहाय। सब के चेहरा म डर अमाए, सब परसान रहाय। अब में समझेंव कि मामला बड़ गड़बड़ हे। मोर नई-अवई ह मोर हकम बने नई होतिस। मने-मन में अपन गोसईन के हुसियारी के बड़ई करेंव। सेठ के दुनो जवान गोसईन के हुसियारी के बड़ई करेंव। सेठ के दुनो जवान टूरा मन दोहत्था लउड़ी ल खांद म बोंहे मारो धरो काहात गोहार पारत बईहा बरन ये कोती ले ओ कोती दउंड़त रहांय। सैफो-सैफो करत। गरीब मन के हाल-बेहाल होवत रहाय। लोहार के धुकनी सहिक तो ऊंखर सांस चलत रहाय। उकर चेहरा के रंग उड़िया गेय रहाय। डर के मारे मुंह ले गोठ तक नई निकरत रहाय। सीरीप मारो धरो पकड़ो के रट लगाय राहांय। अऊ बात घलाव अइसने रहाय, जेकर घर जम्मो पूंजी लुटईया हे तऊंन ह बेहाल नई होही त कोन ह होही।‘
गांव के मुखिया ह सेठ ल बला के पूछिस - ‘सेठ ह बतईस कि ‘आधा-अक घंटा होईस हे हमन माई पिल्ला जें-खाके सब अपन-अपन कुरिया म सुते बर गेंन। उदुपहा मोला सुनईस के भंडार कुरिया म रूपिया-पइसा के पेटी ल कोन टोरत हे देखो तो ग कहिके।‘ बेटा ह तो नई उठिस, बहू ह कंडिल ल धरे-धरे भंडार खोली के दुआरी म अईस अऊ उल्टा पांव ददा गा काहात अपन कुरिया डहार भागिस। ओतका म बड़े टूरा आगे, अऊ चोर-चोर कहिके गोहार पारिस। महंू ओखर गोहार परई ल सुन के चिचियाय लगेंव।‘ ओती बर छोटे-छोटकी मन घलो चिचियाय लगिन। हमन जान डारेन कि चोर मन भंडार म खुसरे हें कहिके। 
हमन भंडार के संकरी ल लगा देय हन। बहू मन अपन-अपन कुरिया म कपाट-बेड़ी लगा के चुप्पे खुसरे हें। हमन बाप-बेटा मन बाहिर म आ के गोहार पारत हन। अब को जनि चोर मन भीतरी मं धंधाय हें, धुन पाछू के कपाट ल टोर के भागगे हें ते भगवाने जाने। घर के पिछोत ह थोक ओदर गेय हे। हो सकत हे चोर मन उही डहर ले कूद के अईन होही। अऊ हमर जिनगी भर के सकेले पूंजी ल धरके भाग गे होहीं। हाय मैं का करंव, मोर भाग खोटहा हे, मैं मर जतेंव कहिके सेठ ह छाती पीट-पीट के रोय लगथे। 
मुखिया सेठ ल समझावत किथे-‘झन डेर्रा लाला, चोर मन भीतरी म धंधाय होहीं, तुमन बने अक्कल लगाएव, ओ कुरिया के संकरी ल लगा देय हौव, अऊ तुरते गोहार पार के गांव के मन ल सकेल डारेव। अतका जलदी सांय ले चोर मन भाग नई संकय।‘ 
सेठ ह मुखिया ल बावला होके कहिथे -‘मुखिया जी तोर मुंह म भगवान बसय, तोर बचन सिरतोन हो जातिस, नहीं ते हमन बरबाद होगेन इही समझ। हाय राम अब मोर लईका मन काला खाहीं। काकर छांव म रहहीं ? कहिके रोये लगथे।‘ 
मुखिया जी किहिस- ‘भगवान सब भला करही, लाला तैं संसो झन कर। हमन ओ चोर मन ल अभीच पकड़बोन। मुखिया कहिस, देखव रे बाबू हो सब तुमन अपन-अपन हथियार ल अच्छा धर लेवव, घर ल चारों कोती ले घेर लेवव, चोर मन भागे झन सकय। आधा झन मन जेकर करा भाला-बरछा, तलवार जौंन भी होवय मोर संग घर भीतरी के अंगना म चलव।‘
सब झन लाला के घर ल चारों खूंट ले घेर डारीन। आधा झन मन जिंखर मेंरन भाला-बरछी, तलवार राहाय तौन मन अंगना म ठाड़ होगे। जउन खोली म चोर अमाय रहाय तउन खोली के कपाट के संकरी ह जइसे के तइसे लगे रहाय। सब झनके जीव हाय होईस। अब सुनता होय लगिन कि कोन ह खोली म जा के चोर मन संग मुकाबला करही, अऊ ओमन ल पकड़ के बाहिर निकारही ? जम्मो जन ऐकर-ओकर मुंह ल ताके लगिन, कोन माई के लाल तियार होवत हे कहिके। मुखिया घलौ ठाढ़े-ठाढ़े गुनत रहाय -‘खीर तो बड़ मीठ हे फेर ओला खाना बड़ खतरा हे।‘ चोर-डाकू मन ले मुकाबला करना मामूली बात नो हे। को जनी ओमन कोन हथियार धरे हे, के झन ल मान गिराहीं ? बात कहात निकर के भाग सकत हें। फेर अब तो, जब इंहा अईगेय हंन तब झकमार के कहीं उदिम करेच ल परही। ओह सब झन ल ललकारत किहिस-‘अरे का देखत हौ रे खोलव संकरी ल, अऊ भीतरी म जा के देखव, पकड़व सारे मन ल।‘
फेर कखरो गोड़ उचत नई हे जने-मने ओ मन अजब बंगला के पुतरी-पुतरा बरोबर ठाढ़े रहिगे। मुखिया फेर ललकारीस-‘अरे उहीच मन अपन दाई के दुद पिए हें का, हमन नई पिए हन ? उही मन सेर यें ? अऊ हमन गीदड़ अन ? चलव खुसरव का देखत हव ?‘
मंगल राऊत ह आगू आके किथे- येमां सेर अऊ गीदड़ के का बात हे मुखियाजी, ओ सारंे मन चोर चंडाल ये। अपन जीव ल हंथेरी म राख के निकरथें चोरी करे बर, सेंध फोरे बर, डांका डारे बर, थोक सोच-समझ के उपाय करे ल परही। हो सकत हे ओ मन बंदुक-भाला धरे होहीं, कपाठ ल हेरते साठ दांय-दांय कहुं चमका दिस त हम जम्मों झन के लास गिर जही, अऊ ओ मन भाग घलो जही। मोर बिचार ले दु-चार झन मन पुलुस के जवान बंदुक वाला ल धरके ले लानय, त भला संकरी हेरे के हिम्मत करे जाय।‘ मंगल के बात ह मुखिया ल बने लगिस, जने-मने ओखरे आतमा ह कहात हे तइसे लगिस। हां मंगल ते बने बताएस, तोर बात तो लाख रूपिया के हे। बिगन बंदुक के कपाट खोलना खतरा हे। अइसने महू बिचारत रेहेंव। अच्छा तुमन दु झन जावव थाना, अऊ दरोगाजी ल सबो हाल-चाल ल बता देहू, अऊ दू-चार झन पुलुस वाला ल बंदुक धरके, संग म ले लानहू, कइसे मंगल?
मंगल खुस होवत -‘हां मुखिया जी।‘
दु झन मन थाना बर दउड़िन। आधा घंटा म दरोगाजी अऊ चार झन सिपाही बंदुक धरे पहुंचिन। दरोगाजी सरी बात ल पूछ के जेवनी हात म भरे पिसतोल के घोड़ा म अंगरी फंसा के धरे ओ कुरिया डाहार जेन म चोर मन धंधाय रहांय, ऊंखर पाछू म चार झन सिपाही खखौरी म बंदुक ल चपके अऊ ऊंखर पाछू म गांव भरके मइनखे मन भाला, बरछी, कटार, लउड़ी, गंडासा धरे चिचियईन -‘बोल बजरंग बली के जय‘ जने-मने कोनों किल्ला म चघई करे बर जांवत हें तइसे। दरोगा ह बड़ हुसियारी म रहाय। घेरी-बेरी अपन पाछू डहर सिपाही मन कोती देखय, अऊ ओमन ल चेतावय- ‘हुसियार रहिहव कहिके।‘ 
सिपाही मन अपन पाछू वाला मन ल चेतावय देखबे न हुसियार रहू कहिके। सबो झन एक दूसर के बल म आगू घूंचत जावंय, अब दरोगा उही कुरिया मेरन पहुंचिस अऊ संकरी ऊपर हांत ल मड़ा के किथे-‘देखव तुमन सब झन अपन हंथियार ऊपर धियान राखहु, अब मैं संकरी ल हेरत हौव। सुरता कर लव कपाट खुलते साठ ओमन भागे बर अपन पूरा ताकत लगाहीं, तुमन थोरको झन डर्राहू।‘
उदुप ले ओतके बेरा संकरी हिटे के झन्न ले अवाज अइस, सब के छाती धक्क ले करीस। मारो पकड़ो कहिके गोहार पारे लगिन। पहिली दरोगा ह भीतरी अमइस, पाछू म सिपाही मन फेर चोर-डाकू के कहीं अता-पता नई रहाय। कंडिल, टार्च धर के खाजे लगिन। पेटी अऊ धान के पोता के पाछू म लकड़ी म कोचक-कोचक के देखे लगिन। ऊंहा कोन्हों रहितीन त मिलतीस। ओतके बेरा कोठी के ऊप्पर ले टीन के पेटी ह भड़ांग ले खालहे म दांय ले गिरीस। लोगन हुसियार होगें। चोर मन धान के कोठी ले निकरीस। सब झन कोठी कोती देखिन। मुखिया के बिता भर के करिया पोसवा कुकुर ऊं...ऊं...ऊं करत एती-ओती ले निकर के भागे बर जघा खोजत रहाय। ‘हत्त रे कि‘ अरे ये कुकुर ये कहां के चोर-डाकूं ? (राम-राम) याहा जाड़ के रात म गांव भर के मन हलाकान होगे। ये तो लाला के परवार के अकलमंदी के सेती ये। जौन मन ल चोर-डाकू अऊ कुकुर म थोरको फरक नई दिखीस। जम्मे झन अइसने कहे लगिन। दरोगाजी घलो अंगना म ठाढ़े-ठाढ़े कंझावत रहाय। कइसे साहेब ये धर म सब पगलच-पगला रहिथें का ? बता न, याहा जाड़ म रात भर फोकट के अतक आदमी संग मोरो नींद अऊ अराम-हराम होगे।‘
सेठ किथे मैं का करंव साहब, मोर बड़े टूरा ह अंगना म आ के गोहार पारे लगिस, महू बिगन सोंचे-बिचारे, मोर अक्कल हरागे, ओखरे संग म महू गोहार पारे लगेंव।  
सेठ के छोटे टूरा किथे -‘अऊ बाबूजी, भईया के गोहार ल सुन के हमरो अऊस उड़ियागे, हमन काहीं पूछेन नहीं। हमन सोंचेन चोर मन ल बिगने देखे ताके थोरहे गोहार पारीन होही कहिके।‘
अतका म बहू मन के कुरिया के कपाट बाजिस, छोटे टूरा दउड़त गिस अऊ तुरते अईस दरोगा पूछथे-‘ये बखत कोन डाकू के खबर लानिस।‘
छोटे टूरा हांत ल हलावत कहिथे-‘चोर मन के काहीं खबर नोहे सरकार बड़े भउजी काहात हे जब ओ ह भंडार कुरिया ले लहुटत रीहीस त कुकुर के भीतरी म नींगे के गोठ करीस, फेर भईया ह का सोंचिस ते चोर-चोर कहिके अंगना म आ के गोहार पारे लगिस, भऊजी ह ओला घर डहार लनईया रीहीस ओतके बेरा बाबूजी ह गोहार पारत अपन कुरिया ले निकर के अंगना म आ गे, फेर गांव के मन सकलागें अब भऊजी ह ऊंखर आगू म आय त आय कइसे ?‘
लालाजी खखवो लबारी मारथस, ‘तैं खुद दाई-ददा कहात गोहार पारत भागेस, अऊ मोला बैकुप बनावत हस।‘ सुन साहेब- दरोगाजी धीर कन किहिस-‘माफी देवव, एक तो तैं फोकट के याहा जाड़ के बेरा म कुकुर सहीक मामूली जिनावर बर घंटों परसान करे, अब का तोर सबे कुनबा के सफई सुनव ? अबले अईसन झन करबे नहीं ते तुम माईपिल्ला ल अंदर कर देहूं, तुम सब ऊंहे चोर पकड़त रहूं।‘
तीनों बाप-बेटा लाज म गड़त जावत राहांय। गांव के मन घलव ऊंखर परवार के बुधमानी के चारी करत अपन-अपन घर डाहार रेंगिन। मोर तो घुस्सा ह तरूआ व चघत रहाय।  पूरा परवार पगला हे। ये मुरूखराज मन के मगज म अतका नई अईस कि चोर मन हल्ला-गुल्ला होते साठ परागे, अतका बेर ले का ओमन तोर घर भीतरी म बइठे रहीं। घर म अमाते साठ हमर गोसईन ह पूछिस-‘का होईस, चोर पकड़ईस ?‘
मैं -‘हहो‘
ओ-हा-‘के झन रीहीन ?‘
मै -‘एक झन‘
ओ अचरित खागे, किथे-‘ये-ओ, एकेझन चोर बर गांव भर ले गोहार ?‘
मैं-‘अऊ चोर के मुहरन ल घलव सुन ले, पोनी के कुकुर, चार-पांव डेढ़ बिता के जीभ।‘
ओहा- हांसी-ठट्ठा झन कर सोझ बता, का बात ये तौन ल ? मैं-‘ मुछु नहीं, सिरीप मुखिया घर के ओ करिया कुकुर ऊंखर भंडार म अमागेय रीहीस हे, अऊ ये अक्कल के दुसमन मन दुनिया ले बाहिर गोहार पार के गांव भर ल दंदोर डारिन। अऊ तैं ह अतक जाड़ म मोला चोर धरे बर भेज देय।‘
ओ ह-‘या, मैं काबर भेजतेंव, मैं सोचेंव गांव म कखरो घर चोरी परगे, एके गांव म रेहे बर हमर धरम रीहीस मदत करे के। मैं का जानव ओ घरभर के मन पगला, अऊ घर ह पागलखाना ए कहिके। चोर-डाकू अऊ कुकुर के चिनहारी नई हे ?‘
मै-‘तोर सहीक समझदार एक झन ऊंखर घर के देवी के किरपाकांड के फल ए, पूरा गांवे नहीं बिचारा थानादार घलौ जाड़ के ये बैरी रात म दु-दु घंटा ले कुंडली के फल मिलावत रहिगेंव।‘ ले भईगे कहात ओबिचारी घलौ लजलजावन अकन होगे।

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लेखक का पूरा परिचय-

नाम- विट्ठल राम साहू
पिता का नाम- श्री डेरहा राम साहू
माता का नाम- श्रीमती तिजिया बाई साहू
शिक्षा- एम.ए. ( समाजशास्‍त्र व हिन्‍दी )
संतति- सेवानिवृत्‍त प्रधानपाठक महासमुंद छत्‍तीसगढ़
प्रकाशित कृतियां- 1. देवकी कहानी संग्रह, 2. लीम चघे करेला, 3. अपन अपन गणतंत्र
पता- टिकरा पारा रायपुर, छत्‍तीसगढ़
वेब प्रकाशक- अंजोर छत्‍तीसगढ़ी www.anjor.online

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