छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंग्‍य: लोगन के कुकुर परेम

लोगन के कुकुर परेम

आदमी के आदमी संग घिना अऊ कुकुर संग परेम करइ ल देख के मोला कबीर सहीक हांसी लागथे। ये तो बने बात आय कि अदमी मे मन म कोनो न कोनो जीव बर परेम के भावना तो हावे। फेर आदमी बर बैर अऊ कुकुर बर परेम, करइ ह मोर समझ म नइ आवय। कुकुर ल बड़ वफादार जानवर माने गेय हे। जेकर खाथे तेकर छुटान जरूर करथे अऊ आदमी ? आदमी तो जनम जात निमक हरामी ये। जउन पतरी म खाथे उही म भोंगरा करथे। कुकुर पोसइया मन बड़ महान होथें। उन भले अपन संग ददा-दाई के सेवा नइ करय, फेर कुकुर के गुह-मूत ल बड़ सरधा ले करथे हमरों गांव म एक झन निच्चट गवइंहा आइस। ओह थोक-थोक साहरी मन के संग म राहत-राहत ओकर पुदगा बाढ़गे। दुसर के देखा सीखी अपनो ह एक ठन कुकुर पोस लीस। 

कुकुर पोसइ ल मामूली झन समझय। बड़े बड़े मन हिम्मत करथे कुकुर पोसे के, तुहंर-हमर सहीक मन के बस के बात नोहे। सहाब ग्रेट के मन अइसन मांहगी सऊंख ल पोस थें। डउकी-लईका सब ल भीड़े बर परथे। ऊंखर कुकुर परेम ल देख के मोला ओकर खटिया म परे दाई-ददा के सुरता आ जथे। बिचारी-बिचारा मन निच्चट मरे के लईक हो गेय हे। जतका कुकुर बर मया करथे ततका कहूं अपन दाई-ददा बर मया करके सेवा करतीस ते दाई-ददा के असीस ले अऊ जादा सुख भोगतीस। डोकरी-डोकरा मन कहूं थूंक-खखार देथें तेन ल घीनाथें। जतका के सेवा नइ करय ततका के पारा-बसती वाला मन करा गिना गोठियाथेें। ए मन कभू न तेल-फुल चुपरे, न गोड़ हात करयं, अपन मन बने बने खाथें अउ सियनहा-सियानीन ल सुक्खा मड़ा देथें। 

ऊंखर बर मुंह मुरेरत रथें। ओनहा-कपड़ा ह बस्सावत परे रथे। ऊंखर कुरिया म माछी मंगसा भनभनावत रथे। गरमी जाड़ सबर दिन ऊंखर बर एके बरोबर हे। अपन मन पंखा-कूलर, गद्दा अउ रजई। कतको पेट के फुटत ले खाय रहीं तभो ले खाएच्च नइ हन कहिथें।, इंखर पेट म का हाही अमा जाय रहिथे ते भगवाने जाने। सब झन इही चाहथे-ये मन कब मरय त हमन हरू होवन कहिके। ओमन ल मोर सीखोना हे आज जइसन हमन जउन देखत हन येला दरपन मानव, अइसन दसा काल के दिन हमरो अवसकर के आही। हमन नावां पीढ़ी ल बने-बने संसकार देवन। दाई-ददा, सास-ससुर के मन लगा के सेवा करके देखावन। देखे रही त उहू मन अपन दाई-ददा के बने सेवा करही। बने सेवा के फल बने मिलही। ये जुग म तो कोनो पूत ला अपन दाई-ददा के सेवा करे के आसा नइ करे जा सकय। आज नयतिक पतन के जुग म जन समाज म रोज-रोज जो घटना देखउल देवत हे अऊ सुनावत हे तउन ह गवाही हे। आज समाज म जउन अतियाचार होवत हे ओ ह सब उपर आ सकत हे। 

फर के पाका मिठाते-अदमी के पाके नई मिठावय। सब दाई-ददा मन ल अपन बेटा-बेटी के बडई सुहाथे। तइसे येहू मन ल अपन कुकुर के बडई सुनई बड़ सुग्घर लागथे। परोसी मन वियंग बड़ई मारथें तेन ल ओ मन नई समझे। ओ मन खुदे कुकुर बड़ई के पुल बांधे लगथें। हमर टॉमी ह बिगर मास के खाबे नइ करय। मोठ दसना म सुतथे। कम हिअर टॉमी कहिथन तेन ल समझथे अउ छत्तीसगढ़ी म बलाबे ते आये नहीं। कुकुर पोसई ह तो अंगरेजी संसकीरति ये। अंगरेजी संसकीरति के हमन तो गुलाम हईहन, कुकुर बिलई ल घलो ओइसने सीखोवत हन। येला अपन सान समझथन। हमर भारती संसकीरति म गाय पोसई ह पबरित आय। गाय के सेवा ल भगवान के सेवा माने जाथे। गाय के गोबर मूते ह घलो पबरित माने जाथे। अऊ कुकुर के का ह पबरित ये ?  ‘‘कुकुर के लेड़ा-लिपे के न पोते के।‘‘ कुकुर के घर भीतरी अमई ह छुआ माने जाथे आज उही कुकुर ह रंधनी घर म अमावत हे। 

जबले ओ मन कुकुर ल पोसे हे तबले गांव वाला मन ल नानहे अदमी समझे लगिन टेढ़गा-टेढ़गा गोठियाथे। बहुत दिन बाद मोला येकर कारन समझ म अइस। कुकुर के पूछी कभू सोंज नइ होवय कहिथे। पोंगरी म खुसेर देबे तभो नहीं। कुकुर संग रेहे के सेती ताय। कहिथे न संगत से गुन आत है संगत से गुन जात। जउन दिन कुकुर के पूछी सोझ होइस त जान जावव कि ओ ह बईहा हो जही नहिते मर जही। कुकुर ल देख के कुकुर भुंकथे तइसे आदमी ह आदमी ल देख के गुर्राथे। में कभू-कभू गुनथव लोगन कुकुर ल काबर पोसत होही कहिके। 

कतको झन ल काहत सुनथंव-अरे जा रे तोर सहीक कतको देखे हौंव, मैं त तैं मोर नाव के कुकुर पोस लेबे। ककरो चैलेंज के सेती ओ ह कुकुर पोसे होही। दुसर कारन येहू हो सकत हे कि ककरो करा भगवान कीरपा ले जादा धन सकला जथे त चोर चिलहाट के डर हो जथे। लोगन के मानना हे कि कुकुर पोसे ले चोर के ड़र नइ राहाय। फेर आज-काल तो चोर अऊ कुकुर के मितानी चलते हे। चोर मन साव के चोला धर के चोरी करत हें। 
मोला येदे हाना उपर भरोसा हे- ‘‘चोर के माल चंडाल खाय, पापी हांत मलते रहिजाय।‘‘

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लेखक का पूरा परिचय-

नाम- विट्ठल राम साहू
पिता का नाम- श्री डेरहा राम साहू
माता का नाम- श्रीमती तिजिया बाई साहू
शिक्षा- एम.ए. ( समाजशास्‍त्र व हिन्‍दी )
संतति- सेवानिवृत्‍त प्रधानपाठक महासमुंद छत्‍तीसगढ़
प्रकाशित कृतियां- 1. देवकी कहानी संग्रह, 2. लीम चघे करेला, 3. अपन अपन गणतंत्र
पता- टिकरा पारा रायपुर, छत्‍तीसगढ़
वेब प्रकाशक- अंजोर छत्‍तीसगढ़ी www.anjor.online 

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