छत्‍तीसगढ़ी व्‍यंग्‍य: तोला मिरचा लागिस

तोला मिरचा लागिस

गोसईन के भड़भड़ई ला सुनके मोला कागत कलम ला गढ़ाके चउक के दुकान ले छटाक भर मिरचा पावडर लाने ला परगे। तहाने मैं फेर लिखई मा भीड गेंव। एक लैन ला लिखे नई पायेंव फेर ओखर कीरीर-कीरीर सुरू होगे। कोनो-कोनो परानी मन के सुभाव अइसने होथे। कखरो सुभाव ला बदले नई जा सके। मोर संग जीनगी के चालिस बछर बीतगे, फेर ओखर सुभाव मा बदलाव नई अईस।
एक ठन किताब के पन्ना ला धरके फेर झम्मले आके मोर आगू ठाढ़ होगे, अपन दूनों कनिहा ला धरके। अऊ अपन टेपरा ला उप्पर डहार चघा के कीहीस-तै का समझथस अपन-आप ल ? दू-चार ठन तुकबंदी, लेख, बियंग लिखके साहित्य संसार मा साहित्य सिरोमनी बनगे हवस? अरे, तोला अमर होना हे ता कलम के सिपाही के बदला फौज के सिपाही बन जा, देस बर कुरबान हो जबे ता तोरो नाव अमर हो जही। 
कलम के सिपाही मन तो जीनगी भर दुखला भोगथें, मरे मा घलो ऊंखर दुरगति होथे। गोसईन के जहर गोठ ला सुन-सुनके मोर घाटा मरगे हे। फेर आज ओखर बोली हा सहान सकति ले बाहिर होगे। कभू-कभू साहित्यकार मन ला जरब घलौ आथे, ता मुटका घलौ उबा लेथें। महू ओखर बर मुटका उबा लेंव।  ओ ह रनचंडी सहिक मोर उबाय मुटका ला अपन रेच्चड़हा हथौरी सही हाथ मा झोंकत कहिथे  कईसे लागगे न तोला लगिहात मिरचा ? सत ह सबला जहर बरोबर लागथे। टुराजात मन एखर छांेड़ अउ का कर सकथव ? मोर हांत मा एक ठन कागत ला धरावत कहिथे-देख, देख ये दे। ओ कागत हर मोर एक ठन किताब के पन्ना रहाय, जेन मा दुकान वाला हा मिरचा पवडर बांधके दे रहाय। समाज मा साहित्य के का दुरगति होवत हे तेनला कहात रीहीस।  
अरे, तैं-तो-तैं, मैं सड़क के पाहि मा बड़े-बड़े साहित्यकार मन ला औने-पौने मा बेचांवत देखथवं। इहां तक थोक के भाव कबाड खाना के हत्थे चघत देखे हौंव। हीरा के परख तो असल जोहरी हा करथे, तइसे साहित्य अऊ साहित्यकार के किम्मत असल पाठक जानथे। साहित्य कभू जुन्ना-नावां नई होवय। साहित्य तो सबरदिन एभरगीरीन होथे। भक्तिकाल के कवि‘ बिहारी‘ ‘घनानंद‘ ‘मो.जायसी‘ ‘रहीम‘ ‘मीरा‘ ‘तुलसी‘ ‘सूर‘ सहीक कवि मन समाज मा ईश्वरवाद, आध्यात्म उपर जोर दिनं समाज ला पतन होयले छेंकीन। आधुनिक काल के कवि ‘निराला‘ ‘राष्ट्रकवि मैथिलीशरणगुप्त‘ ‘हरिवंशराय बच्चन‘ सहीक कवि के रचना हा समाज मा एक नवां जिनगी के बगराव करीस। मुंशी प्रेमचंद ‘शरदचंद‘ सहीक समाज सुधारक युगदीरिस्टा मन के कहिनी, उपन्यास अऊ नाटक आज के समय ले मेल खाथे। ओमन समाज मा बुरई, अंधबिसवास, दलीत-पतीत उपर एक ठोसलगहा मन सोसन, उतपीड़न, तरासदी के जीयत-जागत उदाहरण बतईस। ऊंच कुल केहे जाथे तौन मनके फूहरपन ला समाज के आगू मा फरिहईस। 
आज सरि मानुस समाज उपर करजदार हे। का आज सबके आतमा मरगे हे ?  ऊंखर बिचार उनला अऊ कतक गड्ढा मा ढकेलही ? उरदू के सायर ‘मिर्जागालिब‘ अउ कार्लमाकर्स लेलीन, आचारीय रजनीश सहीक दारसनिक मन के किताब घलो फुटपाथ मा आगे हे। इही इंखर भाग मा लिखाय हे। मैं गोसईन ला आजले कमती पढ़े, अड़ही समझत रहेंव। फेर आज ओखर समझदारी के आगू मैं अपन ला नीच्चट हिनहार पायेंव। ओखर नीडरता ले साहित्यिक अवनति उपर बिचार परगट करई मा खास बात दिखीस। मैं सुनके अचरित खागेंव, मोला सोंचे बर परगे कि मोर सहीक टूटपूंजिहा साहित्यकार, ओ बड़े मन के आगू भला का बिसात। भला कोन मोर बड़हर किताब ला मोलिया के पढ़ही। जब बड़े-बड़े साहित्य के माई मुड़ मन ला लोगन सड़क मा पानी के मोल बेचत हें। त मोर का पुछंतर हे। कोनों-कोनों जानकार मन के घलो इही कहना हे कि अइसन साहित्य के परेमी बने- बने किताब ला पढ़े के सौंखिन अब नहीं के बरोबर हें। अब फिल्मी, रंगीन, असलील छापवाला पतरिका, पढ़ईया, टी.वी.वेबसाईट, सी.डी.देखईया जादा होगे हे। ये डहार नावां-जुन्ना किताब के मेला लगावत हें, जेन मा कोनों-कोनों संऊखिन हजारों रूपिया के किताब ले-ले के अपन लायबरेरी सजाथें। येखर ले पता चलथे, ये मन ला साहित्य ल कोनो लेना-देना नइहे। ओ मन ला अपन सान हैसियत बनाके रखना हे। तेखर सेती नामी-गीरामी लेखक मन के किताब ऊंखर लायबरेरी के सोभा बड़हाथे। येहू एक ठन फेसन आय। 
साहित ला समाज के दरपन कहिथें, समाज ला जब साहित्यि ले लगाव नई रही त कांहा के समाज अऊ कहां के साहित्य। ये दसा ला तो समाज के घोर अवनति केहे जा सकत हे। जब समाज हा नई चाहे, तब अइसे लोगन घलो हे जऊन घटिया साहित्य के चकाचौंध मा समाज ला ऊंहा पहुंचावत हे जिंहा जाना चाहत हे। तेखरे सेती घलो आज बड़े-बड़े साहित्यकार मनके रचना हा अपन संगरहनीयता अऊ पठनीयता के भावना ले अलग होवत जात हें। ये हा पढ़े-लिखे, हुसियार केहे जाथे तऊन मन बर संसो करेके बिसय हे। सत ले मुंहु मोरइया मन तो कायर होंथे।

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लेखक का पूरा परिचय-

नाम- विट्ठल राम साहू
पिता का नाम- श्री डेरहा राम साहू
माता का नाम- श्रीमती तिजिया बाई साहू
शिक्षा- एम.ए. ( समाजशास्‍त्र व हिन्‍दी )
संतति- सेवानिवृत्‍त प्रधानपाठक महासमुंद छत्‍तीसगढ़
प्रकाशित कृतियां- 1. देवकी कहानी संग्रह, 2. लीम चघे करेला, 3. अपन अपन गणतंत्र
पता- टिकरा पारा रायपुर, छत्‍तीसगढ़
वेब प्रकाशक- अंजोर छत्‍तीसगढ़ी www.anjor.online 

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